भाजपा ने 29 अगस्त को दिल्ली शिक्षा विभाग में एक घोटाले का आरोप लगाते हुए कहा था कि राज्य सरकार ने केंद्रीय लोक निर्माण विभाग के दिशानिर्देशों की अनदेखी करते हुए अपने मौजूदा स्कूलों में कक्षाओं के निर्माण के लिए बजट बढ़ा दिया है।
यह स्पष्ट रूप से इस बात के संकेत माने जा सकते हैं कि भाजपा केजरीवाल के दिल्ली ‘शिक्षा मॉडल’ की वैश्विक चर्चाओं से हिल गई है, और उसे अब दिल्ली के स्कूलों की शिक्षा गुणवत्ता को चुनौती देने वाले कारकों की तलाश है।
गौरतलब है कि, अप्रैल में, जब दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया (Delhi deputy CM Manish Sisodia) ने गुजरात के सरकारी स्कूलों का दौरा किया और राज्य के शिक्षा मॉडल पर सवाल उठाया था। गुजरात के शिक्षा मंत्री के विधानसभा क्षेत्र भावनगर के कुछ स्कूलों का दौरा करने के बाद, सिसोदिया ने ट्विटर पर प्रधानमंत्री के गृह राज्य में स्कूलों की स्थिति को उजागर किया था। उन्होंने ट्वीट किया था कि, ‘गुजरात के शिक्षा मंत्री के विधानसभा क्षेत्र के स्कूलों में शौचालय, फर्श और यहां तक कि बेंच भी नहीं है। जब गुजरात के शिक्षा मंत्री जीतू भाई बघानी की विधानसभा में सरकारी स्कूलों की हालत खराब होगी, तो गुजरात के बाकी हिस्सों में सरकारी स्कूलों की हालत और खराब होगी।”
हाल ही में प्रतिष्ठित मैगजीन न्यूयार्क टाइस्म ने अपने फ्रंट पेज पर दिल्ली सरकार के “शिक्षा मॉडल” और मनीष सिसोदिया द्वारा शिक्षा क्षेत्र में किए गए कार्यों का विस्तृत उल्लेख किया गया था। जिसके बाद भाजपा का आलाकमान उसे पेड न्यूज बताने की होड़ में जुट गया था। जबकि, न्यूयार्क टाइस्म ने अपने एक आधिकारिक बयान में यह स्पष्ट किया था कि, उनकी टीम में स्वयं दिल्ली के स्कूलों की पड़ताल की और वहां की हकीकत देखने के बाद रिपोर्ट प्रकाशित की।
पूरे देश में दिल्ली मॉडल शिक्षा की चर्चाओं ने भाजपा शासित राज्यों में शिक्षा व्यवस्थाओं की किरकिरी करना शुरू कर दिया था।
इसी क्रम में हाल ही में गुजरात विधानसभा चुनाव से ठीक कुछ ही महीने पहले भाजपा शासित गुजरात सरकार दावा कर रही है कि, बीते चार सालों में गुजरात के 11.3 लाख छात्र निजी स्कूलों को छोड़ सरकारी स्कूलों में नामांकन कराएं हैं, जिसका मुख्य कारण सरकारी स्कूलों में शिक्षा की अच्छी गुणवत्ता बताया गया है।
गुजरात सरकार ने दावा किया है कि, गुजरात में निजी से सरकारी स्कूलों (government schools) में छात्रों के रिवर्स माइग्रेशन (reverse migration) की प्रवृत्ति देखी जा रही है। राज्य के शिक्षा विभाग द्वारा बनाए गए आंकड़ों के अनुसार, पिछले चार वर्षों में, कक्षा 1-8 में पढ़ने वाले 11.3 लाख प्राथमिक छात्रों ने निजी स्कूलों को छोड़ दिया है और सरकारी स्कूलों में प्रवेश लिया है।
जबकि 2020-21 और 2021-22 के महामारी के वर्षों में गुजरात में निजी से सरकारी स्कूलों में क्रमशः 2.85 लाख और 3.49 लाख छात्रों का सबसे अधिक प्रवास देखा गया। यह घटना 2022 में भी जारी रही है क्योंकि इस शैक्षणिक वर्ष (academic year) में 2.24 लाख छात्र निजी से सरकारी स्कूलों में स्थानांतरित हो गए हैं।
प्रमुख शिक्षा सचिव (Principal education secretary) विनोद राव ने कहा कि राज्य के सरकारी स्कूलों में रिवर्स माइग्रेशन का चलन करीब पांच साल पहले शुरू हुआ था। राव ने कहा, “पहले, सरकारी स्कूलों से छात्रों की संख्या कम हो रही थी, जो अब उलट गया है। निजी स्कूलों से अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में प्रवेश दिलाने वाले माता-पिता की यह पहल सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार का एक अच्छा संकेत है।”
गुजरात स्टेट स्कूल मैनेजमेंट एसोसिएशन (president of the Gujarat State School Management Association) के अध्यक्ष भास्कर पटेल ने कहा कि इस बदलाव के लिए फीस एक प्रमुख कारक है, और शिक्षा की गुणवत्ता दूसरी कारक हो सकती है। शिक्षाविद संख्या को लेकर थोड़े संशय में हैं। “इसमें कोई शक नहीं है कि पैसे और दूरी जैसे कारकों के लिए कई छात्र निजी स्कूलों से सरकारी स्कूलों में स्थानांतरित हो गए। यहां तक कि हमने इतनी बड़ी मात्रा में बदलाव नहीं देखा है, यह एक शहरी घटना होने की अधिक संभावना है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा विकल्प नहीं हैं।”
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