जिस ज्ञान में मेरा-तेरा का भेद नहीं, उसकी उपासना करते हैं- मोहन भागवत -

Gujarat News, Gujarati News, Latest Gujarati News, Gujarat Breaking News, Gujarat Samachar.

Latest Gujarati News, Breaking News in Gujarati, Gujarat Samachar, ગુજરાતી સમાચાર, Gujarati News Live, Gujarati News Channel, Gujarati News Today, National Gujarati News, International Gujarati News, Sports Gujarati News, Exclusive Gujarati News, Coronavirus Gujarati News, Entertainment Gujarati News, Business Gujarati News, Technology Gujarati News, Automobile Gujarati News, Elections 2022 Gujarati News, Viral Social News in Gujarati, Indian Politics News in Gujarati, Gujarati News Headlines, World News In Gujarati, Cricket News In Gujarati

जिस ज्ञान में मेरा-तेरा का भेद नहीं, उसकी उपासना करते हैं- मोहन भागवत

| Updated: April 15, 2023 18:50

जिस ज्ञान में मेरा तेरा का भेद नहीं, जो पवित्र है उस ज्ञान की उपासना हम करते है. सबके साथ एकात्मता की दृष्टि हम मे उत्पन्न हुई. हमें की सारी दुनिया को कुछ देना चाहिए इसलिए अपने राष्ट्र का उद्भव हुआ. विश्व के कल्याण की इच्छा रखने वाले हमारे पूर्वजो की तपस्या से हमारे राष्ट्र का निर्माण हुआ है. हमारा प्रयोजन विश्व का कल्याण है. उक्त उदगार सरसंघचालक मोहन  भागवत ने शनिवार को अहमदाबाद में 1051 ग्रंथो का लोकार्पण करते हुए व्यक्त किये।

पुनरुत्थान विद्यापीठ द्वारा कर्णावती में 1051 ग्रंथो के लोकार्पण कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस अवसर पर अपने उद्बोधन में सरसंघचालक मोहन  भागवत ने कहा कि 1051 ग्रंथो का एक साथ लोकार्पण शायद विश्व रिकॉर्ड बन सकता है. भारतीयों को भारतीय ज्ञान परम्परा का ज्ञान हो जाय इसीलिए जो अनिवार्य आवश्यक कदम उठाने पड़ते है उसमे से यह एक कदम है. वैसे भारतीय ज्ञान परम्परा के अथाग सागर में यह बहुत छोटी सी बात है, लेकिन हमारी क्षमता के अनुसार यह एक बड़ा कदम है. 

पिछले 200 सालो में बहुत खेल हो गए हम कभी ऊपर उठे ही नहीं गुलामी से बाहर आये ही नहीं. अपना वर्चस्व बना रहे इसलिए हम लोगो को तेजोवध करने के लिए जो समझ की गड़बड़ी हुई उसके कारण इसको समझना समझाना दोनों हमारे लिए करने के काम रहते है. अभी हमारा सौभाग्य यह है कि दुनिया को भी इसकी आवश्यकता प्रतीक होने लगी है.

भागवत ने कहा ज्ञान को समझने का अपना अपना तरीका अलग रहता है. सबको सुख देने वाला क्या है इसकी खोज दुनिया में जब से विचार उत्पन्न हुआ है तब से चल रही है. जो कुछ भी ज्ञान है उसको समझने के दो तरीके बन गए. सारी बाहर की बात जानना उसको ज्ञान माना गया. हमारे यहा उसको विज्ञान कहते है. ज्ञान का अस्तित्व निरन्तर है.

ज्ञान सब अज्ञान से मुक्त करके मनुष्य जीवन को मुक्त करता है. यह ज्ञान बाहर नहीं है उसको अंदर देखना पड़ता है. तब मिलता है. जो दिख रहा है वह नित्य परिवर्तनशील है. यह बाह्य ज्ञान है. जिसे हम विज्ञान कहते है. लेकिन केवल विज्ञान को मानने वाला यह कहता है कि बाकी सब गलत है.

यह अहंकार है और अंदर के ज्ञान की शुरुआत इस अहंकार को मारकर होती है. और सत्य का पूर्ण ज्ञान अपने अहम के परे जाने पर ही होता है. इसलिए अहं सापेक्ष और अहं निरपेक्ष ऐसे दो प्रकार के ज्ञान को जानने के तरीके है. वास्तव मे इसमें संघर्ष नहीं है. लेकिन अहं निरपेक्ष ज्ञान के तरीके वाले इसको समझते है और अहं सापेक्ष ज्ञान वाले इसको नहीं समझते इसलिए बखेड़े खड़े करते है. और दुनिया में पिछले दो हजार साल में यही हुआ है.

धर्म के अत्याचार के कारण विज्ञान का जन्म हुआ और विज्ञान ने इन सब अंधश्रद्धाओं से मनुष्य को मुक्त किया. और मनुष्यो को कहा की प्रयोग करो फिर मानो। इसके चलते मनुष्य का जीवन सुखमय हो गया. लेकिन मनुष्य ने साधनो को शक्ति के रूप में इस्तेमाल किया जिसके परिणाम आज हम देख रहे है जिसके हाथ में साधन है वो राजा जो दुर्बल है वो समाप्त होगा. कोरोना काल में श्रुष्टि को कैसे सुखमय रख सकते है उसकी अनुभूति सबको हुई.

वास्तव में दुनिया नया तरीका चाहती है और देने का काम हमारा है हमारे राष्ट्र के अस्तित्व का प्रयोजन यही है. प्रवृति जहाँ से बनती है वहां का ज्ञान यह वास्तविकता है और वह अंदर से बनती है. हमारी दृष्टी धर्म की दृष्टी है वो सबको जोड़ती है, सबको साथ चलाती है. वो सब को सुख देती है. अस्तित्व की एकता का सत्य हमारे पूर्वजो ने जाना उससे परिपूर्ण एकात्म ज्ञान की दृस्टि उनको मिली और इसीलिए उनको यह भी अनुभव हो गया की सम्पूर्ण विश्व अपना ​परिवार ​है एक परिवार है.

जिस ज्ञान में मेरा तेरा का भेद नहीं, यही जो पवित्र है उस ज्ञान की उपासना हम करते है. सबके साथ एकात्मता की दृष्टि हम मे उत्पन्न हुई. तब हमें कहाँ की सारी दुनिया को कुछ देना चाहिए इसलिए अपने राष्ट्र का उद्भव हुआ. विश्व के कल्याण की इच्छा रखने वाले हमारे पूर्वजो की तपस्या से हमारे राष्ट्र का निर्माण हुआ है. हमारा प्रयोजन विश्व का कल्याण है.

कार्यक्रम के प्रारम्भ में ज्ञानसागर महाप्रकल्प की अध्यक्ष इंदुमती ने प्रकल्प के विषय में जानकारी दी. कार्यक्रम के अध्यक्ष परमात्मानन्द ने आशीर्वचन दिए.

सूरत की फर्म को मिला दुर्लभ ” बीटिंग हार्ट डायमंड ” जौहरी भी हैरान

Your email address will not be published. Required fields are marked *

%d