आईपीएस अधिकारी सतीश वर्मा की याचिका पर अदालत की टिप्पणी
गुजरात उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए अपने एक फैसले में कहा कि सर्जरी के लिए रोगी की सहमति डॉक्टर की “लापरवाह कृत्य” को सुरक्षा कवच नहीं प्रधान करती है। 1986 बैच के आईपीएस अधिकारी सतीश वर्मा के मामले में यह फैसला सुनाया गया। वर्मा ने दो दो आर्थोपेडिक सर्जनों के खिलाफ निचली अदालत में आपराधिक शिकायत दर्ज कराने के लिए याचिका दायर की थी जिसके खिलाफ चिकित्सक गुजरात उच्च न्यायालय का रुख किया था।
गुजरात कैडर के वरिष्ठ आईपीएस अफसर जो इशरत जहा मामले के जाँच अधिकारी थे ,ने आरोप लगाया था कि 2012 में उन्होंने सर्जरी कराई थी लेकिन दो आर्थोपेडिक सर्जनों ने लापरवाही करते हुए उनके कूल्हे की सर्जरी के दौरान बाये पैर को छोटा कर दिया जिससे उनका संतुलन बिगड़ जाता है और उन्हें चलने में दिक्कत होती है। वर्मा ने अपनी याचिका में कहा की चिकित्सको की लापरवाही के कारण उनका चलना भी मुश्किल हो गया है।
आईपीएस अधिकारी ने मजिस्ट्रियल कोर्ट में डॉ ज्योतिंद्र पंडित और डॉ रिकिन शाह के खिलाफ याचिका दायर कर जल्दीबाजी और लापरवाही से किए गए कार्यों से गंभीर चोट पहुंचाने और उनके जीवन को खतरे में डालने के लिए आपराधिक मुकदमा चलाने की मांग की थी।
न्यायमूर्ति निखिल करियल की अदालत में चिकित्सकों की तरफ से तर्क दिया गया था कि मरीज ने सर्जरी के लिए सहमति दी थी ,लेकिन अदालत ने उनकी दलील को ख़ारिज कर दिया। न्यायमूर्ति निखिल करियल ने कहा कि मरीज की सर्जरी के लिए सहमति लापरवाही की अनुमति नहीं देता है। सर्जरी का निर्धारण “तत्काल और प्राकृतिक” था , यह उनके लापरवाह कृत्य का परिणाम है।
चिकित्सको के तर्क कि वर्मा की शुरुआती शिकायत राष्ट्रीय उपभोक्ता फोरम में की थी , जिसके आधार पर एम्स दिल्ली के सात डॉक्टरों के पैनल के लिए गठित मामले की जांच कर उन्हें क्लीन चिट दे दी। अदालत ने कहा की कोर्ट को रिपोर्ट की कॉपी नहीं मिली है।
डॉक्टरों के इस तर्क पर कि मरीज ने सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं , अदालत ने कहा कि सहमति प्रक्रिया के लिए थी.इस भाव के आधार पर कि सर्जन अपने ज्ञान कौशल के आधार पर बेहतर सर्जरी करेंगे।
ऑपरेशन के लिए सहमति हो सकती है लेकिन लापरवाही के लिए नहीं। मरीज की सहमति लापरवाही को सुरक्षा कवच नहीं प्रदान करती।
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