इसरो-एसएसी के स्वदेशी उपकरण ने की चंद्रमा पर जलीय तत्वों की खोज - Vibes Of India

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इसरो-एसएसी के स्वदेशी उपकरण ने की चंद्रमा पर जलीय तत्वों की खोज

| Updated: August 11, 2021 15:15

इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (इसरो) ने चंद्रमा पर जल की मौजूदगी पर एक बड़ी और महत्वपूर्ण खोज की है। चंद्रयान-2 में लगे देश में ही विकसित एक उपकरण की मदद से चंद्रमा पर हाइड्रोक्सिल और वाटर मोलेक्यूल्स की उपस्थिति के स्पष्ट संकेत मिले हैं। इन दोनों तत्वों के बीच स्पष्ट अंतर के बारे में भी पता चला है। करंट साइंस के ताजा अंक में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, इस खोज से खनिज विज्ञान और अंक्षांशीय स्थान के लिहाज से स्पष्ट और मजबूत निष्कर्ष निकलता है।

अहमदाबाद स्थित इसरो के संस्थान स्पेस एप्लीकेशंस सेंटर (एसएसी) द्वारा विकसित इमेजिंग इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोमीटर (आईआईआरएस) की मदद से यह महत्वपूर्ण खोज हो पाई है। चंद्रमा की सतह के मिनरल कंपोजीशन को समझने के लिए आईआईआरएस इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम के जरिये जानकारी एकत्रित करता है। इसकी प्रत्येक एलीमेंट प्रोसेसिंग की विशिष्ट पहचान होती है।

आईआईआरएस 0.8 से 5 माइक्रोमीटर की वेवलेंथ में काम करने में सक्षम है और यह जल खोज के लिए व्यापक रेंज में इमेज ले सकता है। भारत के दूसरे चंद्र अभियान में आईआईआरएस की क्षमता का पहली बार इस्तेमाल किया गया है।इसरो की इस खोज को भविष्य के प्लैनेटरी एक्सप्लोरेशन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

2008 में चंद्रयान-1 के पहले मून मिशन के समय इसी तरह का एक अन्य उपकरण मून मिनरेलॉजी मैपर (एम3 के नाम से मशहूर) का इस्तेमाल किया गया था जो तुलनात्मक रूप से सीमित रेंज 0.4 से 3 माइक्रोमीटर के बीच पानी की खोज करने में सक्षम था। इसका विकास नासा की जेट प्रोपल्सन लैबोरेटरी द्वारा किया गया था और यह नासा के लिए स्वदेशी उपकरण नहीं था। आईआईआरएस की व्यापक वेवलेंथ रेंज से नतीजों की बेहतर सटीकता मिलती है। सितंबर 209 में एम3 के प्रकाशित नतीजों के आंकड़ों से चंद्रमा की सतह पर ध्रुवीय क्षेत्र में अवशोषित विशेषताओं का पता चला था। नासा के अनुसार इन अवशोषित विशेषताओं को आमतौर पर हाइड्रोक्सिल और/अथवा जलीय कणों (मोलेक्यूल्स) के साथ जोड़कर देखा जाता है।

2017 में ब्राउन यूनीवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं द्वारा प्रकाशित शोध लेख में कहा गया था कि एम3 की वेवलेंथ रेंज 3 माइक्रोमीटर के क्षेत्र में पूर्ण आकार और अधिकतम अवशोषण के सटीक निर्धारण के लिहाज से बहुत सीमित है। इससे एच2ओ (पानी) से ओएच (हाइड्रोक्सिल) की अलग जांच करना मुश्किल होता है। खासकर जब, दोनों की उपस्थिति एक ही स्थान पर हो तो कठिन होता है। 0.3 से 0.7 माइक्रोमीटर की रेंज के वेवलेंथ में इन तत्वों को इंसान अपनी आंखों से देख सकता है।

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