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क्या 2025 का महाकुंभ वास्तव में 144 वर्षों बाद होने वाला ‘दुर्लभ’ आयोजन है?

| Updated: February 21, 2025 15:37

आम तौर पर यह माना जाता है कि माघ मेला हर साल माघ माह में आयोजित होता है, अर्धकुंभ हर छह साल में और महाकुंभ हर 12 साल में आयोजित किया जाता है। ऐसे में 144 वर्षों का सवाल कहां से आया?

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश सरकार और हिंदू संन्यासी संगठनों ने 2025 में प्रयागराज में आयोजित होने वाले महाकुंभ मेले को 144 वर्षों बाद होने वाला एक ‘दुर्लभ’ आयोजन बताया है।

हम खगोलीय घटनाओं के इस पहलू को स्वीकार या खारिज नहीं कर सकते, क्योंकि यह लाखों लोगों की आस्था से जुड़ा हुआ मामला है। लेकिन यह पहली बार नहीं है जब पिछले तीन दशकों में इस तरह का दावा किया गया हो।

वास्तव में, योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा 2023 में प्रकाशित एक दस्तावेज़ और भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की एक ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, 2013 में इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में आयोजित कुंभ मेले को भी ‘महाकुंभ मेला’ माना गया था और इसे भी 144 वर्षों के बाद होने वाला आयोजन बताया गया था।

कुंभ मेले का उद्भव

प्रयागराज में आयोजित होने वाला कुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा मानव समागम है और यह सदियों से चला आ रहा है। इसमें भारी धनराशि का निवेश, व्यापक योजना, सुरक्षा व्यवस्था, आधारभूत संरचना निर्माण और लगभग दो महीने तक एक विशाल अस्थायी टेंट सिटी की व्यवस्था शामिल होती है।

कुंभ (पवित्र घड़ा) मेले की उत्पत्ति समुद्र मंथन की पुराणों में वर्णित कथा से जुड़ी हुई है। हिंदू मान्यता के अनुसार, जब देवताओं और असुरों के बीच अमृत कलश को लेकर युद्ध हुआ, तब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर असुरों से अमृत कलश छीन लिया और उसे स्वर्ग की ओर ले गए।

इस दौरान अमृत की कुछ बूंदें चार स्थानों पर गिरीं – प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन। यह भी माना जाता है कि अमृत को स्वर्ग तक पहुंचने में 12 ‘दिव्य वर्ष’ लगे, जो मनुष्यों के 12 वर्षों के बराबर होते हैं। इस कारण इन चार स्थानों पर हर 12 साल में कुंभ मेले का आयोजन होता है।

प्रयागराज, जहां गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती नदियां संगम बनाती हैं, को कुंभ का सबसे महत्वपूर्ण स्थल माना जाता है।

कुंभ मेले का राजनीतिकरण

2018 में, योगी आदित्यनाथ सरकार ने अर्धकुंभ का नाम बदलकर कुंभ कर दिया, जिससे इसकी महत्ता को बढ़ाया जा सके और इसे भाजपा की ‘भगवाकरण’ राजनीति का हिस्सा बनाया गया।

एक साल बाद, सरकार ने प्रयागराज में एक कुंभ मेला आयोजित किया, जो अपने राजनीतिकरण के लिए जाना गया। योगी आदित्यनाथ ने परंपरा तोड़ते हुए अपने मंत्रिमंडल की बैठक को प्रयागराज के संगम तट पर आयोजित किया, जो आमतौर पर लखनऊ में सचिवालय में होती है।

योगी ने इस साल भी मेले में मंत्रिमंडल की बैठक आयोजित की।

भाजपा सरकार ने 2025 महाकुंभ मेले को 144 वर्षों बाद होने वाले आयोजन के रूप में प्रचारित किया है। अगर यह सच होता, तो पिछला ऐसा आयोजन 1881 में हुआ होता।

लेकिन यह तर्क पूरी तरह से तथ्यात्मक नहीं लगता।

‘144 वर्षों’ की बहस

2023 में, योगी सरकार ने ‘Guidelines for Managing Crowds at Events of Mass Gathering, 2023’ नामक एक दस्तावेज़ प्रकाशित किया था। इस 60-पृष्ठीय दस्तावेज़ में योगी आदित्यनाथ की बड़ी तस्वीर थी। इसमें 2013 के कुंभ मेले को ‘महाकुंभ मेला’ बताया गया था और कहा गया था कि यह 144 वर्षों बाद आयोजित हुआ था।

CAG की 2013 कुंभ मेले पर की गई ऑडिट रिपोर्ट में भी इसे महाकुंभ मेला कहा गया है। रिपोर्ट के अनुसार, “महाकुंभ मेला 144 वर्षों में एक बार, पूर्ण कुंभ मेला हर 12 वर्षों में, अर्धकुंभ मेला हर छह वर्षों में और माघ मेला हर वर्ष गंगा और यमुना के तट पर आयोजित होता है।”

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा प्रकाशित ‘Kumbh Mela-Mapping the Ephemeral Mega City’ पुस्तक में 2001 के महाकुंभ को 144 वर्षों बाद आयोजित बताया गया है।

ब्रिटिश पत्रकार मार्क टुली ने अपनी पुस्तक ‘The Kumbh Mela’ में 1989 के महाकुंभ का जिक्र किया है और लिखा है कि पुजारियों का मानना था कि यह 144 वर्षों बाद हो रहा था।

हालांकि, उत्तर प्रदेश सरकार के सूचना विभाग द्वारा 1989 के मेले पर बनाई गई एक डॉक्यूमेंट्री में इसे पूर्ण कुंभ बताया गया था।

आधिकारिक वेबसाइटों पर 144 वर्षों का कोई उल्लेख नहीं

प्रयागराज जिले और 2025 महाकुंभ मेले की आधिकारिक वेबसाइटों पर इस आयोजन को 144 वर्षों बाद होने वाला नहीं बताया गया है।

प्रयागराज जिला वेबसाइट पर लिखा है, “प्रयागराज (संगम) में हर छह साल में कुंभ और हर 12 साल में महाकुंभ आयोजित होता है। 2013 में पिछला महाकुंभ मेला हुआ था और अगला 2025 में होगा।”

2025 महाकुंभ की आधिकारिक वेबसाइट पर लिखा गया है, “महाकुंभ मेला, जो हर बारह वर्षों में आयोजित होता है, न केवल एक अद्भुत जनसमागम है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक यात्रा है जो मानव अस्तित्व के सार को गहराई से समझने का अवसर प्रदान करता है।”

अगर महाकुंभ वास्तव में 1881 के बाद पहली बार हो रहा होता, तो ब्रिटिश प्रशासन के दस्तावेजों में इसका उल्लेख मिलता। लेकिन 1911 में ब्रिटिश अधिकारी एच. आर. नेविल द्वारा प्रकाशित इलाहाबाद गजेटियर में 144 वर्षों का कोई उल्लेख नहीं है। इसमें कहा गया है कि आखिरी कुंभ 1906 में हुआ था, जो 2025 से 119 वर्ष पहले था।

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी हाल ही में इस दावे पर कटाक्ष किया। उन्होंने कहा, “महाकुंभ की चर्चा पूरे देश और दुनिया में हो रही है। यह 144 वर्षों बाद हो रहा है, लेकिन हमारे विद्वान पत्रकारों और खगोलशास्त्रियों को यह जरूर पता होगा कि हर कुंभ 144 वर्षों बाद ही आता है।”

अब यह समय है कि सरकार और अखाड़े इस भ्रम को स्पष्ट करें।

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