मरम्मत कर मोरबी ब्रिज को खोलने वाली कंपनी ओरेवा का जानिये अता-पता

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मरम्मत कर मोरबी ब्रिज को खोलने वाली कंपनी ओरेवा का जानिये अता-पता

| Updated: October 31, 2022 18:20

रविवार की रात सबसे बड़ी त्रासदियों (biggest tragedies) में से एक का गवाह बना गुजरात। मोरबी में मच्छू नदी पर 140 साल पुराना केबल सस्पेंशन ब्रिज (cable suspension bridge) गिरने से 130 से अधिक लोगों की जान चली गई। हैरानी की बात यह कि एक हफ्ते से भी कम समय पहले इस पुल में सुधार का काम (refurbished) किया गया था, जिसके बाद उसे खोल दिया गया। जिला कलेक्ट्रेट की वेबसाइट पर दिए गए ब्योरे के मुताबिक, इसे “इंजीनियरिंग का चमत्कार (engineering marvel)” कहा जाता था। इसे 1887 के आसपास मोरबी के उस समय के राजा वाघजी राठोर ने बनवाया था। मोरबी पर उनका शासन 1922 तक रहा। जब लकड़ी का यह पुल बनाया गया था, तब इसमें यूरोप की सबसे मॉडर्न तकनीक का इस्तेमाल हुआ था। इस तरह यह पुल उस समय के राजा के आधुनिक और वैज्ञानिक नजरिये (scientific nature) को बताता है।

इस पुल के संचालन (operation) और देखरेख (maintenance) का काम 15 साल के लिए ओरेवा ग्रुप को दिया गया था। इस साल मार्च में मरम्मत के कारण इसे जनता के लिए बंद कर दिया गया था। यह 26 अक्टूबर को गुजराती नववर्ष (Gujarati New Year) पर फिर से खुला। मरम्मत के बाद जनता के लिए टिकट की कीमत मात्र 17 रुपये प्रति व्यक्ति (per person) रखी गई थी।

रविवार को शाम करीब 6.30 बजे सैकड़ों लोग पुल पर जमा हो गए। फिर उसके बाद जो हुआ, वह सरासर तबाही (mayhem) थी। जब लोग घायलों और मृतकों (dead) को ले जा रहे थे, तो माहौल कभी नहीं भुलाए जा सकने वाला (unforgettably tragic) दुखद था।

अब ई-बाइक (e-bikes) भी बनाने वाला मोरबी स्थित ओरेवा ग्रुप ((Ajanta Manufacturing Pvt Ltd) इस बड़े हादसे के बाद जांच के दायरे में है। बता दें कि जो कंपनी अनोखी खूबियों वाली दीवार घड़ी (wall clocks) बनाने का भी काम करती है, उसे नई तकनीक (latest technology) पर आधारित ऐसा पुल बना देने को कहा गया, जो मोरबी का नाम रौशन कर दे।

ओरेवा ग्रुप क्या है?

Oreva founder Odhavji Patel with then Gujarat CM Narendra Modi

दिवंगत (late) ओधवजी पटेल ओरेवा समूह के संस्थापक (founder) हैं। इसके 45 देशों में बिजनेस हैं और इसमें 7,000 लोग काम करते हैं। इनमें से 5,000 महिलाएं हैं, जो विभिन्न बिजनेस जैसे कि घड़ी बनाने से लेकर किसानों के लिए पानी की सुविधा जुटाने (harvesting water for farmers) तक में कार्यरत हैं। पटेल का अजंता समूह (Ajanta Group) बिजली की बचत करने वाले कॉम्पैक्ट फ्लोरोसेंट लैंप (power-saving compact fluorescent lamps) और विट्रिफाइड टाइल्स ( vitrified tiles) भी बनाता है।

पटेल को ‘दीवार घड़ियों का जनक’ (father of wall clocks’) भी कहा जाता था।  अक्टूबर 2012 में उनकी मृत्यु के बाद बेटे जयसुख ओधवजी ओरेवा समूह के प्रमुख बने। लगभग 800 करोड़ रुपये के कारोबार के साथ ग्रुप मोरबी और कच्छ में अपने प्लांटों में ओरेवा ब्रांड स्नैक्स के अलावा घरेलू और बिजली के उपकरण, कैलकुलेटर और सिरेमिक उत्पादों का भी निर्माण करता है।

2020 में जयसुख को अहमदाबाद पश्चिम के सांसद किरीट सोलंकी द्वारा नव नक्षत्र सम्मान व्यवसाय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। कंपनी का हेड ऑफिस थलतेज सर्कल, एसजी हाईवे, अहमदाबाद में है।

मोरबी नगरपालिका (municipal agency) के प्रमुख संदीपसिंह जाला ने कहा कि कंपनी ने पुल को फिर से खोलने से पहले अफसरों से फिटनेस सर्टिफिकेट नहीं लिया था। जाला ने कहा, “यह एक सरकारी टेंडर था। ओरेवा समूह को पुल को फिर से खोलने से पहले मरम्मत का ब्योरा देना था और क्वालिटी की जांच करानी थी। लेकिन ऐसा नहीं किया गया। सरकार को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी। ”

FIR में कोई जिक्र नहीं

इस मामले में प्राथमिकी (FIR) दर्ज की गई है, लेकिन ओरेवा या जयसुख पटेल का कोई जिक्र नहीं है। पुलिस ने किसी भी आरोपी की पहचान नहीं की है, लेकिन हैंगिंग ब्रिज रिपेयर एजेंसी, उसके ऑपरेशन और जांच के दौरान जिनके नाम का खुलासा हुआ है, उनके खिलाफ शिकायत दर्ज कर ली गई है।

मामले की जांच पुलिस उपाधीक्षक (Deputy Superintendent of Police) पीए जाला करेंगे। पुलिस ने कहा, “यह लापरवाही का काम है। ऐसा लगता है कि ऐसा जानबूझकर (committed knowingly) किया गया था। आरोपियों के खिलाफ गैर इरादतन हत्या (culpable homicide) का मामला दर्ज किया गया है।”

दूसरे प्रोजेक्ट

अक्टूबर 2021 में जयसुख पटेल द्वारा 200 करोड़ रुपये की जल उपयोग परियोजना (water utilisation project) की परिकल्पना (conceptualised) की गई थी। तब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसका समर्थन किया था। 7 अक्टूबर  2021 को शाह ने प्रोजेक्ट को चालू करने पर चर्चा करने के लिए पटेल के साथ बैठक की। पटेल ने कच्छ क्षेत्र के 4,900 वर्ग किलोमीटर के छोटे रण (Little Rann) को रण सरोवर (Rann Sarovar) नाम से मीठे पानी की विशाल झील (sweet water lake) में बदलने का प्रस्ताव रखा था, जो हो न सका।

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