ऊना में 2016 में दलितों की पिटाई के मामले में कुछ आरोपियों की ओर से जमानत के लिए गुजरात हाई कोर्ट में 15 जुलाई को बहस हुई। इस दौरान एक वकील ने बताया कि उक्त अपराध की “नियति” यह थी कि आरोपी “सभी गौ रक्षक” हैं। “इस धारणा के तहत कि एक जीवित गाय को मारा जा रहा था और उनके अवशेषों को हटाया जा रहा था” और यह कि अभियुक्तों को यह नहीं पता था कि जिन दलितों पर हमला किया गया था, “वे अल्पसंख्यक लोग नहीं हैं।”
जस्टिस निखिल करील ने इस पर वकील से तुरंत कहा, “यह कहना अच्छी बात नहीं है। दो समुदायों के बीच अंतर करने की कोशिश करना… स्वागत योग्य तर्क नहीं है।” बता दें कि
घटना के कुछ दिनों बाद ऊना पुलिस स्टेशन में दर्ज प्राथमिकी में नामजद चार प्रमुख आरोपियों- रमेशभाई जादव, प्रमोदगिरी गोस्वामी, बलवंतगिरी गोस्वामी और राकेश जोशी ने गुजरात हाई कोर्ट से जमानत मांगी है।
गोरक्षकों के एक समूह ने 11 जुलाई 2016 को बालू सरवैया, उनकी पत्नी कुंवर, पुत्रों वशराम और रमेश, भतीजे अशोक और बेचार के साथ-साथ रिश्तेदार देवशी बबरिया पर हमला किया था। स्वयंभू गौरक्षकों ने सबसे पहले वशरम, रमेश, अशोक और बेचार पर हमला किया था। तब वे मोटा समाधियाला गांव में एक गाय के शव की खाल उतार रहे थे। यह देख उन पर जानवर को मारने का आरोप लगाया गया था। सरवैया व अन्य ने बीच-बचाव करने की कोशिश की, तो उनकी भी पिटाई कर दी गई। इसके बाद हमलावरों ने कथित तौर पर एक कार में वशराम, रमेश, अशोक और बेचार का अपहरण कर लिया। फिर उन्हें ऊना शहर ले गए और ऊना पुलिस स्टेशन के पास छोड़ने से पहले उन्हें सार्वजनिक रूप से कोड़े मारे। मामले की जांच कर रही सीआईडी ने चार पुलिसकर्मियों सहित 34 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। पुलिस वालों पर तथ्यों से छेड़छाड़ करने और मामले को दूसरा मोड़ देने का आरोप था।
आरोपी प्रमोदगिरी गोस्वामी और राकेश जोशी के वकील बीएम मंगुकिया ने कहा, “इस अपराध की खासियत यह है कि ये (आरोपी) सभी गौ रक्षक हैं। उन्होंने खुद मान लिया कि जीवित गाय को मारा जा रहा था और उनके अवशेष निकाले जा रहे थे। किसी को नहीं पता था कि ये (पीड़ित) ऐसे लोग हैं जो अल्पसंख्यक नहीं हैं।”
मंगुकिया ने आगे दलील दी कि जमानत मांगने वाले आरोपी छह साल से हिरासत में हैं, जो कि सजा के मामले में दी जा सकने वाली अधिकतम सजा से अधिक है। वेरावल अदालत के समक्ष चल रहे मुकदमे का जिक्र करते हुए मंगुकिया ने यह भी कहा कि सबूत पक्ष ने 13 स्थगन की मांग की है, जिससे मुकदमे में देरी हो रही है। जमानत याचिका पर आगे की सुनवाई 18 जुलाई को जारी रहेगी।
इस बीच, पीड़ित वशराम सरवैया की वकील मेघा जानी ने जमानत याचिकाओं का विरोध किया। 15 जुलाई को उन्होंने कहा कि पीड़ितों सहित गवाहों की गवाही पूरी होने तक आरोपी को सलाखों के पीछे रखा जाना चाहिए। जानी ने कहा, “ये चार व्यक्ति जो जेल में हैं, वे सबसे पहले (भीड़ में) पहुंचे और उन्होंने ही हिंसक माहौल बनाया। इसके बाद भीड़ आई… उन्हें ऊना (मोटा समाधियाला से) ले जाया गया और बाजार में आधा नंगा कर घुमाया गया, उन्हें पीटा गया और उन्हें पुलिस के हवाले कर दिया गया। यह हमले की कोई साधारण घटना नहीं है। यह सबसे भीषण घटना है, जो हमने हाल के दिनों में अत्याचार अधिनियम के तहत देखी है। ये वे लोग हैं जिन्होंने सोचा कि वे जो कर रहे थे वह बिल्कुल सही था, क्योंकि वे उन्हें भी पीट-पीट कर थाने ले गए और अर्धनग्न कर दिया।”
जानी ने कहा, “हमले के बाद हमलावर भाग जाता है। लेकिन ये वे व्यक्ति हैं, जिनकी उपस्थिति अपराध के दौरान शुरू से अंत तक थी। मुकदमा अभी खत्म नहीं हुआ है, पीड़ितों को गवाह बॉक्स में आना बाकी है। लगभग 80 गवाहों से पूछताछ की जा चुकी है और सुनवाई एक महत्वपूर्ण चरण में है… चिंता की बात यह है कि पीड़ितों की अभी तक गवाही नहीं हुई है। उन्हें (पीड़ितों को) न केवल इस अपमान का सामना करना पड़ा है, बल्कि इसका परिणाम यह हुआ है कि उन्होंने (पीड़ितों) ने इसके बाद वह पेशा ही छोड़ दिया, जिस पर निर्भर पूरा परिवार 2016 से व्यवसाय नहीं कर रहा। इसलिए जब तक सभी गवाहों की गवाही पूरी नहीं हो जाती, तब तक इन चार व्यक्तियों को सलाखों के पीछे रहना चाहिए। ”