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H-1B वीज़ा पर $100,000 शुल्क का मामला: ट्रम्प प्रशासन को मिली कानूनी चुनौती, US चैंबर ऑफ कॉमर्स ने खोला मोर्चा

| Updated: October 24, 2025 13:45

US चैंबर ऑफ कॉमर्स ने $100,000 शुल्क को बताया 'गैरकानूनी', ट्रम्प प्रशासन बोला- 'धोखाधड़ी रोकने के लिए यह जरूरी'

नई दिल्ली: डोनाल्ड ट्रम्प के नेतृत्व वाले प्रशासन द्वारा H-1B वीज़ा पर लगाए गए $100,000 के भारी-भरकम नए शुल्क को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। इस नई नीति के खिलाफ कई मुकदमे दायर किए जाने के बाद, प्रशासन अब अदालत में अपने फैसले का बचाव करने की तैयारी कर रहा है।

व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलीन लेविट ने गुरुवार (स्थानीय समय) को स्पष्ट किया कि प्रशासन इन कानूनी चुनौतियों का डटकर मुकाबला करेगा। उन्होंने तर्क दिया कि H-1B प्रणाली का वर्षों से दुरुपयोग किया गया है और इस नई नीति का मुख्य उद्देश्य अमेरिकी श्रमिकों के हितों की रक्षा करना है।

लेविट ने व्हाइट हाउस ब्रीफिंग के दौरान पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा, “प्रशासन इन मुकदमों का अदालत में सामना करेगा। राष्ट्रपति की सर्वोच्च प्राथमिकता हमेशा से अमेरिकी श्रमिकों को पहले रखना और हमारी वीज़ा प्रणाली को सुदृढ़ करना रही है।”

उन्होंने आगे कहा, “बहुत लंबे समय से, H-1B वीज़ा प्रणाली में धोखाधड़ी होती रही है, और इससे अमेरिकी वेतनमान में गिरावट आई है। इसलिए राष्ट्रपति इस प्रणाली में सुधार करना चाहते हैं, जो इन नई नीतियों को लागू करने का एक हिस्सा है। ये कार्रवाइयां वैध और आवश्यक हैं, और हम अदालत में इस लड़ाई को जारी रखेंगे।”

प्रशासन की यह प्रतिक्रिया तब सामने आई जब यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स (US Chamber of Commerce) ने इस फैसले के खिलाफ एक मुकदमा दायर किया, जिसमें $100,000 के वीज़ा शुल्क को “गैरकानूनी” करार दिया गया है।

इसके अतिरिक्त, कैलिफोर्निया और वाशिंगटन, डीसी की संघीय अदालतों में यूनियनों, नियोक्ताओं और धार्मिक संगठनों सहित कई अन्य समूहों ने भी इस नए शुल्क के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू कर दी है। इन मुकदमों में तर्क दिया गया है कि यह नया शुल्क आप्रवासन कानून का उल्लंघन करता है और अमेरिकी उद्योगों को नुकसान पहुँचाता है।

यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि यह नया नियम ‘आव्रजन और राष्ट्रीयता अधिनियम’ (Immigration and Nationality Act) के उन प्रावधानों का खंडन करता है, जिनके अनुसार वीज़ा शुल्क आवेदनों के प्रसंस्करण (processing) की वास्तविक लागत के आधार पर होना चाहिए।

यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स के कार्यकारी उपाध्यक्ष और मुख्य नीति अधिकारी नील ब्रैडली ने कहा, “नया $100,000 वीज़ा शुल्क अमेरिकी नियोक्ताओं, विशेष रूप से स्टार्टअप्स और छोटे व मध्यम आकार के व्यवसायों के लिए, H-1B कार्यक्रम का उपयोग करना निषेधात्मक रूप से महंगा बना देगा।”

उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि कांग्रेस ने H-1B कार्यक्रम को विशेष रूप से यह सुनिश्चित करने के लिए बनाया था कि सभी आकार के अमेरिकी व्यवसाय अमेरिका में अपने संचालन को बढ़ाने के लिए आवश्यक वैश्विक प्रतिभा तक पहुँच सकें।

ब्रैडली ने यह भी कहा कि जहाँ एक तरफ राष्ट्रपति ट्रम्प की समग्र आर्थिक नीतियाँ निवेश को प्रोत्साहित कर रही हैं, वहीं यह नया वीज़ा शुल्क व्यवसायों के लिए आवश्यक श्रमिकों को खोजना कठिन बना सकता है।

उन्होंने कहा, “राष्ट्रपति ट्रम्प ने स्थायी विकास-समर्थक टैक्स सुधारों, अमेरिकी ऊर्जा को मुक्त करने और विकास को बाधित करने वाले अति-नियमन को खत्म करने का एक महत्वाकांक्षी एजेंडा शुरू किया है। चैंबर और हमारे सदस्यों ने अमेरिका में अधिक निवेश आकर्षित करने के लिए इन प्रस्तावों का सक्रिय रूप से समर्थन किया है। इस विकास का समर्थन करने के लिए, हमारी अर्थव्यवस्था को कम नहीं, बल्कि अधिक श्रमिकों की आवश्यकता होगी।”

इसी बीच, यूनियनों, शिक्षकों और धार्मिक समूहों के एक अन्य गठबंधन ने भी वीज़ा शुल्क के खिलाफ एक और बड़ा मुकदमा दायर किया है, जिसमें इसे “मनमाना और अनुचित” (arbitrary and capricious) बताया गया है।

गौरतलब है कि H-1B वीज़ा कार्यक्रम अमेरिकी कंपनियों को उच्च कुशल विदेशी कर्मचारियों को नियुक्त करने की अनुमति देता है। इस शुल्क वृद्धि से प्रौद्योगिकी क्षेत्र (technology sector) पर सबसे गंभीर प्रभाव पड़ने की आशंका है, विशेष रूप से भारतीय आईटी पेशेवरों पर, जो H-1B वीज़ा प्राप्त करने वालों का सबसे बड़ा समूह हैं।

यह नया $100,000 का शुल्क मौजूदा H-1B प्रसंस्करण लागत की तुलना में बहुत अधिक है, जो आम तौर पर कुछ हज़ार डॉलर ही होती है। कंपनियों को यह शुल्क मौजूदा जाँच शुल्कों के अतिरिक्त देना होगा, और प्रशासन अभी यह तय कर रहा है कि यह पूरी राशि एक बार में ली जाएगी या वार्षिक आधार पर।

यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स ने चेतावनी दी है कि यह उच्च शुल्क कंपनियों को H-1B कार्यक्रम का उपयोग कम करने या इसे पूरी तरह से छोड़ने के लिए मजबूर कर सकता है। इस नीति से अमेज़ॅन, माइक्रोसॉफ्ट और गूगल जैसी तकनीकी दिग्गज कंपनियों के भी प्रभावित होने की प्रबल संभावना है।

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