जूनागढ़ कोर्ट ने हिरासत में 60 वर्षीय व्यक्ति की मौत मामले में 11 पुलिसकर्मियों को बरी किया

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जूनागढ़ कोर्ट ने हिरासत में 60 वर्षीय व्यक्ति की मौत मामले में 11 पुलिसकर्मियों को बरी किया

| Updated: February 19, 2023 15:25

जूनागढ़ में मजिस्ट्रेट अदालत ने 2019 में एक 60 वर्षीय व्यक्ति की हिरासत में हुई कथित मौत के मामले में सभी 11 आरोपी पुलिसकर्मियों को बरी करते हुए मामले को बंद कर दिया है। यह फैसला

पिछले साल 11 नवंबर को हिरासत में यातना देकर पीड़ित को मौत के घाट उतारने की पुष्टि करते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) द्वारा गुजरात सरकार को नोटिस जारी करने के तीन सप्ताह के भीतर आया है। आयोग ने राज्य सरकार से पूछा था कि हीराभाई रूपाभाई बजनिया के रूप में पहचाने गए पीड़ित के परिवार को 7.5 लाख रुपये का मुआवजा देने की सिफारिश क्यों नहीं की जानी चाहिए। जिला सरकारी वकील (डीजीपी) नीरव पुरोहित ने  बताया कि गुजरात सरकार ने अभी तक बरी किए जाने के खिलाफ अपील दायर नहीं की है।

एनएचआरसी ने इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए अपने पैनल के मेडिकल एक्सपर्ट और बाजनिया के शव के पोस्टमार्टम की रिपोर्ट पर भरोसा किया। उसने इस घटना की न्यायिक जांच की रिपोर्ट को “ईमानदारी में कमी” करार दिया था। आयोग ने कहा था, “आयोग के पास यह मानने का पक्का आधार है कि मृतक हीराभाई रूपाभाई बजानिया के साथ जूनागढ़ सिटी “सी” डिवीजन पुलिस स्टेशन में मारपीट की गई थी। उन्हें  यातना दी गई थी। पुलिस हिरासत के दौरान उन्हें लगी चोटों को उनकी मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है। यह मृतक के मानवाधिकारों के उल्लंघन का एक उचित मामला है, जहां उनके रिश्तेदार मुआवजे के हकदार हैं। “

एनएचआरसी ने यह भी निर्देश दिया कि गुजरात सरकार को मुख्य सचिव के माध्यम से छह सप्ताह के भीतर कारण बताओ नोटिस जारी किया जाए कि क्यों न पीड़ित परिवार को 7.5 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया जाए।

हालांकि, जूनागढ़ मजिस्ट्रियल कोर्ट के न्यायिक मजिस्ट्रेट जिगर मेहता की अदालत ने 29 नवंबर  2022 को बजानिया की विधवा सहित प्रमुख गवाहों के अदालत में पलट जाने के बाद दो पुलिस उप-निरीक्षकों (PSIs) सहित 11 पुलिसकर्मियों को बरी कर दिया। साथ ही न्यायिक जांच (judicial enquiry) की उसी रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि हिरासत में यातना का कोई सबूत नहीं है। इसलिए मामले को बंद किया जाता है।

28 अगस्त, 2019 को जूनागढ़ शहर के ‘सी’ डिवीजन पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर के अनुसार, बजानिया, शंकर कालियावाड़ा और 10 अन्य लोगों को जूनागढ़ शहर के चोबारी रोड पर विनायक अपार्टमेंट के पास उनकी झोपड़ियों से कथित तौर पर 16  अगस्त 2019 की रात लगभग 2 बजे एक दर्जन पुलिस वालों ने उठा लिया था।

एफआईआर में कहा गया है कि पुलिसकर्मी उन 12 लोगों को, जो दिहाड़ी मजदूर थे, जूनागढ़ के ‘सी’ डिवीजन पुलिस स्टेशन परिसर में ले गए। वहां  पुलिसकर्मियों ने मजदूरों से कहा कि जूनागढ़ शहर के मीरानगर इलाके में उनकी झोपड़ियों के पास डकैती हुई है। उन सबसे डकैती का आरोप कबूल कर लेने को कहा।

