नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आरक्षण योग्यता के विपरीत नहीं है, बल्कि इसके वितरण प्रभाव को आगे बढ़ाता है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र को मेडिकल पाठ्यक्रमों में अखिल भारतीय कोटा (एआईक्यू) सीटों पर ओबीसी को 27 फीसदी और ईडब्ल्यूएस को 10 फीसदी आरक्षण प्रदान करने की अनुमति देते हुए कही।
नील ऑरेलियो नून्स के नेतृत्व में याचिकाकर्ताओं के एक समूह ने पीजी पाठ्यक्रमों में मौजूदा शैक्षणिक सत्र से नीट-अखिल भारतीय कोटा में ओबीसी और ईडब्ल्यूएस आरक्षण को लागू करने के लिए केंद्र की 29 जुलाई की अधिसूचना को चुनौती दी थी। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि 1984 के प्रदीप जैन के फैसले का यह मतलब नहीं है कि एआईक्यू सीटों में कोई आरक्षण संवैधानिक रूप से स्वीकार्य नहीं है। पीठ ने कहा कि जब काउंसिलिंग लंबित हो, तब न्यायिक औचित्य हमें कोटा पर रोक लगाने की अनुमति नहीं देता। खासकर उस मामले में जहां संवैधानिक व्याख्या शामिल हो। पीठ ने कहा कि न्यायिक हस्तक्षेप से इस साल प्रवेश प्रक्रिया में देरी होती।
ईडब्ल्यूएस कोटे के संबंध में पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की दलील सिर्फ एआईक्यू में हिस्सेदारी तक सीमित नहीं थी, बल्कि मानदंड पर भी थी। इसलिए इस मामले पर विस्तार से सुनवाई की जरूरत है। लिहाजा शीर्ष अदालत ने मामले को मार्च के तीसरे सप्ताह में विचार करने का निर्णय लिया है।
स्नातक पाठ्यक्रमों में 15 फीसदी सीटें और पीजी पाठ्यक्रमों में 50 फीसदी सीटें अखिल भारतीय कोटे से भरी जाती हैं। सात जनवरी को शीर्ष अदालत ने 27 फीसदी ओबीसी कोटे की वैधता को बरकरार रखा था, लेकिन कहा कि ईडब्ल्यूएस उम्मीदवारों के लिए निर्धारित आठ लाख रुपए प्रति वर्ष की आय मानदंड लंबित याचिकाओं के अंतिम परिणाम के अधीन होगा।