दुनिया को विदेश मंत्रालय का संदेश - नए भारत के नेता नहीं जानते अंग्रेजी, इसलिए

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दुनिया को विदेश मंत्रालय का संदेश – नए भारत के नेता नहीं जानते अंग्रेजी, इसलिए होता गलत आकलन

| Updated: February 22, 2022 11:53

भारतीय लोकतंत्र के आलोचक यह स्वीकार नहीं करते हैं कि भारत में इस समय राजनीति और प्रबंधन ही नहीं, बल्कि पूरे समाज में व्यक्ति-विकास उफान पर है। और ये व्यक्ति “अपनी परंपरा, भाषा और आस्थाओं को लेकर भी बहुत अधिक आश्वस्त हैं।” इतना ही नहीं, वे “अंग्रेजी-भाषी समाज से भी बहुत कम हैं, उनका अंतरराष्ट्रीय केंद्रों तक से बहुत कम सरोकार रहता है,” इसीलिए उनके प्रति “राजनीतिक रूप से कठोर व्यवहार किया जाता है।”

ऐसा मानना है भारतीय विदेश मंत्रालय का। उसके योजना और विश्लेषण प्रभाग द्वारा तैयार किए गए ‘लोकतंत्र के रूप में भारत’ से जुड़े दस्तावेज में कई प्रमुख बिंदु हैं। इनमें से यह एक है, जिसे अंतरराष्ट्रीय निगरानी प्रतिष्ठानों द्वारा भारतीय लोकतंत्र में गिरावट बताने के बाद लोकसभा सचिवालय के साथ साझा किया गया है।

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विदेश विभाग ने ऐसे में अतिरिक्त रूप से उस पर ध्यान देने की मांग की है, जिसे वह देश के “मजबूत मीडिया (दुनिया भर में मीडिया की बड़ी कंपनियों की उपस्थिति के साथ)”, “असहमति के लिए स्थान” और “एक संपन्न नागरिक समाज” कहता है। उल्लेखनीय रूप से, ये वही विशेषताएं हैं जिनकी लगातार आलोचना हो रही हैं। जैसे प्रेस की स्वतंत्रता पर हमलों में नाटकीय वृद्धि, प्रदर्शनकारियों के विरोध को राजद्रोह कह कुचलना, गैर-सरकारी संगठनों को धमकी और उत्पीड़न।

द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, लोकसभा सचिवालय को भेजी गई विदेश मंत्रालय की जानकारी में ‘इंडियन डेमोक्रेसी’ पर एक पावर-पॉइंट प्रेजेंटेशन और ‘इंडिया एज ए डेमोक्रेसी’ पर पांच पेज का दस्तावेज है। एक साथ लिया गया, ये आह्वान करते हैं राष्ट्र के “सभ्यतावादी लोकाचार।” विरोधाभासी रूप से, इसमें संरचना के निर्माण पर प्रकाश डाला जहां “सरकार संसद के प्रति जवाबदेह है।”

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दस्तावेज कहता है, “भारत एक गहन बहुलवादी समाज है, सहज रूप से वैश्विक समाज है। जैसा कि कहा भी जाता है- ‘वसुधैव कुटुम्बकम’। भारतीय लोकतंत्र को एक “मानवीय प्रतिष्ठान” के रूप में वर्णित करते हुए मंत्रालय इसे “सभ्यता” के संदर्भ में लागू करने का प्रयास करता है। इसे क्रमशः “रामायण में पंचायतों,” “महाभारत में शांति पर्व” और विभिन्न धर्मों-बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म, जैन धर्म और सिख धर्म- के प्रसार के माध्यम से रेखांकित करता है। अंत में, राष्ट्रपिता गांधी, अम्बेडकर और टैगोर द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों पर चलने वाला बताता है। इसी के साथ यह भरोसा भी दिया जाता है कि दुनिया के “सबसे बड़े लोकतंत्र” और एक “समृद्ध आर्थिक प्रणाली” होने के नाते भारत दुनिया भर को राह दिखाने का काम करेगा।

दस्तावेज भारत के लोकतंत्र के बारे में पश्चिमी पूर्वाग्रहों का मुकाबला करने के बारे में भी बात करता है। कहता है कि पश्चिम में भी विशाल लोकतांत्रिक दुनिया है, जो लोकतंत्र और बहुलवाद को एक अतिरिक्त सामान्य आकर्षण प्रदान करती है। हालांकि, वर्तमान परिदृश्य को समझने के लिए अतीत के ऐतिहासिक पूर्वाग्रहों से उबरने की जरूरत है। भारत का उदाहरण इन सब सवालों का उपयुक्त जवाब है।

भारत को एक ऐसे शासन के रूप में बताया गया है, जो लोकतांत्रिक जड़ों, विरासत और परंपराओं से समृद्ध है। इसलिए विदेश मंत्रालय के दस्तावेज में उम्मीद जताई गई है कि “भारत की इस शासन पद्धित का विश्व पर अमिट छाप पड़ेगा।” दस्तावेज कहता है, “एक सभ्यतागत ऊर्जा के रूप में अब विश्वव्यापी मंच पर हमारी वापसी हो रही है, यह एक विशेष अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक संतुलन बनाने में सहायता करेगी।” हालांकि इस सबके लिए देश को और अधिक प्रयास करने होंगे।

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