2017 के आसपास का दृश्य। एक उच्च जाति पाटीदार हार्दिक पटेल, एक ओबीसी अल्पेश ठाकोर और एक दलित जिग्नेश मेवाणी के रूप में तीन युवा तुर्क, जिन्होंने दिसंबर, 2017 के गुजरात विधानसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस पार्टी के कायाकल्प अभियान को हवा दी, जिसने सत्तारूढ़ भाजपा को मात्र सात सीटों से जीत हासिल करने की हालत में ला दिया, जबकि भाजपा की बड़ी और निश्चित जीत होने जा रही थी।
यह गुजरात के सामाजिक और राजनीतिक इतिहास में एक ऐतिहासिक क्षण था जब एक पाटीदार, एक ओबीसी और एक दलित – जो हमेशा टकराव की स्थिति में रहते थे – साथ मिलकर समसामयिक मुद्दों पर एक स्वर में बोल रहे थे। तत्कालीन कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी यही मुद्दे उठाए थे।
समकालीन इतिहास में यह पहली बार था कि पाटीदारों के साथ-साथ कांग्रेस पार्टी के क्षत्रियों (ओबीसी), हरिजन, आदिवासियों और मुसलमानों (खाम) के संयोजन ने एक ही सुर में बात की। सभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस दावे को चुनौती दे रहे थे कि गुजरात प्रशासन के मामले में एक मॉडल राज्य है। सबने उनकी सरकार पर क्रोनी कैपिटलिज्म का आरोप लगाया।
बात करते हैं 2021 की :
2019 में लोकसभा चुनाव आते हैं, तब तक हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए थे और बीजेपी ने शानदार अंतर के साथ गुजरात की सभी 26 सीटों पर जीत हासिल कर ली, जिसमें वर्तमान राज्य प्रमुख सीआर पाटिल की लगभग 7 लाख वोट से हुई जीत भी शामिल है, जो देश में जीत का सबसे बड़ा अंतर है। उन लोगों ने उस समय बेरोजगारी, महंगी शिक्षा, खराब स्वास्थ्य बुनियादी ढांचा, नोटबंदी व जीएसटी के घातक प्रभाव, क्रोनी कैपिटलिज्म के मुद्दे उठाए थे। तीनों इस बात पर सहमत हैं कि ये मुद्दे 2019 में भी थे और अभी भी हैं।
तीनों मस्केटियर 2021 में लोन रेंजर बन गए हैं और अलग-थलग महसूस कर रहे हैं। कांग्रेस में हार्दिक पटेल अलग-थलग पड़े हैं और बीजेपी में अल्पेश ठाकोर। अल्पेश ने कांग्रेस पर यह आरोप लगाते हुए भाजपा का दामन थाम लिया था, कि वहां उन्हें उनका हक नहीं दिया गया। जिग्नेश उसी रास्ते पर चल रहे हैं, जिस पर शुरुआत की थी, लेकिन उन्हें भी अनुमान है कि इस कठिन लड़ाई में वह अकेले हैं।
अल्पेश ठाकोर का मामला सबसे ज्यादा सोचने वाला है। वाइब्स ऑफ इंडिया से एक स्पष्ट बातचीत में अल्पेश कहते हैं, ‘हां, मुझे कभी-कभी लगता है कि पिछड़े वर्गों के लिए मेरा योगदान उस समय बेहतर था, जब मैं ठाकोर सेना का नेतृत्व कर रहा था और किसी राजनीतिक दल में शामिल नहीं हुआ था।’
तो क्या उन्हेंं बीजेपी में शामिल होने का पछतावा है? वह जवाब देते हैं, ‘यह सब सोचने का समय नहीं है। मैं अपने काम पर ध्यान देने की कोशिश कर रहा हूं। मैंने पहले कोविड -19 और फिर चक्रवात टॉक्टे से पीडि़त लोगों के दुख समझने के लिए मैंने 176 तालुकाओं का दौरा किया। मेरा (क्षत्रिय ठाकोर सेना का) लगभग 10,000 गांवों में नेटवर्क है और इसलिए मैं लगातार सफर पर रहता हूं।’
क्या वह कभी अपने दिल में सोचते हैं कि कांग्रेस एक बेहतर विकल्प होता, बात काटते हुए अल्पेश हंसते हुए कहते हैं, ‘आप क्या सुनना चाहते हैं? मैंने पहले ही आपके इससे बड़े सवाल का जवाब दिया था कि सामाजिक कार्यकर्ता होना बेहतर है या किसी पार्टी का हिस्सा बनना।’
