यूपी के लखीमपुर खीरी में पिछले साल अक्टूबर में एक एसयूवी से चार किसानों को कुचल देने और बाद में नाराज प्रदर्शनकारियों की हिंसा में भाजपा के दो कार्यकर्ताओं और एक चालक की हत्या और एक पत्रकार की मौत के मामले में कथित तौर पर एक गवाह को धमकी दी गई है। मामले में किसानों की ओर से पैरवी कर रहे वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट में दावा किया कि गवाह को धमकी दी गई है कि “भाजपा जीत गई है, अब तुम्हें देख लेंगे।” इस पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए संज्ञान लिया है और कहा है कि वह एक अलग पीठ बनाकर इसकी सुनवाई करेगा।
उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि वह लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में केन्द्रीय मंत्री अजय मिश्रा के बेटे एवं मामले में मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा को इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा जमानत दिए जाने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के लिए एक पीठ का गठन करेगा। इस हिंसा में चार किसानों सहित आठ लोग मारे गए थे।
प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमण की अगुवायी वाली एक पीठ ने किसानों की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण की उस दलील पर गौर किया कि मामले के मुख्य गवाहों में से एक पर हमला किया गया था। भूषण ने कहा कि गवाह पर हमला करने वाले लोगों ने कहा,‘‘ अब भाजपा जीत गई है, वे उसका ख्याल रखेंगे।’’
लखीमपुर खीरी कांड के मुख्य आरोपित आशीष मिश्रा उर्फ मोनू जेल से रिहा
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि वह मामले की सुनवाई के लिए एक पीठ का गठन करेंगे, जिसने पहले भी इससे जुड़े मामले पर सुनवाई की है। इसके बाद उन्होंने याचिका को बुधवार के लिए सूचीबद्ध किया। प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने इससे पहले इस घटना से मारे गए लोगों से संबंधित एक मामले की सुनवाई की थी और जांच की निगरानी के लिए पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के एक पूर्व न्यायाधीश को नियुक्त किया था। शीर्ष अदालत आशीष मिश्रा की जमानत को चुनौती देने वाली याचिका पर मंगलवार को सुनवाई करने के लिए 11 मार्च को सहमत हो गई थी।
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में हिंसा में मारे गए किसानों के परिवारों के तीन सदस्यों ने मामले में मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा को इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा जमानत दिये जाने को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने 10 फरवरी को मिश्रा को मामले में जमानत दे दी थी। इससे पहले वह चार महीने तक हिरासत में रहे थे।
हाल ही में अधिवक्ता शिव कुमार त्रिपाठी और सी. एस. पांडा ने आशीष मिश्रा की जमानत रद्द करने की मांग करते हुए एक और याचिका दायर की थी, जिनके पत्र पर शीर्ष अदालत ने घटना का स्वत: संज्ञान लिया था।
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