राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ( RSS )की चिंता मजहबी लोग सरकारी संस्थानों में हो रहे काबिज

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RSS की चिंता ‘मजहबी’ लोग सरकारी संस्थानों में हो रहे काबिज, संविधान की आड़ में कमजोर हो रहा हिंदुत्व

| Updated: March 16, 2022 21:56

अपनी शुद्ध हिंदी के लिए प्रसिध्द संघ जब अपने डोजियर में " मजहबी कट्टरता" लिखे तो सन्देश साफ़ हो जाता है कि वह किसकी बात कर रहा है। उसकी चिंता इस बात को लेकर भी "मजहबी कट्टरता सरकारी तंत्र में प्रवेश करने की भी व्यापक योजना दिखाई देती है।"

दक्षिण पंथ के लिए वर्तमान समय को राजनीतिक विश्लेषक भले ही स्वर्ण काल मान रहे हो , इनकी राजनीति का डंका भले ही पंचायत से लेकर संसद तक देश के के ज्यादातर हिस्सों में गूंज रहा हो , लेकिन फिर भी हिन्दू राष्ट्र और हिन्दू श्रेष्ठ की कल्पना को साकार करने में जुटा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को ” और भी चाहिए “

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत की उपस्थिति में अहमदबाद में तीन दिन के अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में देश भर से आये 1248 प्रतिनिधियों को अपने संस्थापक केशव बलिराम हेगडेवार का धेय्य याद दिलाया गया कि” हम लोगों को हमेशा सोचना चाहिए कि जिस कार्य को करने का हमने प्रण किया है और जो उद्देश्य हमारे सामने है, उसे प्राप्त करने के लिए हम कितना काम कर रहे हैं? जिस गति से तथा जिस प्रमाण से हम अपने कार्य को आगे बढ़ा रहे हैं, क्या वह गति या प्रमाण हमारी कार्य सिद्धि के लिए पर्याप्त है? ” ।

तीन दिन के अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में कार्य समीक्षा के तहत अलग अलग विषयो पर मंथन के बाद जो ” अमृत ” निकला उसका निचोड़ दलित -आदिवासी को जोड़कर हिंदुत्व के विस्तार को तेज करना रहा , संघ की चिंता यह है की “मजहबी ” सरकारी संस्थानों में काबिज हो रहे है। संविधान के नाम पर हिन्दुओ को बरगलाया जा रहा है।

दलित – आदिवासी के बीच पैठ बनाने की कवायद

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के शीर्ष में भले ही ब्राह्मण वर्चस्व कायम हो , लेकिन कथित तौर से यह सामाजिक संगठन जमीनी सियासत को बेहतर समझता है , इसलिए वह अपने डोजियर में चिंता जताता है की जनगणना वर्ष आते ही कुछ लोग चिल्लाना शुरू कर देते है , की हम हिन्दू नहीं है। इसके लिए दलित और आदिवासी समाज में अपनी पैठ मजबूत करने को लक्षित किया है। केवल गुजरात की ही बात करें तो गुजरात में दोनों समाज कभी कांग्रेस के मजबूत केंद्र होते थे , जो विघटित हुए हैं , लेकिन उतना नहीं जीतना संघ चाहता है , इसलिए उसने अपनी उपलब्धि के तौर पर डोजियर में दर्शाया है की “गुजरात के 10 जिलों में 262 कार्यकर्ताओं ने 4 दिन में 2 लाख लाकेट बांटे , 8,000 परिवारों को धर्मांतरण से रोका , यदि आरएसएस के आकड़ो पर ही भरोसा करें तो समाज के एक बड़े हिस्से का हिंदुत्व से मोह भंग हो रहा है गुजरात में जिसे हिंदुत्व की प्रयोगशाला माना जाता है। जिस पर काबू पाने के लिए गुजरात में अनुसूचित जाति में काम करने वाले 27 परम्परा के 332 संतो की बैठक भी सारंगपुर स्थित स्वामीनारायण संप्रदाय के मंदिर में आयोजित बैठक में उन्हें भाजपा के राज्यसभा सांसद और दलित समाज में लोकप्रिय सवगुण समाधिस्थान के महंत शम्भुनाथ टुंडिया समेत शामिल 10 संतों ने उन्हें समरसता और मतान्तर पर ” मार्गदर्शन ” दिया था।

