एक दशक पहले शनिवार का दिन था, जब शगुफ्ता जान अपनी सहेलियां के साथ बारामूला के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल गुलमर्ग के खुले आकाश में मजे की जिंदगी जी रही थीं। तब वह बी.एससी. अंतिम वर्ष की छात्रा थीं। अपने तीन भाई-बहनों में सबसे बड़ी। लेकिन स्नातक करते ही उसकी शादी कर दी गई। कमजोर दिखती 31 वर्षीया जान बताती हैं- “बहुत खुशमिजाज लड़की थी मैं। तब यह सपने के सच होने जैसा था।” लेकिन उसका सारा उत्साह क्षणिक था। “अब मुझे इस फैसले पर पछतावा है,” वह कहती हैं- “मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरे साथ कूड़ेदान की तरह भी व्यवहार किया जाएगा।”
शगुफ्ता निःसंतान हैं।
“अगर मैं गर्भधारण नहीं कर सकती तो इसमें मेर क्या कुसूर?” उन्होंने पूछा। उनके पति मोहम्मद अयूब से जब भी लोग उनकी संतानहीनता के बारे में पूछते हैं, तो वे खामोश हो जाते हैं। गूंगे की तरह। “…और मैं बहरी बन जाती हूं।” अयूब कहते हैं कि ताने, भद्दे कमेंट्स और तिरस्कार वाली नजरों को देखकर लगता है, मानो हम किसी अन्य ग्रह के प्राणी हैं।
हाथ में मोबाइल फोन लिए आहें और सिसकियों के बीच जान कहती हैं, “हमने कोई कसर नहीं छोड़ी। आप कश्मीर के किसी भी प्रसिद्ध स्त्री रोग विशेषज्ञ का नाम लीजिए, इलाज की खातिर हम उन सबके पास गए हैं, लेकिन सब फिजूल रहा है।” अयूब तंज से कहते हैं- “हम तमाम धर्मस्थलों में गए। दरगाहों में जाकर मन्नत के धागे भी बांधे, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।”
अयूब और शगुफ्ता की तरह कश्मीर में निःसंतान दंपतियों के साथ व्यवहार ऐसा ही उपेक्षा वाला किया जाता है। उन्हें नीचा दिखाया जाता है। “हम किसी शादी या शोक समारोह में नहीं जाते।” जान कहती हैं कि उन्हें बांझ कहा जाता है, जो नवविवाहितों और यहां तक कि मृतकों के लिए भी एक अपशकुन है।
घाटी के प्रमुख अस्पताल शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (एसकेआईएमएस) के अध्ययन के मुताबिक, कश्मीर की 15 फीसदी महिलाओं में पीसीओएस पाया गया है। अस्वास्थ्यकर जीवनशैली, तनाव, हार्मोनल असंतुलन और देर से शादी होने के कारण यह संख्या बढ़ ही रही है। घाटी के प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डॉ मुश्ताक मार्गूब के एक शोध के अनुसार, कश्मीर की 7.35 फीसदी आबादी पीटीएसडी (पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर) से प्रभावित है। यह तनाव और अवसाद की जड़ है, जो बांझपन का वजह बन सकती है।
मेंटल हेल्थ काउंसलर डॉ. आरिफ खान के मुताबिक, पिछले तीन दशकों की उथल-पुथल में महिलाएं आसान शिकार बनी हैं। “इससे उनके प्रजनन स्वास्थ्य पर असर पड़ा है।”
मुस्लिम बहुल क्षेत्र में गोद लेने को लेकर कई सवाल उठाए जाते हैं। लेकिन इस्लामिक कानून के अनुसार, कोई दंपती न तो बच्चा खरीद सकता है और न ही उन्हें पाल सकता है। एक स्थानीय मौलवी मुफ्ती ज़हूर कासमी ने कहा- “यह एक गंभीर गुनाह है।”
कासमी स्पष्ट करते हैं कि ज़ैद बिन साबित को पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब ने कुछ समय के लिए गोद लिया था, क्योंकि उन्हें उस समय माता-पिता की देखभाल की आवश्यकता थी। “अगर कोई अपने बच्चे को पालन-पोषण के लिए देने को तैयार है, तो यह ठीक है। लेकिन, बच्चा खरीदना अवैध धंधा माना जाता है जो इस्लाम के खिलाफ है।”