अहमदाबाद: गुजरात में अवैध क्लीनिकल ट्रायल को लेकर दायर एक जनहित याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने जा रही है। यह मामला तब और गंभीर हो गया जब अहमदाबाद के शैठ वदीलाल सराभाई (वीएस) अस्पताल में मरीजों पर अवैध और अनैतिक दवा परीक्षणों के खुलासे हुए।
स्वास्थ्य अधिकार मंच, जो कि इंदौर स्थित एक स्वास्थ्य अधिकार संगठन है, द्वारा दायर इस याचिका में आरोप है कि 2021 से 2024 के बीच लगभग 500 मरीजों पर बिना अनुमति के परीक्षण किए गए। इन परीक्षणों में देशी-विदेशी मिलाकर 58 फार्मास्युटिकल कंपनियों की भूमिका बताई गई है। यह परीक्षण न्यू ड्रग्स एंड क्लीनिकल ट्रायल्स रूल्स, 2019 का उल्लंघन करते हुए बिना किसी मान्यता प्राप्त एथिक्स कमेटी की मंजूरी के किए गए।
अहमदाबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन (AMC) द्वारा गठित एक जांच समिति की रिपोर्ट में सामने आया कि इन ट्रायल्स के लिए फार्मा कंपनियों ने प्रति मरीज 200 से 500 रुपये दिए, जबकि कुछ मामलों में रकम काफी अधिक थी। इतना ही नहीं, डॉक्टरों के निजी खातों में 17 से 20 करोड़ रुपये तक ट्रांसफर किए गए।
23 अप्रैल, 2025 को सुप्रीम कोर्ट में एक अतिरिक्त हलफनामा दाखिल करते हुए संगठन के संयोजक अमूल्य निधि ने बताया कि वीएस अस्पताल में हुए ये क्लीनिकल ट्रायल न तो कानूनी रूप से मंजूर थे और न ही नैतिक रूप से वैध।
जन स्वास्थ्य अभियान (गुजरात इकाई) के समर्थन से स्वास्थ्य अधिकार मंच ने केंद्र और राज्य सरकारों से इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की है। याचिका में ट्रायल की मंजूरी, प्रतिकूल प्रभाव, मुआवजा और जिम्मेदार पक्षों की जवाबदेही पर पारदर्शिता की मांग की गई है।
अब तक कोई आपराधिक जांच नहीं
अब तक केवल आठ डॉक्टरों को निलंबित किया गया है, लेकिन किसी के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज नहीं किया गया है। याचिका में यह भी बताया गया है कि मुन्सिपल कोष को करोड़ों का नुकसान पहुंचाने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, जबकि केवल संविदा पर कार्यरत डॉक्टरों को ही निलंबित किया गया।
50 क्लीनिकल ट्रायल सेंटर्स की जांच की मांग
हलफनामे में गुजरात के कुल 50 क्लीनिकल ट्रायल सेंटर्स की सूची दी गई है, जिसमें कई सरकारी और निजी संस्थान शामिल हैं। इन केंद्रों पर भी यह जांच आवश्यक है कि क्या उन्होंने परीक्षण कानून के तहत किए थे या अवैध रूप से।
प्रमुख संस्थानों में शामिल हैं:
- बी.जे. मेडिकल कॉलेज एवं सिविल हॉस्पिटल, अहमदाबाद
- इंस्टिट्यूट ऑफ किडनी डिजीजेस एंड रिसर्च सेंटर (IKDRC)
- गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, सूरत
- जायडस हॉस्पिटल्स एंड हेल्थकेयर रिसर्च प्रा. लि.
- अपोलो हॉस्पिटल इंटरनेशनल लि.
- केयर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (CIMS), व अन्य।
इस सूची में आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक, मल्टीस्पेशलिटी और कैंसर हॉस्पिटल्स सहित कई प्रमुख संस्थानों के नाम शामिल हैं।
गंभीर लापरवाही और जवाबदेही का अभाव
हलफनामे में यह भी बताया गया है कि:
- चार वर्षों तक ट्रायल्स बिना किसी निगरानी के चलते रहे।
- फार्मा कंपनियों से मिली राशि विभागाध्यक्ष या अधीक्षक की मंजूरी के बिना ट्रांसफर की गई।
- अस्पताल की एथिक्स कमेटी की पिछली दस वर्षों की कोई जांच नहीं हुई।
- प्रयोग में लाई गई दवाओं, मरीजों की संख्या, मुआवजे की स्थिति और फार्मा कंपनियों के नाम अभी भी गुप्त रखे गए हैं।
घटनाक्रम की समयरेखा
2012
– स्वास्थ्य अधिकार मंच ने भारत में अनैतिक क्लीनिकल ट्रायल्स के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका (Writ Petition Civil No. 33/2012) दायर की।
2021–2024
– वीएस अस्पताल, अहमदाबाद में 58 फार्मा कंपनियों द्वारा अवैध परीक्षण।
– एथिक्स कमेटी की स्वीकृति नहीं ली गई।
– डॉक्टरों के निजी खातों में 17–20 करोड़ रुपये जमा।
अप्रैल 2025
– स्थानीय मीडिया ने पहली बार मामले का खुलासा किया।
– AMC ने जांच समिति गठित की।
– अंतरिम रिपोर्ट में नैतिक व वित्तीय अनियमितताओं का जिक्र।
– सुप्रीम कोर्ट में विस्तृत सबूतों के साथ अतिरिक्त हलफनामा दाखिल।
– 50 ट्रायल सेंटर्स की सूची जांच के लिए सौंपी गई।
30 अप्रैल, 2025
– सुप्रीम कोर्ट में याचिका पर सुनवाई निर्धारित।