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पुस्तक हैं प्रियांशी पटेल का पहला प्यार

| Updated: February 13, 2022 6:39 pm

मां होने के नाते पटेल ने बच्चों को किताब लेने के लिए प्रेरित करने और पढ़ने के महत्व पर भी जोर दिया। उन्होंने समझाया, “मेरी बेटी मुझे हर रात पढ़ते हुए देखती है। मुझे लगता है कि जागरूक बच्चों को पालने का यह सही तरीका है।

वह कॉरपोरेट जगत में भले ही आगे बढ़ने वाली हों, लेकिन किताबें ही ओलीक्सर ऑयल्स और कर्मा फाउंडेशन की संस्थापक प्रियांशी पटेल का ‘पहला प्यार’ हैं।

एसजी हाईवे पर उनके कार्यालय में हुई बातचीत के दौरान पटेल ने बताया कि पढ़ने का शौक उन्हें मां से विरासत में मिला है। वह जीवन भर पढ़ने की शौकीन रही हैं। उन्होंने कहा, “पढ़ने की मेरी सबसे पुरानी स्मृति चिकन सूप सीरीज है। मैं उन सभी से प्यार करती थी और मैंने इसे बहुत कम उम्र में पढ़ा था। ”

उन्होंने कहा, “मैं बिना पढ़े कभी नहीं सोती। मैं साल में कम से कम 100 किताबें पढ़ने की कोशिश करती हूं। मैं हमेशा सक्रिय रहती हूं और पढ़ने का आनंद उठाती हूं। फिर लेखकों से मिलने, उनके काम को बढ़ावा देने और उनकी प्रक्रिया के बारे में अधिक जानने की कोशिश में लगी रहती हूं। ”

पटेल अहमदाबाद बुक क्लब (एबीसी) की संस्थापक हैं, जो नियमित रूप से पठन सत्र आयोजित करता है, पुस्तक लॉन्च करता है और लेखकों का साक्षात्कार आयोजित करता है। एबीसी की ताजा पेशकश रीडाथॉन है-एक ऑनलाइन रीडिंग फेस्टिवल, जहां लोग पढ़ने के लिए एक साथ आते हैं और एक-दूसरे को इसके लिए प्रोत्साहित करते हैं।

वैसे वह “सब कुछ” पढ़ती हैं, लेकिन यह सच है कि पटेल की सर्वकालिक पसंदीदा पुस्तक भगवद गीता है । पटेल ने कहा, “मैं गीता के माध्यम से जीवन और अपने बारे में सीखती हूं, और मैं अपने जीवन के अधिकांश प्रश्नों के लिए उसी की शरण में जाती हूं।”

पटेल ने खलील जिब्रान की द प्राफेट और नील डोनाल्ड की कन्वर्सेशन विद गॉड को कुछ ऐसी किताबों के रूप में गिना, जिनका उन पर स्थायी प्रभाव रहा है।

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मां होने के नाते प्रियांशी पटेल ने बच्चों को किताब लेने के लिए प्रेरित करने और पढ़ने के महत्व पर भी जोर दिया। उन्होंने समझाया, “मेरी बेटी मुझे हर रात पढ़ते हुए देखती है। मुझे लगता है कि जागरूक बच्चों को पालने का यह सही तरीका है। ”

प्रियांशी पटेल ने कहा, “जब मैं उदास महसूस कर रही होती हूं या कोई संदेह होता है तो किताबें मुझे सुकून देती हैं। मैंने हाल ही में हरमन हेसे की किताब सिद्धार्थ को तब पढ़ा, जब मुझे इसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी। ”

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