मजहबी कट्टरता- गंभीर चुनौती

अपनी शुद्ध हिंदी के लिए प्रसिध्द संघ जब अपने डोजियर में ” मजहबी कट्टरता” लिखे तो सन्देश साफ़ हो जाता है कि वह किसकी बात कर रहा है। उसकी चिंता इस बात को लेकर भी “मजहबी कट्टरता सरकारी तंत्र में प्रवेश करने की भी व्यापक योजना दिखाई देती है।”

विदित हो कि देश में पिछले कुछ वर्षो में यूपीएससी पास करने वालों में अल्पसंख्यको की संख्या बढ़ी है। डोजियार में लिखा गया है कि “देश में बढ़ती मजहबी कट्टरता के विकराल स्वरूप ने अनेक स्थानों पर पुनः सिर उठाया है। केरल, कर्नाटक में हिन्दू संगठनों के कार्यकर्ताओं की निर्मम हत्या इसका एक उदाहरण हैं। मज़हबी उन्माद को प्रकट करने वाले कार्यक्रम, रैलियाँ, प्रदर्शन, संविधान और धार्मिक स्वातंत्र्य की आड़ में सामाजिक अनुशासन और परंपरा का उल्लंघन, छोटे-छोटे कारणों को भड़काकर हिंसा के लिए उत्तेजित करना, अवैध गतिविधियों को बढ़ावा देना जैसे दुष्कृत्यों की श्रृंखला बढ़ती जा रही है। सरकारी तंत्र में प्रवेश करने की भी व्यापक योजना दिखाई देती है। इन सबके पीछे एक दीर्घकालीन लक्ष्य का गहरा षड्यंत्र काम कर रहा है, ऐसा भी महसूस होता है। संख्या के बल पर अपनी बातों को मनवाने के लिए किसी भी मार्ग को अपनाने की तैयारी की जा रही है। समाज की एकता, एकात्मता तथा सद्भाव के समक्ष खड़े इस खतरे को संगठित शक्ति, जागरण एवं सक्रियता से सफलतापूर्वक परास्त करने का प्रयास, समय की पुकार है।”

”पंजाब, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र जैसे देश के विभिन्न भागों में योजनाबद्ध रूप से हो रहे हिंदुओं के मतांतरण की जानकारियाँ मिलती हैं। इस चुनौती का एक लंबा इतिहास है ही, किन्तु नए-नए समूहों को मतांतरित करने के भिन्न-भिन्न तरीके अपनाए जा रहे हैं। यह सच है कि हिन्दू समाज के सामाजिक एवं धार्मिक नेतृत्व व संस्थाएँ कुछ मात्रा में जागृत होकर सक्रिय हुई हैं। इस दिशा में अधिक योजनाबद्ध तरीके से संयुक्त एवं समन्वित प्रयास करना आवश्यक प्रतीत होता है।”

यानि उद्देश्य साफ़ है कि निशाने पर कौन है।

राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ साहित्यकार पदम् श्री विष्णु पंड्या

राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ साहित्यकार पदम् श्री विष्णु पंड्या इसमें कुछ गलत नहीं मानते। वाइब्स आफ इंडिया से उन्होंने कहा की संघ 125 साल से हिन्दुओ के लिए काम कर रहा है ,उसका लक्ष्य साफ है , पहले दक्षिण गुजरात से धर्मांतरण की खबर आती थी लेकिन संघ के मजबूत होने के बाद वह बंद हुयी है। वह हिन्दू की चिंता करता है , उनके लिए काम करता है , जो अवरोधक “परिबल ” हैं उन्हें दूर करता है।