बात करते हैं हार्दिक पटेल की। 20 जुलाई, 2020 को उनके 27वें जन्मदिन से थोड़ा पहले ही उन्हें गुजरात कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष नामित किया गया, जो कि थोड़ा अर्थहीन पद है।
इस पर पटेल ने जोर देकर कहा, ‘देखिए, मैं किसी पद के लिए लालायित नहीं रहा हूं। मुझे कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था, ताकि मुझे काम दिया जाए, मुझे दौड़ाया जाए, मुझसे कड़ी मेहनत करवाई जाए और मेरी पूरी क्षमता का उपयोग हो। और अब एक साल से अधिक समय हो गया है।’
कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में उन्हें ऑटो-पायलट की तरह काम करना चाहिए और निर्देशों का इंतजार नहीं करना चाहिए, इस बात पर उन्होंने कहा, ‘2017 के चुनावों के बाद और कोविड की पहली लहर आने तक यानी मार्च, 2020 तक मैं लगातार सार्वजनिक संपर्क बनाने के लिए काम करता रहा हूं। इसके बाद भी मैं ऐसा कर रहा हूं। यह मेरी पहल है न कि कांग्रेस की कोई योजना।’
तो, क्या उन्हेंं कांग्रेस पार्टी में शामिल होने का पछतावा है और उन्हेंं लगता है कि एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में काम करना बेहतर था? उन्होंने जवाब दिया, ‘नहीं, ऐसा नहीं है। मेरा मानना है कि यह सही समय है जब गुजरात में भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस एक सूत्रीय एजेंडा के साथ एकजुट ताकत के रूप में सोचे और व्यवहार करे। याद रखिए, 2002 में कांग्रेस ने 60 सीटें जीती थीं, जो बाद में 80 हो गईं। इन्हें 110 पर पहुंचाना भी असंभव नहीं है, और जरूरत तो सिर्फ 92 की है।’
कांग्रेस में आने पर पछतावे की बात पर दोबारा जोर देने पर हार्दिक भी अल्पेश की तरह हंसते हुए कहते हैं, ‘कभी-कभी जब मैं अकेला होता हूं और अपने सफर के बारे में चिंतन करता हूं, तो मुझे लगता है कि एक सामाजिक कार्यकर्ता की भूमिका बेहतर हो सकती थी। लेकिन, तभी मैं यह भी महसूस करता हूं कि व्यक्तिगत रूप से, एक कार्यकर्ता के रूप में अपनी सीमाएं हैं। इसलिए मौजूदा शासन से लडऩे के लिए एक राजनीतिक दल महत्वपूर्ण है।’
जिग्नेश मेवाणी ने वाइब्स ऑफ इंडिया से कहा, ‘हां, मैं अकेलापन महसूस करता हूं, लेकिन मुझे इस बात का कोई अफसोस नहीं है कि मैं किसी राजनीतिक दल में शामिल नहीं हुआ। मैं अकेला महसूस करता हूं क्योंकि मुझे लगता है कि हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर, जिग्नेश मेवाणी, कन्हैया कुमार, चंद्रशेखर आजाद, शेहला राशिद एक संयुक्त युवा मोर्चा बना सकते थे।
उन्होंने आगे कहा, ‘अगर हार्दिक, अल्पेश और मैं केवल प्रचार अभियान पर चर्चा के लिए नहीं बल्कि रणनीतिक रूप से गुजरात में मोर्चा बनाने और समान विचारधारा वाले दलों के साथ गठबंधन के लिए एक साथ आए होते, तो हम 2022 तक कम से कम 15 से 20 सीटों पर जीत के लिए तैयार होते।’ (गुजरात में विधानसभा की 182 सीटें हैं)। और जिग्नेश बताते हैं कि उन्होंने यह विचार रखा था, लेकिन किसी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। वह कुछ अफसोस के साथ कहते हैं, ‘सबका अपना सफर है।’