लखीमपुर खीरी : त्रासदी होनी ही थी - Vibes Of India

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लखीमपुर खीरी : त्रासदी होनी ही थी

| Updated: October 4, 2021 23:25

यह ऐसी त्रासदी थी, जो होने की प्रतीक्षा कर रही थी।अचानक नहीं हुईं उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में हिंसा और हत्याएं।

पश्चिम उत्तर प्रदेश की तरह अन्य जगहों पर भी गन्ना उत्पादक निजी मिलों के साथ-साथ राज्य सहकारी समितियों के खिलाफ धरने पर बैठे हैं। गन्ना किसानों के बकाये का भुगतान लंबे समय से नहीं हुआ है। इससे वे काफी नाराज हैं। विडंबना यह कि जब चीजें उबल रही थीं, तो इसका केंद्र लोगों का ध्यान खींचने वाले पश्चिमी क्षेत्र के बजाय मध्य यूपी में अवध था। पश्चिम उत्तर प्रदेश दरअसल विरोध-प्रदर्शनों से निकलने वाले समानांतर राजनीतिक आंदोलनों का घर रहा है। इनका नेतृत्व भारतीय किसान संघ (बीकेयू) के प्रवक्ता राकेश टिकैत और राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के अध्यक्ष जयंत चौधरी ने किया, जो समाजवादी पार्टी (एसपी) के साथ गठबंधन बनाकर राज्य में होने वाले विधानसभा चुनावों में महत्वपूर्ण दावेदार बनने के लिए तैयार हैं।

लखीमपुर खीरी दरअसल लखनऊ डिवीजन का एक हिस्सा है। वह यूपी में प्रमुख चीनी उत्पादक क्षेत्र के रूप में जाना जाता है, जहां एशिया की तीन सबसे बड़ी मिलें हैं। ये हैं- गोला गोकर्णनाथ में बजाज हिंदुस्तान शुगर, बजाज हिंदुस्तान शुगर, पलिया कलां और बलरामपुर चीनी मिल, कुंभी। हालांकि लखीमपुर खीरी में मेन्थॉल मिंट और तिलहन जैसे अन्य व्यावसायिक रूप से उपयोगी उपज भी होते हैं, फिर भी यहां की अर्थव्यवस्था की रीढ़ गन्ना ही है।

यूपी के कम हलचल वाले हिस्सों में से एक लखीमपुर खीरी की शांति तब भंग हो गई, जब चश्मदीदों के मुताबिक केंद्रीय गृह मंत्रालय में अमित शाह के जूनियर मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा के काफिले में शामिल एक वाहन ने प्रदर्शनकारी किसानों को टक्कर मार दी। इससे चार किसानों की मौत हो गई। इसके बाद हुए हंगामे में चार भाजपा कार्यकर्ताओं की भी जान चली गई। हताहतों की सही संख्या अभी तक उपलब्ध नहीं है।

दरअसल कुछ दिनों पहले जिले में दिए गए टेनी के एक भाषण की वीडियो रिकॉर्डिंग सामने आई थी। इसमें टेनी को प्रदर्शनकारियों को चेतावनी देते हुए सुना गया था। टेनी ने उन्हें “बदमाश” के रूप में बताते हुए हट जाने या गंभीर परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहने की चेतावनी दी थी। उधर, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने अपने राज्य के आंदोलनकारी किसानों के खिलाफ “जैसे को तैसा” वाली बात कह दी। स्पष्ट है कि केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ लंबे समय से चले आ रहे आंदोलन के समाधान की दिशा में प्रयास के बजाय भाजपा उन लोगों के खिलाफ सख्त कदम उठा रही है।

यूपी में कृषि “सुधारों” के विरोध में उतना ही विरोध हो रहा है, जितना कि मिलों द्वारा गन्ने के बकाया का भुगतान न करने का। राज्य के गन्ना आयुक्त संजय आर भूसरेड्डी ने हाल ही में कहा था कि “वर्तमान में बकाया राशि 5500 करोड़ रुपये के करीब है। प्रतिशत के लिहाज से देखें तो पूरे उत्तर प्रदेश में हम पहले ही 79 प्रतिशत बकाया का भुगतान कर चुके हैं, जो अपने आप में इतिहास है।”

