नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में वकीलों को मिलने वाली कानूनी सुरक्षा को लेकर कई कड़े निर्देश जारी किए हैं। अदालत ने स्पष्ट किया है कि जांच एजेंसियां किसी वकील को उनके मुवक्किल (क्लाइंट) से जुड़े मामले में तब तक समन जारी नहीं कर सकतीं, जब तक कि यह भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) में स्पष्ट रूप से बताए गए अपवादों के अंतर्गत न आता हो।
यह मामला तब प्रकाश में आया जब प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा कुछ वरिष्ठ वकीलों को उनके मुवक्किलों से जुड़े मामलों में समन भेजा गया था, जिस पर काफी विवाद हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने इस गंभीर मुद्दे पर स्वत: संज्ञान (suo motu) लिया था। हालांकि, बाद में एजेंसी ने वे समन वापस ले लिए थे।
वकील-मुवक्किल के बीच बातचीत का विशेषाधिकार
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बी आर गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एन वी अंजारिया की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि BSA की धारा 132 “मुवक्किल को दिया गया एक विशेषाधिकार है।” यह प्रावधान वकील को अपने मुवक्किल के साथ हुई किसी भी गोपनीय पेशेवर बातचीत का खुलासा नहीं करने के लिए बाध्य करता है।
धारा 132 के अनुसार, किसी भी वकील को, उनके मुवक्किल की स्पष्ट सहमति के बिना, ऐसी किसी भी बातचीत का खुलासा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती, जो उन्हें उनकी सेवा के दौरान या उसके उद्देश्य के लिए उनके मुवक्किल द्वारा या उनकी ओर से की गई हो।
हालांकि, यह कानूनी सुरक्षा उन मामलों में लागू नहीं होगी जहाँ कोई बातचीत किसी “अवैध उद्देश्य” को आगे बढ़ाने के लिए की गई हो। इसके अतिरिक्त, यदि वकील अपनी सेवा के दौरान कोई ऐसा तथ्य देखता है, जिससे यह पता चलता हो कि उनकी सेवा शुरू होने के बाद कोई “अपराध या धोखाधड़ी” की गई है, तो उस पर भी यह विशेषाधिकार लागू नहीं होगा।
समन जारी करने के लिए सख्त नियम
अदालत ने जांच अधिकारियों के लिए एक स्पष्ट प्रक्रिया निर्धारित की है:
- “आपराधिक मामलों में जांच अधिकारी (IO) या संज्ञेय अपराध में प्रारंभिक जांच करने वाले स्टेशन हाउस ऑफिसर (SHO), आरोपी का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील को मामले का विवरण जानने के लिए समन जारी नहीं करेंगे, जब तक कि यह धारा 132 BSA के तहत किसी अपवाद में न आता हो।”
- “जब किसी अपवाद के तहत वकील को समन जारी किया जाता है, तो उसमें उन तथ्यों का विशेष रूप से उल्लेख करना होगा, जिनके आधार पर अपवाद का सहारा लिया जा रहा है।”
- यह समन एक वरिष्ठ अधिकारी (जो पुलिस अधीक्षक यानी SP के पद से नीचे न हो) की सहमति से ही जारी किया जाएगा। समन जारी होने से पहले उस वरिष्ठ अधिकारी को लिखित में अपनी संतुष्टि दर्ज करनी होगी कि यह मामला अपवाद के अंतर्गत आता है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इस तरह के समन “वकील या मुवक्किल के कहने पर न्यायिक समीक्षा के अधीन” होंगे। यह समीक्षा भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 528 के तहत की जा सकेगी।
दस्तावेज़ और डिजिटल डिवाइस के लिए निर्देश
अदालत ने कहा कि वकील के कब्जे में मौजूद मुवक्किल के दस्तावेज़ (Documents) पेश करना, धारा 132 के तहत मिलने वाले विशेषाधिकार में शामिल नहीं होगा।
- आपराधिक मामले में: दस्तावेज़ को BNSS की धारा 94 के तहत अदालत के समक्ष पेश करना होगा, जो BSA की धारा 165 द्वारा भी विनियमित होगा।
- दीवानी मामले में: दस्तावेज़ पेश करना BSA की धारा 165 और सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 16 नियम 7 द्वारा नियंत्रित होगा।
डिजिटल उपकरणों (जैसे फोन या लैपटॉप) के संबंध में अदालत ने विशेष निर्देश दिए। यदि जांच के लिए BNSS की धारा 94 के तहत किसी डिजिटल डिवाइस की आवश्यकता होती है, तो जांच अधिकारी का निर्देश केवल उसे “अधिकार क्षेत्र वाली अदालत (jurisdictional court) के समक्ष पेश करने” का होगा।
अदालत के समक्ष डिवाइस पेश किए जाने पर, अदालत उस पक्ष को नोटिस जारी करेगी, जिसके संबंध में डिवाइस से विवरण खोजा जाना है। अदालत डिवाइस पेश करने या उससे जानकारी निकालने पर पक्ष और वकील की आपत्तियों को सुनेगी।
यदि अदालत आपत्तियों को खारिज कर देती है, तो डिवाइस को केवल उस पक्ष और वकील की उपस्थिति में ही खोला जाएगा। उन्हें अपनी पसंद के डिजिटल तकनीक विशेषज्ञ की सहायता लेने का भी अधिकार होगा। अदालत ने जोर देकर कहा कि “डिवाइस की जांच करते समय, अन्य मुवक्किलों की गोपनीयता से समझौता नहीं किया जाएगा।”
इन-हाउस वकीलों पर नियम लागू नहीं
फैसले में यह स्पष्ट किया गया कि ‘इन-हाउस वकील’ (In-house counsels) BSA की धारा 132 के तहत सुरक्षा के दायरे में नहीं आएंगे, क्योंकि वे अदालतों में प्रैक्टिस करने वाले वकील नहीं माने जाते। हालांकि, वे BSA की धारा 134 के तहत (कानूनी सलाहकार को दी गई सूचना) सुरक्षा के हकदार होंगे, लेकिन इस सुरक्षा का दावा नियोक्ता (employer) और इन-हाउस वकील के बीच हुई बातचीत के लिए नहीं किया जा सकता।
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