भारतीय क्रिकेट के ‘हिटमैन’ रोहित गुरुनाथ शर्मा ने चुपचाप टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कह दिया है। हाल ही में भारत के लिए निराशाजनक टेस्ट सीज़न खेलने के बाद उन्होंने इस प्रारूप से संन्यास ले लिया। 2013 में वेस्टइंडीज के खिलाफ लगातार दो शतकों के साथ धमाकेदार शुरुआत करने वाले रोहित का टेस्ट करियर उतार-चढ़ाव भरा रहा, लेकिन उन्होंने इसे एक शानदार वापसी के साथ संतुलित किया।
शुरुआत
रोहित का टेस्ट डेब्यू 2010 में नागपुर में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ होना था, लेकिन मैच शुरू होने से ठीक पहले उन्हें टखने में चोट लग गई। यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना उनके टेस्ट करियर की शुरुआत में बाधा बन गई और उनकी जगह रिद्धिमान साहा को पदार्पण का मौका मिला।
2012 में एक बार फिर ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पर्थ टेस्ट में विराट कोहली के खराब प्रदर्शन के बाद रोहित के डेब्यू की संभावना बनी थी, लेकिन कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने कोहली पर भरोसा जताया। यह निर्णय भारतीय क्रिकेट के लिए निर्णायक साबित हुआ।
अंततः 2013 में कोलकाता के ऐतिहासिक ईडन गार्डन्स में रोहित ने टेस्ट में कदम रखा और पदार्पण टेस्ट में शतक लगाया। इसके बाद अगले मैच में भी उन्होंने सैकड़ा जड़ा और प्लेयर ऑफ द सीरीज़ बने।
विदेशी जमीन पर संघर्ष
शानदार शुरुआत के बावजूद रोहित को विदेशी पिचों, खासकर SENA (साउथ अफ्रीका, इंग्लैंड, न्यूज़ीलैंड, ऑस्ट्रेलिया) देशों में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। 2013 से 2018 तक उन्होंने 16 पारियों में सिर्फ दो अर्धशतक बनाए और इंग्लैंड दौरे से बाहर कर दिए गए।
यह झटका बड़ा था, लेकिन रोहित ने हार नहीं मानी। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा—”सूरज कल फिर उगेगा”—और वनडे तथा टी20 में रनों की बरसात जारी रखी। 2019 वर्ल्ड कप में उन्होंने पांच शतक लगाकर इतिहास रच दिया।
टेस्ट में नया अध्याय: रोहित शर्मा 2.0
2019 में उन्हें टेस्ट में एक नए रोल—सलामी बल्लेबाज़—के तौर पर मौका मिला। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ पहले ही टेस्ट में उन्होंने दोनों पारियों में शतक जड़ा और तीसरे टेस्ट में 212 रन की अपनी पहली डबल सेंचुरी ठोकी। यही से रोहित शर्मा के टेस्ट करियर का दूसरा और सुनहरा अध्याय शुरू हुआ।
इसके बाद उन्होंने घरेलू पिचों पर रन बरसाए और विदेशों में भी धीरे-धीरे अपने प्रदर्शन में सुधार किया। सिडनी टेस्ट (2021) में शुभमन गिल के साथ साझेदारी से लेकर चेन्नई में इंग्लैंड के खिलाफ निर्णायक 161 रन की पारी तक, रोहित ने खुद को हर परिस्थिति में साबित किया।
विदेशी ज़मीन पर बेहतरीन वापसी
हालांकि 2021 में वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप फाइनल में न्यूजीलैंड के खिलाफ रोहित शुरुआत को बड़ी पारी में नहीं बदल सके, लेकिन इंग्लैंड दौरे पर उन्होंने जबरदस्त बल्लेबाज़ी की। लीड्स में अर्धशतक और फिर ओवल टेस्ट में 127 रन की पारी—उनका पहला विदेशी टेस्ट शतक—ने उन्हें आलोचकों के जवाब देने का मौका दिया।
इस सीरीज़ में वह भारत के लिए सबसे ज़्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज़ रहे और 368 रन बनाए। एक समय विदेशी धरती पर नाकाम माने जाने वाले रोहित ने आखिरकार वहां भी अपना लोहा मनवाया।
नेतृत्व और सफलता
रोहित के शानदार प्रदर्शन का इनाम उन्हें टेस्ट टीम की कप्तानी के रूप में मिला जब विराट कोहली ने कप्तानी छोड़ी। कप्तान बनने के बाद भी रोहित का बल्ला चलता रहा। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पुणे में शतक और इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज़ जीत में उनकी पारियां निर्णायक साबित हुईं।
सलामी बल्लेबाज़ के रूप में 32 टेस्ट मैचों में 2552 रन, 9 शतक और 7 अर्धशतक—50 से अधिक की औसत के साथ—रोहित का यह फॉर्म सुनहरा दौर रहा। इस दौरान वह केवल दिमुथ करुणारत्ने और उस्मान ख्वाजा से पीछे रहे।
अंतिम अध्याय
हाल के टेस्ट सीज़न में रोहित का बल्ला खामोश रहा। हालांकि उन्होंने बांग्लादेश के खिलाफ कानपुर में बारिश प्रभावित टेस्ट में भारत को यादगार जीत दिलाई, लेकिन इसके बाद भारत ने छह में से पांच मैच गंवाए, जिनमें न्यूजीलैंड के हाथों घरेलू ज़मीन पर 0-3 की शर्मनाक हार भी शामिल थी।
एक प्रेरणादायक सफर
टेस्ट करियर को अलविदा कहने के साथ रोहित की कहानी एक अधूरी शुरुआत और अद्भुत वापसी की मिसाल बन जाती है। उनकी सभी 12 टेस्ट सेंचुरीज़ भारत की जीत में आईं—जो उनके मैच विनर होने का प्रमाण हैं।
हो सकता है कि वह टेस्ट इतिहास के महानतम बल्लेबाज़ों में न गिने जाएं, लेकिन उनका दूसरा जन्म बतौर सलामी बल्लेबाज़ भारतीय क्रिकेट के लिए अमूल्य रहा। अगर उन्हें पहले ही यह भूमिका मिलती, तो शायद कहानी कुछ और होती।
उनकी कहानी हर उस खिलाड़ी के लिए प्रेरणा है जो टीम से बाहर होने के बाद वापसी का सपना देखता है। ‘हिटमैन’ भले ही अब सफेद जर्सी में नजर न आएं, लेकिन उनकी यादें भारतीय टेस्ट इतिहास में हमेशा जिंदा रहेंगी।
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