एक थी विद्यागौरी, गुजरात की पहली महिला स्नातक… - Vibes Of India

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एक थी विद्यागौरी, गुजरात की पहली महिला स्नातक…

| Updated: July 27, 2021 09:40

विद्यागौरी नीलकंठ ने 1908 में जब अहमदाबाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वार्षिक सत्र में वंदे मातरम गाया था, तो उन्होंने एक वर्जना को ध्वस्त किया था। उस समय भीड़ के सामने किसी भी सामान्य महिला की मंच पर गाने की हिम्मत नहीं होती थी। लेकिन विद्याबेन कोई साधारण महिला नहीं थीं, वह गुजरात विश्वविद्यालय से स्नातक करने वाली पहली महिला थीं।

आज की आभासी शिक्षा और डिजिटल स्कूलों की दुनिया में विद्यागौरी की कहानी अकल्पनीय लगती है, जहां महिलाएं सशस्त्र बलों में लड़ाकू भूमिकाओं के लिए होड़ करती हैं। लेकिन यह उनके जैसे लोगों के लगातार प्रयासों के कारण ही है कि भारतीय महिला औपचारिक शिक्षा के गलियारों में प्रवेश कर सकती है – और अंततः शीशे के घरों को चकनाचूर कर देती है।

विद्यागौरी नीलकंठ का जन्म 1 जून, 1876 को अहमदाबाद के एक प्रगतिशील परिवार में हुआ था। उनके दादा भोलानाथ द्विवेदी थे। वह एक समाज सुधारक और गुजरात प्रार्थना समाज के संस्थापक थे। वह बंगाल के प्रसिद्ध समाज सुधारक और शिक्षक ईश्वर चंद्र विद्यासागर के विचारों से प्रभावित थे। उन्होंने अपने विशाल ज्ञान से काफी सम्मान प्राप्त किया था। इसलिए भोलानाथ ने अपनी पोती का नाम विद्यागौरी रखा।


भोलानाथ का दृढ़ विश्वास था कि महिलाओं को शिक्षा से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। हालांकि उदारवादी विचारों को भी समय के संदर्भ में आंका जाना चाहिए। विद्यागौरी की शादी 13 साल की उम्र में 21 साल के रमनलाल नीलकंठ से कर दी गई थी। लेकिन रमनलाल का परिवार ठेठ भी रूढ़िवादी नहीं था। दरअसल सुधारवादी आंदोलन में विद्यागौरी के ससुराल वाले सबसे आगे थे। उनके ससुर महिपत्रम रूपराम नीलकंठ पढ़ाई के लिए इंग्लैंड जाने वाले पहले नागर ब्राह्मण थे। अपने विदेश प्रवास के दौरान उन्होंने महसूस किया कि केवल शिक्षा ही समाज को रूढ़िवाद के जाल से मुक्त कर सकती है।

Ramanbhai and Vidyagauri Nilkanth during their marriage ceremony, 1889

रमनलाल को प्रगतिशील जीन विरासत में मिला था। उन्होंने पत्नी विद्यागौरी को मैट्रिक की परीक्षा देने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने परीक्षा की तैयारी में मदद भी की। मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद विद्याबेन ने गुजरात कॉलेज में प्रवेश लिया, जो उस समय बॉम्बे विश्वविद्यालय से संबद्ध था। 1901 में उन्होंने दर्शनशास्त्र में स्नातक किया। विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान हासिल किया। इस तरह वह गुजरात की पहली महिला स्नातक बनीं। ऐसा कर उन्होंने इतिहास रच दिया था।

Ramanbhai and Vidyagauri Nilkanth with their Graduation Degrees, 1901

अधिकतर पथ-प्रदर्शकों की तरह विद्याबेन दूसरों के जीवन में अंधेरे के खिलाफ एक चमकदार रोशनी बनना चाहती थीं। उन्होंने पिछड़ी, विधवा और निराश्रित महिलाओं के उत्थान के लिए प्रयास जारी रखा। वह सामाजिक सुधार के लिए काम करने वाले कई संगठनों से जुड़ीं। जैसे महिपत्रम रूपराम अनाथालय, गुजरात विद्या सभा, प्रार्थना समाज, विक्टोरिया जुबली अस्पताल, दीवालीबाई कन्याशाला, रणछोड़लाल छोटाभाऊ कन्याशाला, मगनभाई करमचंद गर्ल्स स्कूल, गुजरात साहित्य सभा।

