क्या सुप्रीम कोर्ट एक साल की हिरासत के बाद हर हत्या के आरोपी को जमानत दे देगा? लखीमपुर खीरी मामले में दुष्यंत दवे ने पूछा

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क्या सुप्रीम कोर्ट एक साल की हिरासत के बाद हर हत्या के आरोपी को जमानत दे देगा? लखीमपुर खीरी मामले में दुष्यंत दवे ने पूछा

| Updated: December 13, 2022 14:20

क्या सुप्रीम कोर्ट एक सामान्य सिद्धांत तय करेगा कि हत्या के आरोपों का सामना कर रहे हर आरोपी को एक साल की हिरासत के बाद रिहा किया जाएगा?  सीनियर वकील दुष्यंत दवे ने यह सवाल तब पूछा, जब अदालत ने विचार किया कि क्या उसे लखीमपुर खीरी मामले में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा को जमानत देनी चाहिए। इसलिए कि वह एक साल से अधिक समय से हिरासत में है।

दवे ने जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच के सामने कहा, “यदि ऐसा सिद्धांत बनाया जाता है कि 302 यानी हत्या के सभी मामलों में अभियुक्तों को एक वर्ष के बाद जमानत दे दी जाएगी, तो मैं भी इसे मान लूंगा। लेकिन इसे इस मामले में अपवाद नहीं बनाएं।”

उन्होंने कहा कि यदि हत्या जैसे गंभीर अपराध में निचली अदालत और हाई कोर्ट द्वारा एक साथ जमानत देने से इनकार कर दिया गया है, तो आमतौर पर सुप्रीम कोर्ट दखल नहीं देना चाहिए।

दवे अक्टूबर 2021 के लखीमपुर खीरी कांड के पीड़ितों के रिश्तेदारों की ओर से पेश हुए थे। बता दें कि लखीमपुर खीरी में 2021 में मिश्रा के काफिले में शामिल गाड़ियों ने कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों के एक समूह को रौंद दिया था। इससे पांच लोगों की मौत हो गई थी।

दवे ने तर्क दिया कि आशीष मिश्रा के पिता केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा ने प्रदर्शनकारी किसानों को भुगतने की धमकी दी थी। इससे साबित होता है कि किसानों को साजिश के तहत रौंदा गया। उन्होंने पूछा, “इस लड़के को अपने दोस्तों के साथ 100 किलोमीटर से अधिक की गति से गाड़ी चलाते हुए उस रास्ते से जाने की क्या ज़रूरत थी?” उन्होंने बेंच से अपराध की गंभीरता को नजरअंदाज नहीं करने का आग्रह किया, जो दिन के उजाले में हुआ था।

दवे ने कहा, “यह एक बहुत ही गंभीर घटना है, जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। अगर किसी को केवल इसलिए मारा जा सकता है, क्योंकि वे आंदोलन कर रहे हैं, तो लोकतंत्र में कोई भी सुरक्षित नहीं है।” उन्होंने यह भी बताया कि दो गवाहों पर पहले ही हमला किया जा चुका है। जब बेंच ने इस बात का जिक्र किया कि उसने गवाहों की सुरक्षा के लिए आदेश पारित किया है तो दवे ने कहा, ”ये ताकतवर लोग हैं।” सीनियर वकील ने इस बात पर प्रकाश डाला कि मिश्रा को सुप्रीम कोर्ट द्वारा किए गए हस्तक्षेप के कारण ही गिरफ्तारी हुई है। वरना तो उसे सरकारी संरक्षण हासिल था।

उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त महाधिवक्ता (Additional Advocate General ) गरिमा प्रसाद ने दवे द्वारा दिए गए इस बयान पर आपत्ति जताई और कहा, “यह बहुत अनुचित है।”

मिश्रा की ओर से पेश हुए सीनियर वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि जब अपराध हुआ, तब वह दूसरी जगह पर थे। उन्होंने दावा किया कि मिश्रा लगभग चार किलोमीटर दूर एक कुश्ती समारोह में भाग ले रहे थे। इसे साबित करने वाले फोटोग्राफ और मोबाइल टावर लोकेशन रिकॉर्ड में हैं। रोहतगी ने बताया कि घटना में शामिल थार वाहन की यात्री सीट पर एक अन्य व्यक्ति बैठा था।

दवे ने इन तर्कों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह दलील छेड़छाड़ किए गए सबूतों पर आधारित है। उन्होंने कहा कि कार्यक्रम स्थल पर मिश्रा की मौजूदगी को लेकर चश्मदीदों के बयान हैं।

हालांकि, बेंच ने कहा कि वह मौजूदा समय में उस विवाद पर विचार करने नहीं जा रही है। यहां विचार सिर्फ जमानत के सवाल पर हो रहा है।

बेंच ने कहा, “जमानत के मामलों में हम अपराध की गंभीरता, मुकदमे में लगने वाला समय और अभियुक्त द्वारा जेल में बिताए समय पर विचार करते हैं। उसे कितने समय तक जेल में रहना चाहिए? क्या उसे अनिश्चित काल तक रखा जा सकता है? कैसे संतुलन बनाया जाए? पीड़ित की तरह अभियुक्त के भी अधिकार हैं।”

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “हम मोटे तौर पर एक बिंदु पर हैं। इस अदालत की निगरानी में हम आरोपों के स्तर पर पहुंच गए हैं। चश्मदीदों को भी संरक्षण दिया गया है। 200 चश्मदीदों से भी पूछताछ की जानी है। सभी गवाहों की जांच की जानी है, लेकिन अदालत को अन्य मामलों को छोड़ने और केवल इस एक मामले को लेने के लिए नहीं कहा जा सकता है।”

इस पर दवे ने कहा, “यदि आप एक जनरल सिद्धांत बनाते हैं कि 302 के सभी मामलों में एक वर्ष के बाद अभियुक्तों को रिहा कर दिया जाएगा, तो मैं इसे मान लेता हूं। लेकिन अपवाद मत बनाइए।”

दवे ने कहा, “इस देश में इस तरह के जघन्य मामले में रिहा नहीं किया जाना चाहिए। यह दिन के उजाले में हुआ। फिर दो गवाहों पर पहले ही हमला किया जा चुका है। उन्हें रिहा नहीं किया जाना चाहिए।” तब जस्टिस कांत ने पूछा, “लेकिन कब तक?”

एक संक्षिप्त चर्चा के बाद बेंच ने राज्य से पूछा कि मुकदमे में कितना समय लगेगा। इसके साथ ही  न्यायिक रजिस्ट्रार को निचली अदालत से जानकारी प्राप्त करने का निर्देश दिया।

खंडपीठ ने रजिस्ट्रार (Judicial)  को लखीमपुर खीरी के प्रथम अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (first Additional Sessions judge) से यह पता लगाने का निर्देश दिया कि अन्य लंबित या प्राथमिकता वाले मामलों से समझौता किए बिना सामान्य मामले में मुकदमे को पूरा होने में कितना समय लगने की संभावना है। राज्य को यह भी निर्देश दिया गया है कि वह घटना में मिश्रा की कार के चालक सहित तीन लोगों की लिंचिंग से संबंधित काउंटर-केस में जांच की स्थिति के बारे में  सूचित करे। मामले की अगली सुनवाई जनवरी में होगी।

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