राहुल नहीं, तो अशोक गहलोत का पलड़ा भारी

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राहुल नहीं, तो अशोक गहलोत का पलड़ा भारी

|India | Updated: September 20, 2022 15:29

कई प्रदेश कांग्रेस इकाइयों ने जहां राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में पदभार संभालने की मांग करते हुए प्रस्ताव पारित किए हैं, वहीं राहुल ने कथित तौर पर इस पद को लेने से इनकार कर दिया है। वैसे शशि थरूर अगले पार्टी अध्यक्ष के रूप में आंतरिक पार्टी चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं, लेकिन कांग्रेस के शीर्ष सूत्र ने वाइब्स ऑफ इंडिया को बताया है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत थरूर की तुलना में अधिक स्वीकार्य  चेहरा हैं। उत्तर भारत और दो दक्षिण भारतीय राज्यों में यही राय है कि अगर राहुल गांधी नहीं, तो फिर अशोक गहलोत हों पार्टी अध्यक्ष।

इस बीच, सोनिया गांधी ने गुजरात कांग्रेस के नेता मधुसूदन मिस्त्री से मुलाकात की। कहा कि वह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए तैयार हैं। उन्होंने कथित तौर पर कहा कि अगर कोई मुकाबला होता है तो वह बिल्कुल तटस्थ  रुख अपनाएंगी। एक सूत्र के मुताबिक, दरअसल उन्होंने चुनाव में मुकाबले का स्वागत किया है।

इस हफ्ते की शुरुआत में अशोक गहलोत ने कहा था कि वह उम्मीद कर रहे थे कि राहुल गांधी अपना विचार बदल देंगे। अगर राहुल चुनाव नहीं लड़ने के अपने फैसले पर कायम रहते हैं, तो वह आगे बढ़ेंगे। थरूर पहले ही कह चुके हैं कि वह चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं। ऐसे में कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए इन दो के बीच मुकाबला होगा। 22 साल बाद इस पद के लिए मुकाबला होगा। वरना पार्टी अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी या राहुल गांधी ही रहे हैं और वे बिना निर्विरोध और आम राय से चुने जाते रहे हैं। थरूर के एक करीबी नेता के मुताबिक, सोनिया गांधी ने शशि थरूर के साथ 40 मिनट बातचीत की है। थरूर असंतुष्ट कहे जाने वाले ग्रुप (जी-23) के नेताओं में से एक हैं, जो कांग्रेस पार्टी में बदलाव चाहते हैं। वैसे बता दें कि सोनिया गांधी को 2000 में जीतेंद्र सिंह से मुकाबला करना पड़ा था। श्रीमती गांधी 1998 में पार्टी अध्यक्ष बनीं।

पार्टी नेताओं ने यह भी कहा कि सोनिया ने थरूर को चुनाव लड़ने से हतोत्साहित नहीं किया। उन्होंने कहा, कि जो कोई भी चुनाव लड़ना चाहता है, वह स्वतंत्र है और इसके लिए आपका स्वागत है। कांग्रेस अध्यक्ष और राहुल गांधी की लगातार यही राय रही है। यह एक खुली, लोकतांत्रिक और पारदर्शी प्रक्रिया है। एआईसीसी के संचार प्रमुख जयराम रमेश ने कहा कि चुनाव लड़ने के लिए किसी को किसी की अनुमति की जरूरत नहीं है।

थरूर चुनाव लड़ने के लिए कमर कस रहे हैं, यह तब स्पष्ट हो गया जब उन्होंने कांग्रेस के युवा सदस्यों के एक समूह द्वारा “रचनात्मक सुधार” और उदयपुर घोषणा को पूरी तरह से लागू करने  की मांग का समर्थन किया। थरूर ने इस मांग के स्क्रीनशॉट के साथ ट्वीट किया, “मैं इस मांग का स्वागत करता हूं, जिसे @INCIndia के युवा सदस्यों के एक समूह द्वारा प्रसारित किया जा रहा है, जो पार्टी में रचनात्मक सुधार की मांग कर रहा है। इसने अब तक 650 से अधिक हस्ताक्षर जुटा लिए हैं। ”

