पाकिस्तान के सेना प्रमुख (COAS) जनरल सैयद असीम मुनीर 12 जून को वॉशिंगटन डीसी का दौरा करेंगे। उन्हें यह निमंत्रण अमेरिकी सेना की 250वीं वर्षगांठ समारोह में शामिल होने के लिए दिया गया है, जो 14 जून को आयोजित होगा। इसी दिन अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का 79वां जन्मदिन भी है।
खुफिया सूत्रों के हवाले से CNN-News18 की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका इस उच्च स्तरीय सैन्य मुलाकात का उपयोग पाकिस्तान पर भारत के खिलाफ सक्रिय आतंकवादी संगठनों के खिलाफ ठोस कार्रवाई के लिए दबाव बनाने के रूप में करेगा।
हालांकि, पाकिस्तान में जनरल मुनीर की इस यात्रा को लेकर भारी विरोध देखने को मिल रहा है। कई लोग उन्हें “अपराधी” कहकर संबोधित कर रहे हैं और अमेरिका यात्रा के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) अमेरिका में उनके दौरे के खिलाफ विरोध प्रदर्शन की योजना बना रही है।
इस दौरे को अमेरिका की रणनीतिक सोच का हिस्सा माना जा रहा है, खासकर ऐसे समय में जब पाकिस्तान और चीन के बीच रिश्ते लगातार गहरे हो रहे हैं। अमेरिका चीन को न केवल व्यापार बल्कि आर्थिक, तकनीकी, सैन्य और भू-राजनीतिक मोर्चों पर अपना प्रतिस्पर्धी मानता है।
चीन-पाक सहयोग अमेरिका और भारत के लिए चिंता का विषय
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का सबसे विकसित हिस्सा है। यह गलियारा चीन के शिनजियांग प्रांत को पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट से जोड़ता है, जिससे चीन को अरब सागर तक सीधा रास्ता मिलता है और मलक्का जलडमरूमध्य पर निर्भरता कम होती है।
CPEC के जरिए पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था, ढांचागत विकास और सैन्य क्षेत्र में चीन पर निर्भरता बढ़ी है। चीन न केवल भारी निवेश कर रहा है, बल्कि उन्नत सैन्य तकनीक और संयुक्त हथियार विकास कार्यक्रमों के माध्यम से पाकिस्तान की रक्षा क्षमताओं को मजबूत कर रहा है।
इस साझेदारी से न केवल दक्षिण एशिया में सामरिक संतुलन प्रभावित हुआ है, बल्कि हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती उपस्थिति को लेकर भी सुरक्षा चिंताएं बढ़ी हैं।
टीटीपी और कश्मीर पर भी चर्चा की संभावना
वहीं, पाकिस्तान इस दौरे का इस्तेमाल अपनी सुरक्षा चिंताओं को उठाने के लिए कर सकता है, विशेषकर अफगानिस्तान से संचालित होने वाले तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) को लेकर। इसके अलावा, पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे पर भी अमेरिका से समर्थन मांग सकता है। हालांकि, विश्लेषकों का मानना है कि इसमें कोई खास सफलता नहीं मिलेगी, क्योंकि भारत तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को सिरे से खारिज करता रहा है और अमेरिका भी इसे द्विपक्षीय मसला मानता है।
जनरल मुनीर का यह दौरा उस समय हो रहा है जब क्षेत्रीय और वैश्विक कूटनीति के लिहाज से माहौल संवेदनशील बना हुआ है। यह दौरा दोनों देशों के बीच सुरक्षा सहयोग और रणनीतिक संवाद के लिए अहम मंच साबित हो सकता है।