कांग्रेस(Congress) की राजस्थान इकाई के बाद छत्तीसगढ़ और गुजरात प्रदेश इकाइयों ने भी राहुल गांधी से पार्टी की बागडोर फिर संभालने की अपील करने वालों में शामिल हो गई हैं। बता दें कि नए कांग्रेस अध्यक्ष को चुनने की प्रक्रिया की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। रविवार को राजधानी रायपुर में प्रदेश कांग्रेस की हुई बैठक के बाद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राज्य इकाई द्वारा पारित प्रस्ताव की जानकारी दी। कहा कि राहुल ने फिर से पार्टी का नेतृत्व करने की संभावना से इनकार नहीं किया है।
बघेल ने कहा, “मीडिया कहता है कि राहुल कांग्रेस अध्यक्ष बनने के इच्छुक नहीं हैं। लेकिन राहुल जी ने कुछ नहीं कहा। अब तक दो राज्यों ने उन्हें पार्टी अध्यक्ष के रूप में पदभार ग्रहण करने का आग्रह करते हुए प्रस्ताव पारित किए थे। अब छत्तीसगढ़ ने भी ऐसा कर दिया है। अगर और राज्य ऐसा करते हैं तो राहुल जी को फिर से सोचना ही चाहिए। मुझे विश्वास है कि राहुल जी पार्टी कार्यकर्ताओं की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए इस मांग को स्वीकार करेंगे।”
इसके कुछ घंटे बाद कांग्रेस की गुजरात इकाई ने भी बताया कि पार्टी की राज्य कार्यकारिणी की बैठक में राहुल की अध्यक्ष के रूप में वापसी की मांग उठाई गई है। गुजरात कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता मनीष दोशी ने कहा कि करीब 490 सदस्यों ने इस मांग का समर्थन किया।
यह सब ऐसे समय में हुआ है, जब राहुल कई दशकों में पार्टी के सबसे बड़े जनसंपर्क कार्यक्रम ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का नेतृत्व कर रहे हैं। साथ ही, पार्टी मशीनरी कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के लिए कमर कस रही है, जिसके लिए 22 सितंबर को एक आधिकारिक अधिसूचना जारी की जाएगी।
बता दें कि महीनों से राहुल को पार्टी प्रमुख के रूप में कार्यभार संभालने के लिए मनाने के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन वायनाड के सांसद टस से मस नहीं हो रहे। अभी पिछले सप्ताह उन्होंने कहा था कि उनका मन बन चुका है और लोगों को पता चल जाएगा कि चुनाव कब होगा, और यह भी कि वह चुनाव लड़ेंगे या नहीं। जाहिर है कि कुछ ने स्पष्ट मनाही के तौर पर देखा, जबकि कुछ के लिए संदेश अस्पष्ट था।
रविवार को पीटीआई को दिए इंटरव्यू में पार्टी के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने भी कहा कि सभी विकल्प खुले हैं। नए पार्टी प्रमुख के चयन के लिए आम सहमति की मांग करते हुए उन्होंने कहा कि राहुल के पास हमेशा एक “प्रमुख स्थान” होगा, भले ही वह अध्यक्ष हों या नहीं। यह पूछे जाने पर कि क्या राहुल अध्यक्ष बनने की अपील पर ध्यान देंगे, चिदंबरम ने कहा: “राहुल गांधी पार्टी के सर्वमान्य नेता हैं। वे चाहते हैं कि वह अध्यक्ष बनें। अब तक उन्होंने मना किया है। वह अपना विचार बदल भी सकते हैं।”
चार दिन पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और जनसंचार के प्रभारी महासचिव जयराम रमेश ने भी एआईसीसी प्रमुख के चयन में “सहमति” की पैरोकारी की थी। साथ ही किसी भी परिस्थिति में संगठनात्मक मामलों में नेहरू-गांधी परिवार की “प्रमुखता” को रेखांकित किया था। गौरतलब है कि लगातार दूसरे आम चुनाव में पार्टी की करारी हार के बाद राहुल ने 3 जुलाई 2019 को कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। अपने फैसले की घोषणा करते हुए, उन्होंने कहा था, “हमारी पार्टी के भविष्य के विकास के लिए जवाबदेही महत्वपूर्ण थी।”
तब से पार्टी शीर्ष पद पर उनकी वापसी की संभावना पर दो राय रही है। एक वर्ग ने इस विचार का समर्थन किया है, जबकि दूसरा कह रहा है कि गांधी परिवार को पार्टी को आगे बढ़ाने के लिए खुद पीछे हटने की जरूरत है। हाल ही में अनुभवी नेता गुलाम नबी आज़ाद ने कांग्रेस छोड़ते हुए पार्टी की दुर्दशा के लिए राहुल पर अब तक का सबसे तीखा हमला किया है।
राहुल के अनिर्णीत होने और नेतृत्व नहीं संभालने के कारण 2000 के बाद पहली बार पार्टी के लिए चुनाव तय लगता है। हालांकि, राहुल के समर्थन में प्रस्तावों की बाढ़, परिवार के वफादारों और वर्तमान पदाधिकारियों द्वारा संचालित राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर संकेत मिलता है कि कांग्रेस वहां से वापस हो सकती है, जहां उसने शुरुआत की थी।
रविवार को पार्टी की गुजरात इकाई ने अपनी मांग की घोषणा करते हुए एक बयान जारी किया। इसमें राहुल को “भारत का भविष्य और युवाओं की आवाज ” बताया। इसमें कहा गया है कि अध्यक्ष के रूप में उनकी वापसी की मांग करने वाले प्रस्ताव को कार्यकारिणी के सभी सदस्यों ने “तालियों के साथ” समर्थन दिया।
छत्तीसगढ़ में बघेल ने कहा कि उनके द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव का राज्य इकाई के प्रमुख मोहन मार्कन, विधानसभा अध्यक्ष चरण दास महंत और मंत्रियों-टीएस सिंह देव, शिवकुमार डहरिया और प्रेमसाई सिंह टेकम ने समर्थन किया।
दो इकाइयों द्वारा पारित अन्य प्रस्ताव ने कांग्रेस अध्यक्ष को पार्टी के राज्य प्रमुख और एआईसीसी प्रतिनिधियों को नियुक्त करने के लिए अधिकृत किया, जैसा कि पहले तय किया गया था।
कांग्रेस केंद्रीय चुनाव प्राधिकरण (Congress Central Election Authority) के अध्यक्ष मधुसूदन मिस्त्री ने पहले कहा था कि कांग्रेस प्रमुख के रूप में किसी विशेष नेता का समर्थन करने वाली राज्य इकाइयों द्वारा पारित प्रस्ताव अनौपचारिक प्रकृति के होंगे और 17 अक्टूबर को होने वाले चुनावों पर इसका कोई सीधा असर नहीं होगा।
वैसे पार्टी के कुछ ऐसे लोग, जो पहले भी कई बार इस कवायद को अंजाम देते हुए देखे गए हैं, निश्चित रूप से आश्वस्त नहीं हैं। जी-23 खेमे के एक नेता ने कहा कि यह चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करेगा।
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