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सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की जगहों के नाम बदलने की याचिका

| Updated: February 28, 2023 12:36 pm

औरंगाबाद और उस्मानाबाद का नाम बदलकर क्रमशः छत्रपति संभाजीनगर और धाराशिव करने के कुछ दिनों बाद सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि शहरों और कस्बों पर उनकी प्राचीन पहचान के साथ विदेशी आक्रमणकारियों की छाप को मिटाने का प्रयास खतरे से भरा है।

जस्टिस केएम जोसेफ और बीवी नागरत्ना ने  याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय से वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों को अतीत की कैदी नहीं बनाने को कहा। अदालत ने कहा- अतीत की घटनाएं वर्तमान और भविष्य को परेशान नहीं कर सकतीं। आप अतीत के बारे में चिंतित हैं और वर्तमान पीढ़ी पर इसका बोझ डालने के लिए इसे खोद रहे हैं। लेकिन इससे और अधिक तनाव पैदा होगा। याद रखिए, भारत में लोकतंत्र है। 

उपाध्याय की जनहित याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ” यह सच है कि भारत पर कई बार हमले हुए। बाहर के आक्रमणकारियों ने यहां राज किया गया, लेकिन यह सब इतिहास का हिस्सा है। आप सलेक्टिव तरीके से इतिहास बदलने के लिए नहीं कह सकते। अब इस मामले को उठाकर क्या फायदा हो सकता है? देश में और भी कई समस्याएं हैं। उन पर ध्यान देने की जरूरत है। देश के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात संविधान की प्रस्तावना है, जो धर्मनिरपेक्षता और अलग-अलग वर्ग में सद्भाव और बंधुत्व के रखरखाव को बढ़ावा देती है। यही राष्ट्रीय एकता की सच्ची धारणा होगी और देश को एक सूत्र में बांधेगी। क्या आप अतीत में जाना चाहते हैं, मुद्दे को जीवित रखना चाहते हैं और एक विशेष समुदाय की ओर इशारा करके उसे बर्बर बताते हुए देश में तनाव बनाए रखना चाहते हैं? आपको यह याद रखना चाहिए भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और यह एक धर्मनिरपेक्ष मंच है।”

जस्टिस जोसेफ ने माना कि याचिकाकर्ता ने कुछ ऐसी बातें बताई हैं, जो उन्हें भी मालूम नहीं थी। दरअसल याचिका में देश में विदेशी आक्रमणकारियों के नाम पर शहरों, सड़कों, इमारतों और संस्थानों के नाम बदलने के लिए आयोग बनाने मांग की गई थी। याचिकाकर्ता वकील अश्विनी उपाध्याय ने हजार से ज्यादा नामों का हवाला दिया था।  री- नेमिंग कमीशन बनाने का आदेश जारी करने की अपील के लिए दाखिल इस याचिका में संविधान के अनुच्छेद 21, 25 और 29 का हवाला देते हुए ऐतिहासिक गलतियों को सुधारने की बात भी कही गई।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, हमें यह ध्यान में रखना होगा कि यह अदालत अनुच्छेद 32 के तहत मामले को देख रहा है, जिसमें न्यायालय को मौलिक अधिकारों को लागू करने का काम सौंपा गया है। प्रस्तावना के संदर्भ में भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। इसे नौ जजों ने बरकरार रखा है।

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