मोरबी सस्पेंशन ब्रिज गिरने के करीब तीन महीने बाद गुजरात सरकार ने मोरबी नगरपालिका को कारण बताओ नोटिस जारी किया। राज्य शहरी विकास विभाग द्वारा जारी किया गया नोटिस दरअसल नगरपालिका के वजूद पर ही सवाल उठाता है। इसलिए कि “वह बुनियादी कर्तव्यों को निभाने में सीधे-सीधे विफल रहा था।” उस हादसे में 135 लोगों की मौत हो गई थी। कई घायल भी हुए थे।
सरकार ने ओरेवा समूह द्वारा बार-बार लिखे गए पत्रों पर आंखें मूंद लेने के लिए मोरबी नगरपालिका की खिंचाई की है, जिसे पुल के संचालन और रखरखाव के लिए ठेका दिया गया था। पत्र में पुल की खराब हालत के बारे में चेतावनी दी गई थी और आने वाली तबाही का संकेत दिया गया था।
उपलब्ध तथ्य और रिकॉर्ड मार्च 2017 को ही ओरेवा समूह का ठेका समाप्त होने की ओर इशारा करते हैं। ओरेवा समूह ने जनवरी 2018 से जनवरी 2020 के बीच नगरपालिका के साथ पत्राचार के दस्तावेज और पत्र जमा किए हैं, जिनमें कहा गया है कि अगर जल्द ही मरम्मत नहीं हुई तो “गंभीर परिणाम” होंगे।
हालांकि, अब यह स्पष्ट है कि नागरिक निकाय ने चेतावनियों पर ध्यान नहीं दिया। यह नोटिस में भी बताया गया है।
नोटिस तीन सदस्यीय विशेष जांच दल (SIT) द्वारा 30 अक्टूबर की रात को हुई दुखद घटना की जांच के निष्कर्षों पर निर्भर है। उस घटना में 135 में से अधिकतर लोगों की माच्छू नदी में डूबने से मौत हो गई थी। मोरबी नगरपालिका में 52 सदस्य हैं। सभी भाजपा के हैं।
यह पत्र गुजरात हाई कोर्ट द्वारा स्वत: संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार से सवाल करता है कि कर्तव्य में लापरवाही के लिए गुजरात नगर पालिका अधिनियम की धारा 236 के तहत नगरपालिका के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई।
इस बीच, मोरबी के 48 पार्षदों ने बिना सुनवाई के उनके खिलाफ कोई निर्देश पारित नहीं करने का अनुरोध करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया। मोरबी नगरपालिका को 25 जनवरी तक का समय दिया गया है कि वह अपना लिखित स्पष्टीकरण सामान्य निकाय के प्रस्ताव पर आने के बाद ही प्रस्तुत करे। अदालत ने विशेष रूप से एसआईटी के निष्कर्षों पर भी सवाल उठाया, जिसमें कहा गया था कि नागरिक निकाय के मुख्य अधिकारी ने टिकट दरों में वृद्धि के लिए ओरेवा समूह के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। यहां तक कि सामान्य निकाय ने पहले ही इसे बढ़ाने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था।
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