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गौरव गोगोई को हिमंत बिस्वा सरमा के बीच क्या है पूरा मामला?

| Updated: February 19, 2025 12:21

असम की राजनीतिक स्थिति हाल ही में मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और लोकसभा में कांग्रेस के उपनेता गौरव गोगोई के बीच विवाद के कारण गर्मा गई है। यह विवाद सरमा और कई भाजपा नेताओं द्वारा लगाए गए आरोपों के इर्द-गिर्द घूमता है, जिसमें कहा गया है कि गौरव गोगोई और उनकी पत्नी एलिजाबेथ कॉलबर्न गोगोई के उच्च स्तरीय पाकिस्तानी अधिकारियों, विशेष रूप से भारत में पूर्व पाकिस्तानी राजदूत से संबंध हो सकते हैं।

सरमा ने यह भी संकेत दिया है कि इस जोड़े के संबंध अरबपति निवेशक जॉर्ज सोरोस से हो सकते हैं, जिन पर अक्सर दक्षिणपंथी समूह वैश्विक राजनीतिक आंदोलनों को प्रभावित करने का आरोप लगाते हैं। इन आरोपों में यह भी दावा किया गया है कि गोगोई ने संसद में ऐसे संवेदनशील प्रश्न उठाए जो संभावित रूप से पाकिस्तान के हित में हो सकते हैं।

असम पुलिस ने पाकिस्तानी नागरिक अली तौकीर शेख और अज्ञात अन्य लोगों के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) और गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) की विभिन्न धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की है। मुख्यमंत्री सरमा के नेतृत्व वाले राज्य कैबिनेट के निर्देश के बाद यह कार्रवाई की गई, जिसमें शेख के एलिजाबेथ से कथित संबंधों और उनकी संभावित राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रभाव की जांच करने का आदेश दिया गया।

शेख “लीड पाकिस्तान” नामक एक गैर-लाभकारी संगठन के संस्थापक हैं, जो जलवायु परिवर्तन पर कार्य करता है, जहां एलिजाबेथ ने इस्लामाबाद में अपने कार्यकाल के दौरान प्रमुख भूमिका निभाई थी। इस मामले की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (SIT) यह विश्लेषण करेगा कि क्या इन संबंधों से भारत की संप्रभुता और सुरक्षा को खतरा है।

यह घटनाक्रम सरमा और गोगोई के बीच बढ़ती राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता का नवीनतम अध्याय है। यह सर्वविदित है कि 2011 में असम की राजनीति में गोगोई की एंट्री ने कांग्रेस के अंदर सत्ता संतुलन को प्रभावित किया था, जिससे सरमा और तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के बीच तनाव पैदा हुआ। उस समय सरमा कांग्रेस के सबसे प्रभावशाली नेता थे और तरुण गोगोई के राजनीतिक उत्तराधिकारी माने जाते थे। लेकिन गौरव गोगोई के आगमन ने सरमा की राजनीतिक गणनाओं को झटका दिया और अंततः उनके पार्टी छोड़ने की वजह बनी।

गौरव गोगोई को कभी भी सरमा ने अपने लिए राजनीतिक खतरा नहीं माना। सरमा की दृष्टि में, गौरव की पहचान उनके पिता तरुण गोगोई के बेटे के रूप में सीमित थी—एक विरासत जिसने उन्हें राजनीति में प्रवेश तो दिलाया, लेकिन आगे बढ़ने में मुश्किलें पेश कीं। उनकी असमिया भाषा पर कमजोर पकड़ और जनता के साथ कम संवाद ने उनकी छवि को और जटिल बना दिया। हालांकि, राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस और मीडिया ने उन्हें एक प्रभावशाली नेता के रूप में उभारा।

2019 के लोकसभा चुनावों के बाद गौरव गोगोई का राजनीतिक कद बढ़ा। मणिपुर में जातीय हिंसा के मुद्दे पर उनकी सक्रियता और संसद में उनके भाषणों ने उन्हें पूर्वोत्तर का एक मजबूत विपक्षी चेहरा बना दिया। राहुल गांधी के समर्थन से उन्हें लोकसभा में कांग्रेस का उपनेता नियुक्त किया गया, जिससे उन्होंने शशि थरूर और मनीष तिवारी जैसे वरिष्ठ नेताओं को पीछे छोड़ दिया।

इसके बाद असम में परिसीमन प्रक्रिया हुई, जिसने गौरव गोगोई की पारंपरिक कालीबोर लोकसभा सीट को समाप्त कर दिया। उन्हें मजबूरन अपने गृहनगर जोरहाट से चुनाव लड़ना पड़ा, जहां भाजपा के तपन गोगोई के खिलाफ उन्हें कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा। भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी, लेकिन गोगोई ने अपनी सादगी भरी रणनीति से चुनाव जीत लिया, जिससे सरमा की चुनावी अपराजेयता की छवि को झटका लगा।

2024 के लोकसभा चुनावों में सरमा ने गौरव गोगोई को हराने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी। उनके खिलाफ बड़े पैमाने पर अभियान चलाया गया, लेकिन गोगोई की सूझबूझ भरी रणनीति ने उन्हें जीत दिलाई। यह जीत केवल कांग्रेस के लिए एक सीट जोड़ने का मामला नहीं था, बल्कि असम की राजनीति में उन्हें हिमंत बिस्वा सरमा के प्रमुख प्रतिद्वंद्वी के रूप में स्थापित कर दिया।

अब, गौरव गोगोई और उनकी पत्नी पर लगाए गए आरोपों को लेकर राजनीतिक घमासान जारी है। सरमा ने आरोप पहले लगाए और जांच बाद में शुरू की, जो उनके नेतृत्व की रणनीति पर सवाल खड़ा करता है। अगर इन आरोपों में कोई ठोस सबूत नहीं मिलता, तो यह मुख्यमंत्री की विश्वसनीयता पर असर डाल सकता है।

हालांकि, इन आरोपों को पूरी तरह से नकारा भी नहीं जा सकता। गौरव गोगोई को जनता के सामने पारदर्शी तरीके से अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी। यह सिर्फ दो नेताओं की राजनीतिक लड़ाई नहीं है, बल्कि असम और भारत के लोगों को सच जानने का हक है। इस मुद्दे को राजनीतिक हथियार बनाने के बजाय तथ्यों के आधार पर इसका समाधान होना चाहिए।

आखिरकार, हिमंत बिस्वा सरमा ने अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी को मजबूत करने में अनजाने में ही योगदान दिया है। तरुण गोगोई चाहते थे कि सरमा उनके बेटे को राजनीति का पाठ पढ़ाएं, और अब ऐसा प्रतीत होता है कि सरमा ने वास्तव में उन्हें एक परिपक्व नेता बना दिया है।

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