हालांकि, कालियावाड़ा द्वारा दायर एक शिकायत के आधार पर दर्ज की गई एफआईआर के अनुसार, 12 मजदूरों ने कथित डकैती में किसी भी तरह की भूमिका से इनकार किया। इसके बाद पुलिस बजानिया को थाने के एक कमरे में ले गई और कथित तौर पर उसकी पिटाई की। बाद में, पुलिस ने एक के बाद एक तीन अन्य लोगों को कमरे के अंदर  ले जाकर कथित तौर पर पिटाई की। एफआईआर में कहा गया है कि कमरे से बाहर आने के बाद  बजानिया और तीन अन्य ने साथी मजदूरों से कहा कि पुलिस ने उन्हें कबूल करने के लिए कमरे के अंदर प्लास्टिक के पाइप से पीटा।

एफआईआर के मुताबिक, उस दिन सुबह करीब 10 बजे पुलिस ने कालियावाड़ा, बजानिया और अन्य को थाने के पीछे ले जाकर प्लास्टिक के पाइपों से पीटा और फिर उन्हें थाने के अंदर लॉकअप में धकेल दिया। पुलिस उस दिन दोपहर करीब तीन बजे बजानिया को हवालात से बाहर लाकर उससे पूछताछ कर रही थी तो वह बेहोश हो गया। उसे जूनागढ़ के एक अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया।

एनएचआरसी की कार्यवाही के विवरण के अनुसार, जूनागढ़ के तत्कालीन तीसरे अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने मामले की न्यायिक जांच की।  निष्कर्ष निकाला कि बाजनिया की मृत्यु “दिल का दौरा” पड़ने के कारण हुई थी, न कि डॉक्टरों द्वारा उनके पोस्टमार्टम में दर्ज बाहरी चोटों के कारण।

एनएचआरसी ने पाया कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में मृतक को चोटें कैसे लगीं, इस बारे में जांच रिपोर्ट में कुछ नहीं था। जांच में साथियों के इन बयानों की अनदेखी की गई कि पीड़ित को पुलिस द्वारा पीटा गया था।

आयोग ने कहा, “मजिस्ट्रियल जांच ने डॉक्टरों द्वारा दी गई मौत के अंतिम कारण को खारिज कर दिया है कि मौत शरीर पर मौजूद कई चोटों के कारण हुई थी। इस प्रकार, घटना की मजिस्ट्रियल जांच भरोसे लायक नहीं लगती हैस क्योंकि इसे ईमानदारी से नहीं किया गया है।”

एनएचआरसी ने अपने पैनल की मेडिकल टीम की राय और जामनगर में डॉक्टरों की पोस्ट-मॉर्टम जांच रिपोर्ट पर भरोसा करते हुए निष्कर्ष निकाला कि पीड़ित को लगी बाहरी चोटें दरअसल हिरासत में दी गई यातना से जुड़ लग रही थीं। इसके कारण ही बजानिया की मौत हुई। इसके बाद आरोपी पुलिसकर्मियों पर विभिन्न गंभीर धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया।

फिर पुलिस ने दो पीएसआई और नौ कांस्टेबलों सहित 11 पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया। वहीं जांच अधिकारी ने धारा 302 के लिए क्लोजर समरी दाखिल करते हुए कहा कि बजनिया की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई थी और उन्होंने न्यायिक जांच रिपोर्ट का भी हवाला दिया।

जूनागढ़ में एक मजिस्ट्रेट अदालत ने समापन सारांश (closure summary) को मंजूरी दे दी और फिर आईपीसी की धाराओं 323, 330, 342, 348 और 34 के तहत कम अपराधों के लिए 11 पर मुकदमा चलाया।

मुकदमे के दौरान सबूत पक्ष ने बजानिया के शव का पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों और सीसीटीवी फुटेज का विश्लेषण करने वाले फोरेंसिक विशेषज्ञों से गवाह के रूप में पूछताछ नहीं की।

अदालत ने सबूत के तौर पर पुलिस स्टेशन के सीसीटीवी फुटेज को जांचने से इनकार कर दिया।  सुनवाई के दौरान गवाहों ने कहा था कि उन्हें पुलिस स्टेशन नहीं ले जाया गया था।

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