गुजरात हाई कोर्ट ने कहा है कि सीबीएसई और आईसीएसई जैसे केंद्रीय बोर्डों से संबद्ध स्कूल “कक्षा 1 से 8 तक के अनिवार्य विषयों में से एक के रूप में स्थानीय भाषा को पढ़ाने की राज्य सरकार की नीति को लागू करने से इनकार नहीं कर सकते।”
जस्टिस सोनिया गोकानी और जस्टिस संदीप भट्ट की दो सदस्यीय बेंच ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार को निर्देश दिया कि वह गुजरात में स्कूल खोलने वालों को अनापत्ति प्रमाण पत्र (no-objection certificate) देते समय अपनी जरूरतों की सूची दे दिया करे।
जनहित याचिका पिछले साल अक्टूबर में एनजीओ मातृभाषा अभियान ने दायर की थी। इसमें राज्य सरकार को “2018 के सरकारी संकल्प (Resolution) को पूरे मन से लागू करने के लिए हाई कोर्ट से निर्देश की मांग की गई थी, ताकि कक्षा 1 से 8 तक के स्कूलों में गुजराती भाषा को अनिवार्य विषयों में से एक के रूप में रखा जा सके।”
याचिकाकर्ता ने कहा था कि प्राइमरी स्कूल, विशेष रूप से सीबीएसई, आईसीएसई और आईबी बोर्ड से संबद्ध स्कूल अपने-अपने सिलेबस में एक विषय के रूप में गुजराती को नहीं रख रहे हैं। जवाब में राज्य सरकार ने कहा था कि वह नियमों का पालन नहीं करने वाले स्कूलों का पता लगाने के लिए सभी जिलों से आंकड़े जुटा रही है। हाई कोर्ट ने यह कहते हुए नीति को लागू करने पर जोर दिया कि “2018 के निर्देश का पालन नहीं करने वाले स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए।”
इससे पहले दिसंबर की सुनवाई के दौरान बताया गया कि सीबीएसई जैसे बोर्डों से संबद्ध स्कूलों का “अपना सिलेबस है।” इस पर जस्टिस गोकनी ने कहा कि ऐसे स्कूल या बोर्ड गुजराती को शामिल करने की नीति को मानने से इनकार नहीं कर सकते।
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