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गुजरात में पुल सुरक्षा पर फिर उठे सवाल, आनंद-वडोदरा मार्ग पर गंभीरा पुल का हिस्सा गिरा

| Updated: July 11, 2025 09:23

गुजरात सरकार के सख्त नियमों और निरीक्षण आदेशों के बावजूद पुलों की सुरक्षा व्यवस्था में गंभीर खामियां उजागर

अहमदाबाद: पिछले एक दशक में कई पुल और फ्लाईओवर दुर्घटनाओं के बावजूद, गुजरात में पुल सुरक्षा व्यवस्था में खामियां बनी हुई हैं। इसका ताजा उदाहरण बुधवार को देखने को मिला, जब आनंद-वडोदरा मार्ग पर गंभीरा पुल का एक हिस्सा ढह गया। यह घटना इस बात को उजागर करती है कि नियमों के बावजूद जमीनी स्तर पर निगरानी और अमल में गंभीर कमी है।

यह हादसा खास तौर पर इसलिए चिंताजनक है क्योंकि 2023 में राज्य सरकार ने सभी नगर निगमों, स्थानीय निकायों और नगरपालिकाओं के पुलों की नियमित जांच को अनिवार्य किया था।

गुजरात में पुलों के गिरने की घटनाओं की शुरुआत 10 जून 2014 को हुई थी, जब सूरत के अथवा लाइंस फ्लाईओवर का एक हिस्सा ढह गया था। इसके बाद सरकार ने उच्च स्तरीय जांच समिति गठित की। समिति ने डिजाइन में गंभीर खामियां पाई थीं। इसके जवाब में, सरकार ने यह नियम बनाया कि किसी भी पुल या फ्लाईओवर का डिज़ाइन टेंडर या निर्माण से पहले सड़क एवं भवन (R&B) विभाग के डिज़ाइन सर्कल से प्रमाणित होना अनिवार्य होगा।

इससे डिज़ाइन स्तर पर कुछ सुधार तो हुआ, लेकिन अन्य समस्याएं जल्द ही सामने आ गईं। 2017 में अहमदाबाद के नए बने हाटकेश्वर फ्लाईओवर की निर्माण सामग्री को घटिया पाया गया। 2021 में अहमदाबाद अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी (AUDA) द्वारा बनाए जा रहे मुमतपुरा फ्लाईओवर के निर्माण के दौरान स्लैब गिर गया।

इन समस्याओं को देखते हुए 2023 में R&B विभाग ने राज्य भर में मानसून पूर्व और पश्चात निरीक्षण और उनकी रिपोर्ट के आधार पर मरम्मत को अनिवार्य किया। अगस्त 2024 में पुल निर्माण के मानकों में व्यापक बदलावों की घोषणा भी की गई।

नए मानकों में शामिल प्रमुख बदलाव:

  • पुल स्लैब की परत (wearing coat) के लिए M-30 ग्रेड कंक्रीट के बजाय M-40 ग्रेड कंक्रीट (न्यूनतम मोटाई 100 मिमी) का उपयोग अनिवार्य।
  • सभी उच्च स्तरीय पुलों पर कंक्रीट न्यू जर्सी बैरियर्स अनिवार्य।
  • लंबे स्पैन के लिए इलास्टोमेरिक बेयरिंग की जगह पॉट-पीटीएफई या स्फेरिकल बेयरिंग का प्रयोग।
  • हनीकॉम्बिंग जैसी समस्याओं के समाधान के लिए FE-500D ग्रेड सरिया को FE-550D ग्रेड में अपग्रेड किया गया।
  • संक्षारण-रोधी (corrosion-resistant) स्टील बार और उचित कंक्रीट कवर का प्रयोग अनिवार्य।
  • डिजाइन में एक्सपेंशन जॉइंट्स की संख्या कम करने, जहां संभव हो डेक कंटिन्यूटी सुनिश्चित करने और मॉड्यूलर जॉइंट्स शामिल करने के निर्देश।
  • गर्डर के कास्टिंग या लॉन्चिंग के दौरान अस्थायी पार्श्व सहारा अनिवार्य।
  • संहिता के अनुरूप पूरे निर्माण क्षेत्र की घेराबंदी अनिवार्य।
  • क्रेन, हाइड्रा और जेसीबी जैसी मशीनरी चलाने के लिए केवल प्रमाणित और लाइसेंस प्राप्त ऑपरेटर ही नियुक्त किए जाएं।
  • मरम्मत और रेट्रोफिटिंग कार्यों में मूल डिज़ाइन की तुलना में उच्च गुणवत्ता की सामग्री का उपयोग अनिवार्य।

इन तमाम नियमों और मानकों के बावजूद, गंभीरा पुल हादसा यह साफ दिखाता है कि केवल नियम बनाना ही काफी नहीं है। जब तक उनके पालन और सख्त निगरानी को गंभीरता से नहीं लिया जाएगा, पुलों की सुरक्षा पर संकट बना रहेगा।

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