राज्य छोड़ केंद्र में नौकरी करने से कतरा रहे हैं आईपीएस अफसर

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राज्य छोड़ केंद्र में नौकरी करने से कतरा रहे हैं आईपीएस अफसर

| Updated: August 10, 2022 11:23

हालांकि अक्सर यह चर्चा होती है कि दिल्ली में गुजरात कैडर के अधिकारियों की भरमार है, लेकिन वास्तविकता थोड़ी अलग है। खासकर जब आईपीएस (IPS) अधिकारियों की बात आती है तब। केंद्र को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए आवेदन करने के लिए डीजीपी, अतिरिक्त डीजीपी, आईजी और डिप्टी आईजी रैंक के अधिकारियों की जरूरत है, लेकिन भाजपा शासित राज्यों से एक भी ऐसा वरिष्ठ अधिकारी नहीं है जो दिल्ली आना चाहता हो। ऊपर से राज्यों में 1472 आईएएस (IAS) और 864 आईपीएस (IPS) अधिकारियों की कमी है सो अलग।

मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, किसी भी वरिष्ठ रैंक के अधिकारी ने केंद्र सरकार में पोस्टिंग की मांग नहीं की है। 2021 में भाजपा सरकार ने भी एक नियम में बदलाव किया था। इसके तहत अब केंद्र में नियुक्ति के लिए राज्य सरकार की अनुमति आवश्यक नहीं है। फिर भी अधिकारी सेंट्रल पोस्टिंग के लिए आवेदन करने से कतरा रहे हैं। वैसे केंद्र के पास अधिकारियों को डंप करने का अधिकार है, जो उन्हें उनके लिए उपयुक्त नहीं लगता, निश्चित रूप से जारी है।

केंद्र सरकार आईएएस अधिकारियों की कमी का सामना कर रही है। संकट से निपटने के लिए कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DoPT) ने दिसंबर 2021 में राज्यों की अनुमति के बगैर ही केंद्र में आईएएस, आईपीएस और भारतीय वन सेवा (आईएफओएस) के अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति करने का प्रस्ताव रखा। डीओपीटी ने कहा कि मौजूदा प्रावधानों के बावजूद राज्य केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए पर्याप्त संख्या में अधिकारियों को प्रायोजित नहीं कर रहे थे और उपलब्ध अधिकारी केंद्र सरकार की आवश्यकता को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं थे। प्रस्ताव की अभी समीक्षा ही हो रही है।

गृह मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, केंद्र में आईपीएस अधिकारियों के लिए 263 रिक्तियां हैं, लेकिन पुलिस महानिदेशक, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक, महानिरीक्षक और उप महानिरीक्षक जैसे पदों के लिए एक भी अधिकारी उपलब्ध नहीं है। 4 अगस्त को राज्यसभा में माकपा के वी. शिवदासन के सवाल का जवाब देते हुए कार्मिक मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में 14 आईएएस अधिकारी हैं। इनमें गुजरात और बिहार कैडर के दो-दो आईएएस अधिकारी, जबकि उत्तराखंड, तेलंगाना, सिक्किम, मणिपुर, महाराष्ट्र, नगालैंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और एजीएमयूटी कैडर के एक-एक अधिकारी हैं।

हाल ही में जारी मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, केंद्रीय जांच ब्यूरो, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल और खुफिया ब्यूरो सहित 17 केंद्रीय संगठनों में आईपीएस अधिकारियों के लिए 263 रिक्तियां हैं। अधिकांश रिक्तियां डीआईजी (94) और एसपी (137) के पद पर हैं। आईपीएस अधिकारियों को केंद्रीय मंत्रालयों सहित केंद्र सरकार के अन्य पदों पर भी नियुक्त किया जाता है।

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने फरवरी में डीआईजी स्तर पर आईपीएस अधिकारियों के पैनल की अनिवार्य आवश्यकता को समाप्त करते हुए कार्यकाल नीति में संशोधन किया। इसमें कहा गया है, “न्यूनतम 14 साल के अनुभव वाले अधिकारी केंद्र द्वारा डीआईजी के स्तर पर नियुक्ति के लिए पात्र होंगे।” केंद्रीय गृह सचिव की अध्यक्षता वाले केंद्रीय पुलिस स्थापना बोर्ड (सीपीईबी) द्वारा अधिकारियों का मूल्यांकन किया जाता है कि वे केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए उपयुक्त हैं या नहीं। फिर आईजी स्तर तक के अधिकारियों के नाम प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कैबिनेट की नियुक्ति समिति (एसीसी) को मंजूरी के लिए भेजे जाते हैं।

हालांकि केंद्रीय नियुक्ति के लिए संबंधित राज्य सरकार की मंजूरी या अनुमोदन की आवश्यकता नहीं है, फिर भी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए एआईएस अधिकारी को बुलाए जाने से पहले संबंधित अधिकारी से सहमति मांगी जाती है।

डीओपीटी ने हाल ही में संसद को सूचित किया था कि 1 जनवरी तक विभिन्न राज्यों में आईएएस में 1,472 और आईपीएस में 864 रिक्तियां हैं। आईएएस और आईपीएस अधिकारियों की कुल स्वीकृत संख्या क्रमशः लगभग 6,700 और 4,900 है। केंद्र की ओर से संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) द्वारा एआईएस अधिकारियों की भर्ती की जाती है और फिर उनकी सेवाओं को विभिन्न राज्य कैडर के तहत रखा जाता है। डीओपीटी ने कहा है कि उन्हें राज्य और केंद्र दोनों के तहत सेवा देनी ही होगी।

आईएएस अधिकारियों के मामले में डीओपीटी में स्थापना अधिकारी राज्य सरकारों से नामांकन आमंत्रित करता है। एक बार नामांकन प्राप्त होने के बाद, उनकी पात्रता की एक पैनल द्वारा जांच की जाती है। फिर सूची तैयार की जाती है, जो परंपरागत रूप से राज्य करती है। केंद्रीय मंत्रालय और कार्यालय तब प्रस्तावित सूची में से अधिकारियों को चुन सकते हैं। डीओपीटी की वेबसाइट पर ऑफर लिस्ट का प्रकाशन सरकार ने 2018 में उन खबरों के बीच बंद कर दिया था, जिनमें कहा गया था कि राज्य सरकार के कई अधिकारी केंद्र में आने को तैयार नहीं थे।

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