द्रमुक भी पहुंची सुप्रीम कोर्ट, कहा- आर्थिक न्याय वाली कल्याणकारी योजनाओं को रेवड़ी कहना गलत

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द्रमुक भी पहुंची सुप्रीम कोर्ट, कहा- आर्थिक न्याय वाली कल्याणकारी योजनाओं को रेवड़ी कहना गलत

| Updated: August 17, 2022 09:17

नई दिल्लीः तमिलनाडु( Tamil Nadu )की द्रमुक सरकार (DMK Government )ने मुफ्त उपहार के मामले में सुप्रीम कोर्ट( Supreme Court )में याचिका दायर की है। इसमें कहा गया है कि “मुफ्तखोरी” का दायरा बहुत व्यापक है। इसलिए “ऐसे कई पहलू हैं जिन पर विचार करने की आवश्यकता है।” बता दें कि शीर्ष अदालत उस याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें चुनाव के समय मुफ्त उपहार (Free Gift )के वादे को चुनौती दी गई है। इसमें कहा गया है कि इस प्रथा से किसी राज्य पर वित्तीय बर्बादी आ सकती है। अब तक अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party), जो अपने शासन वाले राज्यों में मुफ्त बिजली और पानी (Free Electricity and Water) उपलब्ध कराने के लिए जानी जाती है, ने याचिका का विरोध किया है। मुफ्तखोरी के खिलाफ याचिका भाजपा के अश्विनी उपाध्याय (BJP’s Ashwini Upadhyay) की है।

मुख्यमंत्री एमके स्टालिन (Chief Minister MK Stalin )की द्रमुक पार्टी ने अपनी याचिका में कहा है कि केवल राज्य सरकार (State Government )द्वारा शुरू की गई कल्याणकारी योजना को फ्रीबी यानी मुफ्त उपहार के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है। याचिका के मुताबिक, “संघ में सत्तारूढ़ सरकार विदेशी कंपनियों को कर अवकाश दे रही है, प्रभावशाली उद्योगपतियों के खराब कर्ज की माफी, इष्ट समूहों को महत्वपूर्ण अनुबंध देने आदि पर भी विचार किया जाना चाहिए और इसे अछूता नहीं छोड़ा जा सकता है।”

द्रमुक ने तर्क दिया, “इस माननीय न्यायालय के पास सूक्ष्म और मैक्रो दोनों स्तरों पर परिणामी परिणामों और सामाजिक कल्याण के परिमाण पर विचार किए बिना केंद्र / राज्य विधानमंडल द्वारा किसी भी योजना या अधिनियम को ‘फ्रीबी’ के रूप में वर्गीकृत करने के लिए प्रतिबंधात्मक दृष्टिकोण नहीं हो सकता है।” .याचिका में यह भी कहा गया है कि एक कल्याणकारी योजना में, संविधान के अनुच्छेद 38 के तहत “आय, स्थिति, सुविधाओं और अवसरों में असमानताओं को कम करने के लिए” सामाजिक व्यवस्था और आर्थिक न्याय को सुरक्षित करने के इरादे से मुफ्त सेवा शुरू की गई है।

याचिका में कहा गया है, “किसी भी कल्पनीय वास्तविकता में, इसे ‘फ्रीबी’ के रूप में नहीं माना जा सकता है।” बता दें कि पहले की एक सुनवाई में मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण की अगुवाई वाली पीठ ने कहा था कि मुफ्त का प्रावधान एक गंभीर आर्थिक मुद्दा है और चुनाव के समय “फ्रीबी बजट” नियमित बजट से ऊपर चला जाता है। पीठ ने चुनाव आयोग से इस मामले में दिशा-निर्देश तैयार करने को कहा था। लेकिन पोल पैनल ने जवाब दिया था कि कानून के अभाव में, वह सत्ता में आने पर राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त उपहार देने के वादों को विनियमित नहीं कर सकता है।

अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal )की आप ने भी अदालत में याचिका दायर कर रखी है, जिसमें द्रमुक (DMK )की तरह ही दलीलें दी गई हैं।

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