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मर कर भी भारत, पाकिस्तान को एकजुट कर गए दिलीप कुमार!

| Updated: July 10, 2021 11:27 am

वह चाहे क्रिकेट हो या हॉकी या सिनेमा या फिर राजनीति, भारत और पाकिस्तान कभी किसी बात पर सहमत नहीं होते, सिवाय दिलीप कुमार के। वह पाकिस्तान में उतने ही बड़े लीजेंड थे, जितने बड़े भारत में। इसीलिए उन्होंने 7 जुलाई को अंतिम सांस लेने के साथ ही दोनों पड़ोसियों को कुछ देर के लिए एकजुट कर दिया।

पेशावर में 11 दिसंबर, 1922 को मोहम्मद यूसुफ खान के रूप में जन्मे दिलीप कुमार काफी छोटे थे, जब उनके फल व्यापारी पिता गुलाम सरवर खान 1930 के दशक में मुंबई चले गए। उनका मुख्य उद्देश्य अपने बारह बच्चों को एक बेहतर जीवन देना था। लेकिन उन्हें इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि उनका एक बेटा इतना ऊंचा उठेगा कि बाकी सब भी उनसे जुड़े होने के कारण समान रूप से सम्मानित होंगे।

2006 में जब दिलीप कुमार के मुगल-ए-आज़म का रंगीन संस्करण पाकिस्तान में जारी किया गया था, तब आज वीरान पड़े निशात सिनेमा को किसी मुगल महल की तरह भव्य रूप में सजाया गया था। यह दुर्लभ क्षणों में से एक था, क्योंकि पाकिस्तान में 1960 के दशक से भारतीय फिल्मों को प्रदर्शित नहीं किया जाता था।

दोनों देशों के संबंधों के बावजूद एक चीज जो महान अभिनेता के साथ रही, वह थी उनके जन्मस्थान पेशावर के लिए उनका प्यार। विभाजन के बाद 1988 में वह न केवल किस्सा ख्वानी बाजार में खुदाद कॉलोनी स्थित अपने पुश्तैनी घर गए, बल्कि उन्होंने मृत्युशय्या पर पड़े अपने साथी अभिनेता राज कपूर की सांसें बनाए रखने के लिए इलाके के छपली कबाब की खुशबू का इस्तेमाल भी किया।

वरिष्ठ पत्रकार कमर अहमद शिद्दत से दिलीप कुमार को याद करते हैं। यहां तक कि उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘फार मोर दैन ए गेम’ में भी उनका बार-बार जिक्र किया है। वरिष्ठ पत्रकार के अनुसार, जब उन्होंने 1947 में सिनेमा में पहली बार फिल्म जुगनू को देखा था, तो उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि एक दिन उस फिल्म का हीरो उन्हें तीस साल बाद अपनी फिल्म की शूटिंग देखने के लिए आमंत्रित करेगा! उन्होंने लिखा है, “ ऐसा 1979-80 में पाकिस्तान क्रिकेट टीम के भारत के ऐतिहासिक दौरे के दौरान हुआ था, जब मैं पहली बार पाकिस्तान के उच्चायुक्त द्वारा आयोजित एक समारोह में दिलीप कुमार से मिला था। हम कुछ दिनों बाद देव आनंद के घर पर फिर मिले। वहीं उन्होंने मुझे अपनी फिल्म शक्ति की शूटिंग देखने के लिए आमंत्रित किया। यह एक ऐसी याद थी जो हमेशा मेरे साथ रहेगी, क्योंकि मुझे अपने पसंदीदा अभिनेता को पहली बार काम करते हुए देखने को मिला था!’

