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कॉमन सिविल कोड को लागू करने के लिए गुजरात सरकार ने दी पैनल को मंजूरी

| Updated: October 29, 2022 7:15 pm

गुजरात सरकार ने राज्य में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) को लागू करने की दिशा में पहले कदम को मंजूरी दे दी है। यह फैसला विधानसभा चुनाव से पहले आया है, जिसकी तारीखों की घोषणा अभी चुनाव आयोग (Election Commission) ने नहीं की है।

गुजरात के गृह मंत्री हर्ष सांघवी ने शनिवार को मीडिया को बताया कि मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने राज्य में समान नागरिक संहिता यानी कॉमन सिविल कोड को लागू करने के लिए पैनल बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। सांघवी ने कहा कि यह “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में एक ऐतिहासिक निर्णय है।”

बाद में भूपेंद्र पटेल ने गुजराती में ट्वीट किया, “राज्य में समान नागरिक संहिता की जरूरत की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के किसी सेवानिवृत्त (retired) जज की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति (high-level committee) बनाने के लिए राज्य मंत्रिमंडल (state Cabinet) ने महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। ताकि कमेटी उसके लिए मसौदा (draft) तैयार करे।”

इससे पहले उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा था कि वह नई सरकार के शपथ लेने के तुरंत बाद समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने के लिए समिति बनाएंगे। उन्होंने एक वीडियो बयान में कहा था कि समिति के दायरे में विवाह, तलाक, जमीन जायदाद और उत्तराधिकार (succession) से जुड़े मुद्दे शामिल होंगे।

कॉमन सिविल कोड पर राज्य सरकार के फैसले पर बात करते हुए केंद्रीय पशुपालन मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने कहा, “गुजरात के मुख्यमंत्री जल्द ही समिति का गठन करेंगे और घोषणा करेंगे। सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार करने के लिए यूसीसी लाया जा रहा है, ताकि धार्मिक आधार (religious grounds) पर और साथ ही अन्य मामलों में कोई नागरिक विवाद (civil dispute) पैदा न हो। इसमें धार्मिक (religious) या लैंगिक आधार (gender grounds) पर कोई भेदभाव (discrimination) नहीं किया जाएगा।”

समान नागरिक संहिता क्यों?

केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने उन कारणों पर जोर दिया, जिनके कारण यूसीसी को लेकर फैसला हुआ। उन्होंने कहा, ‘गुजरात सरकार को शादी और संपत्ति से जुड़े विवादों की गंभीर शिकायतें मिली थीं। हम सबको को न्याय देना चाहते थे और उनकी लड़ाई से बचना (avoid their conflicts) चाहते थे। इसलिए, हमने यूसीसी को व्यवहार में लाने का फैसला किया।

काम की गुंजाइश

रूपाला ने कहा कि राम मंदिर और कश्मीर की तरह ही गुजरात सरकार ने भी यूसीसी पास किया है। जल्द ही एक कमेटी बना दी जाएगी। फिर उसकी रिपोर्ट के आधार पर राज्य में इस कानून को लागू करने का रास्ता खुलेगा। गुजरात चुनाव से ठीक पहले समिति बनाने के बारे में रूपाला ने कहा, ‘इसका चुनाव से कोई लेना-देना नहीं है। यूसीसी की योजना काफी समय से चल रही थी।”

मंत्रिमंडल ने मुख्यमंत्री को समिति बनाने का अधिकार दिया है, जिसमें तीन से चार सदस्य होने की उम्मीद है। इसके कार्य का दायरा (scope of work) भी तय किया जाएगा। मुझे विश्वास है कि जब समिति की घोषणा की जाएगी, समय-सीमा (timeline) भी घोषित की जाएगी।”

आदिवासियों के लिए क्या?

क्या आदिवासियों पर भी यूसीसी लागू होगा? इस पर रूपाला ने कहा, “यह धार्मिक और सांप्रदायिक स्थितियों (religious and communal position) में समानता (commonality) लाने का एक प्रयास है, जो अधिकारों और नागरिक विवादों में अंतर लाता है। आदिवासी संवैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त पहचान (constitutionally recognised identity) हैं, वे धार्मिक या सांप्रदायिक श्रेणियों (religious or communal categories) के अंतर्गत नहीं आते हैं। जी हां, यह संविधान के तहत (under the constitution) सभी पर लागू होगा।”

समान नागरिक संहिता की परिभाषा

समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी सभी धार्मिक संप्रदायों के लिए विवाह, तलाक, उत्तराधिकार (inheritance) और गोद (adoption) लेने जैसे मुद्दों को नियंत्रित करने के लिए पूरे देश के लिए एक समान कानून की बात करती है। कानून संविधान के अनुच्छेद 44 (Article 44 ) द्वारा अनिवार्य (mandated) है, जिसमें कहा गया है कि राज्य को देश भर में अपने निवासियों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए काम करना चाहिए।

हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की सरकारें समान नागरिक संहिता को अपनाने के अपने इरादे पहले ही घोषित कर चुकी हैं। भारत में समान नागरिक संहिता बनाने और लागू करने की योजना यह सुनिश्चित करेगी कि सभी व्यक्ति, लिंग या धर्म की परवाह किए बिना समान व्यक्तिगत कानूनों (same personal laws) के अधीन हैं।

बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान समान नागरिक संहिता को अपने घोषणापत्र में शामिल किया था। पार्टी ने कहा था कि लैंगिक समानता (gender equality) तभी आएगी, जब समान नागरिक संहिता लागू होगी।

विभिन्न पार्टी के कई नेताओं ने भी समान नागरिक संहिता का समर्थन किया है। हालांकि, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने इसे “असंवैधानिक (unconstitutional) और अल्पसंख्यक विरोधी (anti-minority )” करार दिया है। बता दें कि केंद्र ने इस महीने की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि वह संसद को देश में समान नागरिक संहिता पर कोई कानून बनाने या लागू करने का निर्देश नहीं दे सकता है।

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