नई दिल्ली: भारत के डेयरी सेक्टर और सहकारी आंदोलन के लिए एक ऐतिहासिक क्षण में, प्रसिद्ध ब्रांड अमूल को दुनिया की नंबर एक सहकारी संस्था का ताज पहनाया गया है। अमूल ब्रांड का संचालन करने वाली संस्था, गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड (GCMMF) ने यह प्रतिष्ठित रैंकिंग ‘GDP प्रति व्यक्ति प्रदर्शन’ के आधार पर हासिल की है।
यह बड़ी घोषणा मंगलवार को कतर की राजधानी दोहा में आयोजित ICA CM50 कॉन्फ्रेंस के दौरान की गई, जहाँ आधिकारिक तौर पर ‘वर्ल्ड कोऑपरेटिव मॉनिटर 2025’ रिपोर्ट का अनावरण किया गया।
विकास और ‘जन-केंद्रित’ सोच का परिणाम
यह नई रैंकिंग इस बात का सबूत है कि अमूल ने एक बेहद प्रतिस्पर्धी वैश्विक बाजार में भी अपनी लगातार वृद्धि, नवाचार (innovation) और ‘लोगों को पहले’ रखने की अपनी मूल नीति को नहीं छोड़ा है।
आपको बता दें कि यह रिपोर्ट इंटरनेशनल कोऑपरेटिव अलायंस (ICA) द्वारा जारी की जाती है। ICA का मुख्यालय ब्रुसेल्स में है और यह दुनिया भर में सहकारी समितियों का प्रतिनिधित्व करने वाली सर्वोच्च संस्था है। यह मॉनिटर रिपोर्ट हर साल EURICSE (यूरोपियन रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑन कोऑपरेटिव एंड सोशल एंटरप्राइजेज) के साथ साझेदारी में तैयार की जाती है। इसका मुख्य उद्देश्य दुनिया भर की सबसे बड़ी सहकारी संस्थाओं के आर्थिक और सामाजिक प्रभाव का गहराई से विश्लेषण करना है।
किसानों के नेतृत्व में मिली सफलता
इस शानदार उपलब्धि पर, GCMMF के मैनेजिंग डायरेक्टर (MD) जयेन मेहता ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अमूल की यह सफलता पूरी तरह से किसानों के नेतृत्व वाली कहानी है।
उन्होंने कहा, “अमूल एक ऐसा ब्रांड है जिसका मालिकाना हक पूरी तरह से किसानों के पास है। वे दूध इकट्ठा करने से लेकर, उसकी प्रोसेसिंग और मार्केटिंग (विपणन) तक, सब कुछ खुद ही संभालते हैं। हमारा प्रभाव सिर्फ अर्थव्यवस्था तक सीमित नहीं है; हमारा मॉडल संयुक्त राष्ट्र के कई सतत विकास लक्ष्यों (UN SDGs) का भी समर्थन करता है, जिसमें गरीबी उन्मूलन, लैंगिक समानता और टिकाऊ समुदायों का निर्माण शामिल है।”
मेहता ने एक बेहद भावुक बात कही, “अमूल की असली मुद्रा दूध नहीं, बल्कि ‘भरोसा’ है—यह लाखों उत्पादकों (किसानों) और अरबों उपभोक्ताओं का भरोसा है। ICA द्वारा मिली यह मान्यता अमूल परिवार के हर सदस्य के लिए गर्व का क्षण है। यह भारत के सहकारी आंदोलन की स्थायी ताकत और हमारे संस्थापकों के उस सपने की पुष्टि करता है, जिसमें उन्होंने सामूहिक उद्यम के माध्यम से समृद्धि लाने का लक्ष्य देखा था।”
वैश्विक मंच पर सहकारी समितियों की गूँज
यह मान्यता ऐसे समय में आई है जब दोहा में ही ‘दूसरा संयुक्त राष्ट्र सोशल समिट 2025’ भी आयोजित किया गया। इस शिखर सम्मेलन में दुनिया के नेताओं ने एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घोषणा को अपनाया, जिसमें गरीबी मिटाने, सामाजिक समावेश, नए रोजगार पैदा करने और बड़े सामाजिक परिवर्तन लाने में सहकारी समितियों की महत्वपूर्ण भूमिका को स्पष्ट रूप से स्वीकार किया गया।
इसके अतिरिक्त, दोहा में ही ‘अंतर्राष्ट्रीय सहकारी वर्ष 2025’ का भी आधिकारिक तौर पर समापन हो गया। इस अवसर पर यह संकल्प भी लिया गया कि भविष्य में हर दस साल में एक बार ‘अंतर्राष्ट्रीय सहकारी वर्ष’ घोषित किया जाएगा।
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