जो कही ना कहीं हिन्दू अस्मिता से जुड़ती है , प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से राजनीति को भी प्रभावित करती हैं। लेकिन इस बैठक को वह गुजरात चुनाव से जोड़कर नहीं देखते , भले ही उसमे मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल शामिल होते हो। वह मानते है कि केरल बंगाल में संघ को बाधा आ रही है लेकिन संघ उनसे लड़ रहा है। नार्थ ईस्ट में धर्मातरण को रोकने में संघ काफी हद तक सफल रहा। वह संघ को राजनीति से जोड़कर भी नहीं देखते।

वही वरिष्ठ साहित्यकार ,चिंतक ,विचारक घनश्याम शाह

वही वरिष्ठ साहित्यकार ,चिंतक ,विचारक घनश्याम शाह का मानना है कि संघ का “कांसेप्ट क्लीयर ” है। वह पहले , हिन्दू फिर हिन्दू राष्ट्र और फिर अखंड भारत के सपने को चरणबद्ध तरीके से पूरा करने में लगा है। पिछले कुछ वर्षो में नए मिथक गढ़ने में कामयाब भी हुआ है। 1970 के दशक में “दलित पैंथर्स ” के तौर पर शुरू हुयी मुहीम इनके विकास में बाधक है , जनगणना यह इसलिए नहीं चाहते क्योकि समाज के बड़े तबके से जातिगत जनगणना की मांग हो रही है , यदि जातिगत जनगणना होती है तो लाभार्थी का एक विशेष वर्ग उजागर हो जायेगा , जिससे विद्रोह फैलेगा , जो इन्हे किसी हाल में स्वीकार नहीं है। इनका फैलाव हुआ है ,कई जगह सत्ता का संरक्षण भी मिल रहा है , लेकिन यह संविधान के कुछ पहलुओं को नहीं मानते , इन्होने तो आंबेडकर को भी हिन्दू राष्ट्र का समर्थक बता दिया है , लेकिन आम्बेडकर का पूरा जीवन बताता है की वह क्या चाहते थे ? किसके लिए जीवन भर संघर्ष किया। दलित समाज के युवा इन्हे वैचारिक चुनौती दे रहे हैं। 1980 में मीनाक्षीपुरम में ” समरसता ” का कॉन्सेप्ट संघ ने इसी चुनौती का मुकाबला करने के लिए शुरू किया था। वह आत्मनिभर्रता की बात इसलिए कर रहे है क्योकि वह चाहते की कोई “नौकरी ” ना मांगे लेकिन क्या यह संभव है। आदिवासी समाज को जोड़ने के लिए “सबरी ” का उपयोग भी कर के देख लिया। “मजहबी कटटरता ” की बात वह इसलिए करते है क्योकि वह उनके एजेंडे में सूट होता है।

दलित चिंतक और कांग्रेस विधायक नौशाद सोलंकी

वही दलित चिंतक और कांग्रेस विधायक नौशाद सोलंकी का मानना है कि कट्टरता कौन फैला रहा है यह सर्वविदित है। आरएसएस को सरकारी संरक्षण मिला है , इसलिए मुख्यमंत्री शामिल होते हैं। संघ किसके लिए काम करता है यह भी फलित है। उनके मुताबिक यह सब चुनाव की तैयारी है।

कॉरोनकाल में भी तेजी से आगे बढ़ा संघ


कोरोना काल के दौरान जब दुनिया थम सी गयी थी तब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तेजी से आगे बढ़ा , समीझा के दौरान जो तथ्य उभर कर सामने आये उससे उनकी पुष्टी भी होती है। मार्च 2021 में संघ देशभर में 34569 स्थानों पर था जो 1 मार्च 2022 तक बढ़कर 38390 स्थानों पर पहुंच गया। वहीँ आरएसएस की शाखा 55,652 से बढ़कर 60,929 हो गयी। कोरोना में जब मिलना जुलना लगभग बंद था , तब संघ के स्वयसेवक साप्ताहिक मिलन में पीछे नहीं रहे , 18,553 मिलन बैठक बढ़कर 20,681 हो गयी , वही संघ मंडली में भी 330 से अधिक की वृद्धि देखी गयी यानि 7655 से बढ़कर 7923 हो गयी।

मोहन भागवत की मौजूदगी में आरएसएस की तीन दिवसीय अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा शुरू

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