कमर अहमद ने ट्विटर पर दिलीप कुमार के साथ अपनी कुछ यादगार तस्वीरें भी साझा की हैं, जहां उन्हें बचपन के दोस्त पाकिस्तानी अभिनेता मोहम्मद अली, उनकी पत्नी जेबा और अमिताभ बच्चन के साथ शक्ति के सेट पर देखा जा सकता है।

2012 में दिलीप कुमार के पुश्तैनी घर को पाकिस्तान की राष्ट्रीय विरासत घोषित किया गया था। वैसे पाकिस्तान सरकार तो पेशावर में बॉलीवुड सितारों दिलीप कुमार और राज कपूर के पुश्तैनी घरों को संरक्षित करने का प्रयास कर रही है, लेकिन स्थानीय स्तर पर इसे लेकर वहां के अधिकारी और सरकार के बीच लड़ाई चल रही है।

बॉम्बे (अब मुंबई) में बस जाने के बाद दिग्गज कलाकार ने अपने पुश्तैनी घर का पहली बार 1988 में दौरा किया। उन्होंने आसपास के क्षेत्रों का भी दौरा किया, जहां वे बड़े हुए और बचपन के दिन बिताए थे। स्थानीय लोग अभी भी उनकी यात्रा को याद करते हैं, जहां उन्होंने स्थानीय मस्जिद में नमाज पढ़ी थी और वहां के लोगों से ऐसे मिले जैसे वे उनके अपने परिवार थे।

हालांकि पत्रकार अल्तमिश जीवा के पास उस अनुभवी स्टार की कई सुनहरी यादें बरकरार हैं, जो पाकिस्तान में दिखाई भी गईं। बता दें कि अल्तमिश जीवा के पिता नाजिम जीवा ने ही 1988 में दिलीप कुमार को आधिकारिक रूप से पाकिस्तान आने के लिए राजी किया था। वह कहते हैं, ‘मैं मुश्किल से चार साल का था जब दिलीप साहब पाकिस्तान आए थे। मुझे अपने माता-पिता की उनसे और उनकी पत्नी सायरा बानो के साथ हुई बातचीत याद हैं। वे केवल साधारण लोग नहीं थे, बल्कि काफी विनम्र थे। उनके साथ कोई चकाचौंध वाली बात नहीं थी। फिर भी, वे जहां भी जाते, सुर्खियां में ही रहते थे। ऐसा लगा ही नहीं कि वे अपरिचित जगह में हों।’

वह याद करते हैं कि दिलीप कुमार और सायरा बानो के पाकिस्तान आने से पहले, स्कूल में शिक्षकों के हाथों उनकी पिटाई हुआ करती थी। हालांकि एक बार जब वे पाकिस्तान आए, और यह पता चला कि मेरे माता-पिता उन्हें जानते हैं, तो शिक्षक कुछ अधिक ही मेहरबान हो गए थे। ताकि उन्हें हमारे जरिये महान अभिनेता से मिलने का निमंत्रण मिल सके। अल्तमिश ने दिलीप कुमार और सायरा बानो की पहली पाकिस्तान यात्रा की कुछ तस्वीरें भी पोस्ट की हैं, जहां उनका स्वागत राजाओं की तरह हुआ था। आखिर वह ट्रेजिडी किंग थे, है ना?

पाकिस्तान की उनकी दूसरी ‘आधिकारिक’ यात्रा इसके दस साल बाद हई थी। तब पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने महान कलाकार को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-पाकिस्तान से सम्मानित किया था। वे दोनों देशों को करीब लाने में अपनी सेवाओं के लिए पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले और एकमात्र भारतीय अभिनेता हैं।

सीमा के इस तरफ के अभिनेता जैसे वहीद मुराद और नदीम न केवल दिलीप कुमार के प्रशंसक थे, बल्कि उन्होंने अपने करियर की शुरुआत में उनकी नकल भी की। भारत की तरह ही सीमा पार एक अभिनेता के रूप में उनकी पूजा की जाती है, और जब भी कोई अभिनेता एक दुखद दृश्य में अच्छा अभिनय करता है, तो वह अक्सर महान ‘दिलीप साहब’ से प्रेरित होता है।

दिग्गज अभिनेता दिलीप कुमार को वाघा सीमा के इस तरफ इतना प्यार किया गया था कि उनकी मृत्यु के बाद, लोगों के एक समूह ने पेशावर में उनके जन्मस्थान के पास उनकी अनुपस्थिति में उनकी नमाज-ए-जनाजा पढ़ी। जब वे जीवित थे तो लोग उन्हें अपनी मिट्टी का बेटा मानते थे। और, ऐसा मानने से उनकी मृत्यु भी उन्हें नहीं रोक सकती।

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