योग गुरु बाबा रामदेव और उनकी कंपनी पतंजलि को दिल्ली हाई कोर्ट से झटका लगा है। हाई कोर्ट ने पतंजलि की दवा कोरोनिल से कोविड-19 का इलाज होने के दावे को लेकर उनकी सफाई को मानने से इनकार कर दिया है।
मामले की अगली सुनवाई 17 अगस्त को होगी। तब तक अदालत ने कंपनी को एक और स्पष्टीकरण के साथ आने को कहा है। साथ ही कहा कि अदालत को दिया गया वर्तमान मसौदा स्पष्टीकरण आपत्तिजनक दावों को वापस लेने के बजाय उसे सही ठहराने की कोशिश अधिक लगती है।
अदालत पिछले साल रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), ऋषिकेश और कई अन्य डॉक्टर असोसिएशनों की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें रामदेव और उनकी कंपनी द्वारा कोरोनिल की मार्केटिंग करते हुए गलतबयानी और लोगों में भ्रम फैलाने का आरोप लगाया गया था। इस कोशिश में कोविड-19 के इलाज में एलोपैथिक दवा और डॉक्टरों के बारे में अपमानजनक टिप्पणी भी गई थी।
इस साल जुलाई में मामले में ही हुई पिछली सुनवाई में पतंजलि और रामदेव ने अदालत से कहा था कि वे याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाए जा रहे मुद्दे पर सार्वजनिक स्पष्टीकरण जारी करना चाहते हैं। अदालत ने दोनों पक्षों को उक्त स्पष्टीकरण के साथ एकसाथ आने का निर्देश दिया था।
हालांकि, वर्तमान सुनवाई में याचिकाकर्ताओं (डॉक्टरों की असोसिएशनों) ने अदालत को बताया कि रामदेव और उनकी कंपनी ने जो मसौदा स्पष्टीकरण पेश किया है, उस पर उनकी सहमति नहीं है।
रामदेव की कानूनी टीम द्वारा तैयार किए गए स्पष्टीकरण के मसौदे को पढ़ने के बाद न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी ने टिप्पणी की कि बयान में “प्रतिवादी को सही ठहराने की कोशिश की तरह” लिखा है। उन्होंने कहा, “यह स्पष्टीकरण के बजाय एक खंडन की तरह है।”
रामदेव का मसौदा स्पष्टीकरण दरअसल यह दावा करते हुए है कि कोरोनिल के बारे में दिए गए बयानों में बहुत सारी “गलत सूचना, गलत व्याख्या और गलतफहमी” है। स्पष्टीकरण इस प्रकार है:
“यह स्पष्ट रूप से बताया जाता है कि उत्पाद कोरोनिल एक इम्यून बूस्टर है। यह विशेष रूप से सांसनली में तकलीफ रोकने और सभी प्रकार के बुखार के साथ कोविड-19 को ठीक करने के लिए प्रामाणिक उपाय है।”
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, मसौदे में यह भी कहा गया है कि कोरोनिल को केंद्र सरकार द्वारा जारी “अधिसूचनाओं का सख्त पालन” करते हुए लॉन्च किया गया था और इसे “आवश्यक लाइसेंस” दिया गया था।
इसमें आगे कहा गया है, “उसी के मद्देनजर कोरोनिल का कोविड-19 के रोगियों पर परीक्षण किया गया। परीक्षण में इसे ऐसे सभी रोगियों पर सफल पाया गया। इसी को देखते हुए कोरोनिल से इलाज के बारे में कहा गया था। हालांकि, बाद में यह स्पष्ट किया गया कि कोरोनिल कोविड-19 के लिए केवल एक पूरक उपाय है। ”
डॉक्टरों और एलोपैथी के बारे में योग गुरु के प्रतिकूल बयानों के संबंध में रामदेव और पतंजलि ने कहा कि उन्होंने पहले ही डॉक्टरों से सार्वजनिक माफी मांग ली थी और प्रस्ताव दिया था कि स्पष्टीकरण में यह बयान शामिल होगा कि उनके मन में डॉक्टरों और चिकित्सा समुदाय के लिए अत्यधिक सम्मान है।
वैसे न्यायमूर्ति भंभानी ने प्रस्तावित बयान के साथ कई मुद्दे उठाए थे। जस्टिस भंभानी को बार और बेंच ने यह कहते हुए उद्धृत किया, “देखिए बात यह है कि इसे अनावश्यक शब्दों और बारीकियों में उलझाने से बचना होगा। आपने जनता को दो धारणाएं दी: एक यह कि एलोपैथिक डॉक्टरों के पास इलाज नहीं है और दूसरा कि कोरोनिल से इसका इलाज है … आप यह नहीं कह सकते कि यह एक पूरक उपाय है … आपकी बात आपके जवाब में साफ-साफ होने चाहिए। यदि आपके पास प्रामाणिक विचार हैं, तो इसे इस स्पष्टीकरण में छुपाया गया है।”
डॉक्टरों की असोसिएशनों की ओर से सीनियर वकील अखिल सिब्बल ने कहा कि याचिकाकर्ता चाहते हैं कि स्पष्टीकरण में यह लिखा होना चाहिए कि कोरोनिल कोविड-19 का इलाज नहीं है, न ही इसका कोई चिकित्सा उपचार है; कि कोरोनिल केवल एक इम्यूनिटी बूस्टर है जो कोविड-19 के इलाज में मदद कर सकता है। यह भी कि रामदेव की मंशा कभी भी लोगों को टीका लगवाने और बीमारी के लिए एलोपैथिक इलाज कराने से हतोत्साहित करने की नहीं थी।
सिब्बल ने रामदेव की दवाओं के लिए नकली प्रशंसापत्र का भी उल्लेख किया जिसमें कहा गया है कि जिन लोगों ने कोरोनिल लिया, वे कोविड-19 से सुरक्षित थे। जबकि जिन्होंने इसे नहीं लिया, वे अभी भी मर रहे हैं।
रामदेव और पतंजलि की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पीवी कपूर ने आरोप लगाया कि डॉक्टरों की असोसिएशनों द्वारा मुकदमेबाजी “प्रेरित” है और कोई “मुकदमे का खर्च” उठा रहा है। इस आरोप को सिब्बल ने सिरे से खारिज कर दिया।
जहां सिब्बल ने गुण-दोष के आधार पर मामले का फैसला करने की अपनी मांग पर जोर दिया, वहीं कपूर ने कहा कि पतंजलि एक बेहतर स्पष्टीकरण जारी करेगा और ऐसा करने के लिए एक और अवसर मांगा।
पीठ ने देश में कोविड-19 के मामलों में हालिया बढ़ोतरी के मद्देनजर तत्काल समाधान की आवश्यकता को देखते हुए प्रतिवादी को एक और स्पष्टीकरण का मसौदा तैयार करने का मौका दिया। इसके साथ ही मामले की सुनवाई 17 अगस्त तक टाल दी। हालांकि, न्यायमूर्ति भंभानी ने कहा कि यदि उस तिथि तक स्पष्टीकरण जारी नहीं किया जाता है, तो मामले की सुनवाई गुण-दोष के आधार पर की जाएगी।
बाबा रामदेव 31000 करोड़ की कंपनी में बिना किसी निवेश के होंगे 80% के मालिक