लेकिन आंकड़े क्या कहते हैं? लखीमपुर खीरी में ही एक जिला अधिकारी ने कहा कि मिलों पर बकाया राशि 999 करोड़ रुपये थी, जो अन्य गन्ना उत्पादक जिलों की तुलना में अधिक है। मुजफ्फरनगर पर 428 करोड़ रुपये, बिजनौर पर 532 रुपये, शामली पर 600 करोड़ रुपये और सहारनपुर पर 482 करोड़ रुपये का बकाया है।

नियमानुसार किसानों को गन्ने की आपूर्ति के 14 दिनों के भीतर भुगतान करना होता है। बता दें कि लखीमपुर खीरी में 500,000 से अधिक किसान मिलों को अपनी फसल की आपूर्ति करते हैं।

हाल ही में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने गन्ने के राज्य सलाहकार मूल्य (SAP) में 25 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की थी। किसानों की लगातार मांगों के बावजूद चार वर्षों में राज्य सरकार द्वारा यह पहली बार वृद्धि की गई थी। हालांकि बड़े पैमाने पर शिकायत है कि यह वृद्धि “मामूली” ही और इसका मतलब बहुत कम था क्योंकि डीजल, उर्वरक और बिजली की कीमतों में हुई वृद्धि ने अपेक्षित लाभों को “शून्य” कर दिया है। जबकि पूर्व मुख्यमंत्रियों ने इससे अधिक की बढ़ोतरी की थी। जैसे, अखिलेश यादव ने एसएपी को 65 रुपये प्रति क्विंटल और मायावती सरकार ने 115 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की थी।

बहरहाल, लखीमपुर खीरी घटना का यूपी के चुनावों पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करना जल्दबाजी होगी, लेकिन राज्य सरकार की प्रतिक्रिया काफी कुछ बता रही थी। जब विपक्ष ने घटनास्थल पर जुटने का फैसला किया तो उसे रोक दिया गया। इसके नेता जिनमें अखिलेश यादव और प्रियंका गांधी वाड्रा जैसे बड़े नेता शामिल थे, गिरफ्तार कर लिए गए। जयंत चौधरी ने पुलिस को चकमा दिया। उनकी पार्टी के लोगों ने दावा किया कि वह हिंसा वाली जगह तक पहुंचने में कामयाब रहे। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को लखीमपुर खीरी ले जा रहे विमान को उतरने नहीं दिया गया।केवल राकेश टिकैत को ही किसानों के “गैर-राजनीतिक” प्रतिनिधि के रूप में अंदर जाने की अनुमति थी। लेकिन टिकैत को एक अपवाद बनाने का संदेश स्पष्ट था। तनाव को शांत करने के मकसद से जिला प्रशासन के साथ समझौता करने के लिए उनका इस्तेमाल किया गया।

अब तक सरकार ने मृतकों के परिवारों को 45-45 लाख रुपये और घायलों को 10-10 लाख रुपये देने की सहमति दी है। आशीष मिश्रा समेत अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर ली गई है।भाजपा के रणनीतिकारों ने टिकैत की उपस्थिति और भूमिका को सत्तारूढ़ दल के लिए “जीत” के रूप में बताया है। उनके हिसाब से उन्होंने विपक्ष से बीकेयू नेता को दूर कर दिया है। जबकि टिकैत छवि मनमर्जी वाली और प्रदर्शनकारी के रूप से भरोसेमंद नहीं है, जैसा कि उनका इतिहास बताता भी है।

अब तक आंदोलन करने के बाद भाजपा द्वारा उनके चुने जाने पर आया संकेत उनके लिए ही जोखिम भरा हो सकता है, क्योंकि सरकार और किसानों के बीचे खाई अब और गहरी हो गई है।टिकैत इस बात पर जोर दे रहे हैं कि टेनी को इस्तीफा देना चाहिए और उनके बेटे को गिरफ्तार किया जाना चाहिए। एक ऐसी मांग, जिसे भाजपा आसानी से स्वीकार नहीं कर सकती। इसलिए कि टेनी ब्राह्मण हैं। पिछले विस्तार में उन्हें केंद्रीय मंत्रिपरिषद में शामिल ही इसी मकसद से किया गया था, क्योंकि भाजपा को लगा कि उसे असंतुष्ट ब्राह्मणों को शांत करना है।

Radhika Ramaseshan is a senior journalist based in New Delhi.

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