गुजरात की पहली महिला स्नातक होने के साथ-साथ वह अहमदाबाद नगर निगम की मनोनीत सदस्य बनने वाली पहली महिला भी थीं। अपने कार्यकाल के दौरान वह नगर निकाय की उपाध्यक्ष होने के साथ-साथ नगरपालिका स्कूल बोर्ड की अध्यक्ष भी रहीं। वह सत्ता के लिए कभी महत्वाकांक्षी नहीं रहीं। उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य गरीब, शोषित, निराश्रित महिलाओं और बच्चों की मदद करना था।

1936 में विद्यागौरी के ६०वें जन्मदिन पर महात्मा गांधी ने कहा था, “विद्याबेन के लिए कोई उत्सव पर्याप्त नहीं है, क्योंकि वह एक गहना हैं… वह न केवल एक उत्साही समाज सुधारक हैं बल्कि उन्होंने हमारी समृद्ध परंपराओं को भी संरक्षित किया है।”

विद्याबेन ने अखिल भारतीय महिला परिषद की गुजरात शाखा की शुरुआत की, जिसके वह कई वर्षों तक अध्यक्ष रहीं। उन्हें अखिल भारतीय महिला परिषद के लखनऊ अधिवेशन में अध्यक्ष के रूप में चुना गया था। उन्होंने महिलाओं के बीच निरक्षरता को मिटाने का काम संभाला। उन्होंने भारत के हर कोने में अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा और व्यावसायिक स्कूल खोलने के लिए सरकार के साथ मिलकर काफी प्रयास किए। उन्होंने पाठ्यक्रम में ऐसे विभिन्न विषयों को भी शामिल किया, ताकि महिलाओं को शिक्षा में विकल्प मिल सके।

विद्याबेन ने सामाजिक सुधारों पर बराबर जोर दिया। उन्होंने बाल विवाह, दहेज, विधवा विवाह पर प्रतिबंध, बहुविवाह और तलाक कानूनों में सुधार के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उन्होंने महिलाओं के लिए हिंदू कानूनों में विरासत संबंधी सुधार की भी सिफारिश की। उन्होंने गुजरात स्त्री केलावानी मंडल की स्थापना की, जिसने महिलाओं के लिए उच्च शिक्षा पर जागरूकता कार्यक्रम चलाए।

विद्याबेन एक अच्छी लेखिका भी थीं। उन्होंने महिला पत्रिकाओं में योगदान दिया था। उन्होंने और उनकी बहन शारदाबेन मेहता ने इतिहासकार आरसी दत्त की किताब- लेक ऑफ पाम्स- का गुजराती में अनुवाद किया। उन्होंने पति रमनलाल नीलकंठ को एक पत्रिका, ज्ञानसुधा और अन्य किताबें लिखने में भी मदद की।

1918 में विद्यागौरी नीलकंठ गुजरात साहित्य परिषद की पहली महिला अध्यक्ष बनीं। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने राज्य भर में कई स्थानों पर पुस्तकालयों का निर्माण कराया। उन्होंने 18वीं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में गठित राष्ट्रीय योजना समिति में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।

समाज के कल्याण में उनके अमूल्य योगदान के लिए ब्रिटिश सरकार ने उन्हें M.B.E (ब्रिटिश साम्राज्य के सबसे उत्कृष्ट सदस्य) और कैसर-ए-हिंद से सम्मानित किया। जब 7 दिसंबर, 1958 को विद्यागौरी नीलकंठ का निधन हुआ, तो भारत ने एक अग्रदूत को खो दिया, जिन्होंने महिलाओं और बच्चों के जीवन के उत्थान और बेहतरी के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था।

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