मांग करने वालों ने कहा कि कांग्रेस सदस्य के रूप में वे दरअसल “देश की आशाओं और आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करने के लिए पार्टी को मजबूत करना चाहते हैं।” इसके साथ ही 15 मई वाले पार्टी के चिंतन शिविर में पारित उदयपुर घोषणापत्र का हवाला दिया। कहा, “हम प्रत्येक उम्मीदवार से अपील करते हैं अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के लिए चुनाव में ब्लॉक समितियों से लेकर सीडब्ल्यूसी तक के सदस्यों को शामिल करने और पद संभालने के पहले 100 दिनों में उदयपुर घोषणा को संपूर्ण रूप से लागू करने का सार्वजनिक संकल्प  लें। ”

इस बीच, चार और प्रदेश इकाइयों- बिहार, जम्मू- कश्मीर, तमिलनाडु और महाराष्ट्र के साथ-साथ मुंबई क्षेत्रीय कांग्रेस कमेटी ने भी राहुल को पार्टी प्रमुख के रूप में समर्थन देने वाला प्रस्ताव पारित कर दिया है। इस तरह ये राज्य भी राजस्थान, छत्तीसगढ़ और गुजरात के साथ आ गए हैं। हालांकि, वाइब्स ऑफ इंडिया यह पता नहीं लगा सका है कि राज्यों में ये प्रस्ताव किसी केंद्रीय नेता के इशारे पर पारित हो रहे हैं या स्थानीय राज्य स्तर पर खुद ही हो रहा है।

गौरतलब है कि अब तक केरल और मध्य प्रदेश एकमात्र ऐसी पीसीसी हैं, जिन्होंने दूसरे तरह का  प्रस्ताव पारित किया है। अन्य राज्य इकाइयों के विपरीत उन्होंने कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के रूप में राहुल की मांग के लिए प्रस्ताव पारित नहीं किया, लेकिन उन्होंने अंतरिम कांग्रेस अध्यक्ष को राज्य कांग्रेस अध्यक्षों को नियुक्त करने और अध्यक्ष चुनाव के लिए एआईसीसी प्रतिनिधियों को नामित करने के लिए अधिकृत करने वाला दूसरा प्रस्ताव पारित किया – जो कांग्रेस के संविधान के अनुसार मतदान से पहले किया जाना आवश्यक है।  

बिहार पीसीसी अध्यक्ष मदन मोहन झा ने कहा कि शीर्ष पद के लिए राहुल के पक्ष में एक प्रस्ताव सोमवार को राज्य इकाई द्वारा “सर्वसम्मति से” पारित किया गया था, और यह “देश और पार्टी के हित में” था। राहुल के इच्छुक नहीं होने की स्थिति में झा ने कहा: “उनसे अनुरोध करना हमारा काम है। कार्यकर्ताओं और नेताओं की भावनाओं को उन तक पहुंचाना मेरी जिम्मेदारी है। मुझे एक प्रस्ताव पर उपस्थित लोगों के हस्ताक्षर मिले हैं और मैं उसे भेज रहा हूं। बाकी उनकी मर्जी।”

उधर, तमिलनाडु पीसीसी ने राज्य इकाई के प्रमुख केएस अलागिरी द्वारा प्रस्तावित अपने “सर्वसम्मति” वाले प्रस्ताव में कहा कि राष्ट्रीय राजनीति इस समय सांप्रदायिक राजनीति का “असामान्य परिदृश्य” देख रही  है। प्रस्ताव में कहा गया है कि लोगों को “बचाने” और 2024 के लोकसभा चुनाव में धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक ताकतों की जीत सुनिश्चित करने के लिए  यह जरूरी है कि राहुल पार्टी की बागडोर संभालें।

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