ल्यूकेमिया के मामले बच्चों में अधिक

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ल्यूकेमिया के मामले बच्चों में अधिक

| Updated: February 4, 2023 17:46

अहमदाबाद के सबसे बड़े कैंसर संस्थान के डेटा से पता चलता है कि 2022 में बच्चों में दो प्रकार के ल्यूकेमिया के बचपन के कैंसर (Childhood Cancers) के लगभग आधे मामले थे।

पिछले साल शहर में गुजरात कैंसर और अनुसंधान संस्थान (GCRI)  में पांच प्रमुख प्रकार के बचपन के कैंसर के कुल रोगियों में से 464 बच्चों (44.87%) में दो प्रकार के ब्लड कैंसर का इलाज किया गया था। जीसीआरआई गुजरात में कैंसर अनुसंधान का राज्य-स्तरीय केंद्र है और राज्य का राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम (NCRP)  भी है।

2022 में बच्चों में हुए दो कैंसर में से लिम्फोइड ल्यूकेमिया अकेले 353 बच्चों के कैंसर रोगियों के लिए जिम्मेदार था। यह 34.82% लड़कों और 33.47% लड़कियों में देखा गया था। माइलॉयड ल्यूकेमिया, जिसका प्रसार आमतौर पर वयस्कों में अधिक होता है, पिछले साल जीसीआरआई में 111 बाल रोगियों में मिला। इसके शिकार में जहां 11.17% लड़के थे, वहीं 10.28% लड़कियां।

कुल मिलाकर अहमदाबाद में बचपन के कैंसर का प्रसार 93.8 प्रति 10 लाख लड़कों और 50.1 प्रति 10 लाख लड़कियों पर है। जीसीआरआई में प्रिवेंटिव कम्युनिटी मेडिसिन के डॉ आनंद शाह ने कहा कि यह अहमदाबाद में बचपन के कैंसर की आयु समायोजित दर (Adjusted Rate) है। डॉ शाह अहमदाबाद में एनसीआरपी के सह-पीआई (Co-PI) भी हैं। हालांकि, पूरे भारत में, विशेषकर बच्चों में, कैंसर मृत्यु दर के बारे में डेटा की अभी भी भारी कमी है।

जागरुकता की कमी, बीमारी का डर और शुरुआती सफलता के बाद इलाज बीच में छोड़ देने वाले मरीज चाइल्डहुड कैंसर को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारण हैं। डॉक्टरों ने बताया कि कई बार कीमोथैरेपी के कुछ सेशन के बाद जब बच्चों में सुधार होता है तो उन्हें इलाज से हटाकर वापस घर ले जाया जाता है। इससे बच्चे दोबारा बीमार हो जाते हैं।

वेदांत अस्पताल में पीडियाट्रिक हेमेटोलॉजिस्ट ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ दीपा त्रिवेदी ने कहा, “कैंसर की वर्जना (taboo) सबसे बड़ी बाधा है, लेकिन यह हृदय या गुर्दे की बीमारी जितनी ही खराब है और इसका इलाज संभव है। शुरुआती इलाज, निर्देशों को मानना, टेस्ट करवाना और इलाज में कराते रहना महत्वपूर्ण होता है। पैसे और धैर्य की कमी से अक्सर लोग इलाज बीच में ही छोड़ देते हैं। RBSK और PMJAY योजनाओं के माध्यम से सरकारी सब्सिडी के बारे में अधिक जागरूकता की आवश्यकता है। वैसे ऐसे गैर सरकारी संगठन भी हैं जो रोगियों की सहायता करते हैं। कैंसर छुपाने की चीज नहीं है, मदद लें और पूरा इलाज कराएं।”

गुजरात कैंसर अस्पताल में कंसल्टेंट पीडियाट्रिक हेमेटोलॉजिस्ट ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. अनूपा जोशीपुरा ने कहा, “एक्यूट लिम्फोइड ल्यूकेमिया बचपन के कैंसर का सबसे आम निदान (diagnosis) है। ज्यादातर बार  ल्यूकेमिया में रोगियों को बोन मैरो एस्पिरेशन रिपोर्ट से गुजरना पड़ता है।  लेकिन दर्द रहित, सुरक्षित और प्रक्रिया के बाद कोई समस्या नहीं होने के बावजूद लोग परीक्षण कराने से डरते हैं। रिपोर्ट घंटों में आता है। टेस्ट में देरी का मतलब है कि मरीज बहुत सारी जटिलताओं में फंस जाते हैं, जिनसे बचा सकता है। इससे समय के साथ खर्चे में भी कमी आ सकती है।

भारत में संस्थागत देखभाल (institutional care) की 2022 में एनसीडीआईआर की एक रिपोर्ट से पता चला है कि गुजरात के केवल तीन टर्शरी अस्पतालों और दो सेकेंडरी अस्पतालों ने राज्य में बचपन के कैंसर की देखभाल के बारे में हुए सर्वेक्षण में भाग लिया।

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