भगवान भरोसे है भारत में बनने वाली दवाओं की क्वालिटी जांच

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भगवान भरोसे है भारत में बनने वाली दवाओं की क्वालिटी जांच

| Updated: October 23, 2022 15:32

इस महीने की शुरुआत में गाम्बिया में लगभग 70 बच्चों की मौत हो गई। इसके लिए जहरीले रसायनों (toxic chemicals) से दूषित (contaminated) भारत में बने कफ सिरप को दोषी ठहराया गया। दो साल पहले जम्मू में भी ऐसा ही कुछ हुआ था। तब वहां डॉक्टरों को हिमाचल प्रदेश की एक कंपनी डिजिटल विजन (Digital Vision) में बने कफ सिरप पीने के बाद किडनी फेल हो जाने के कारण बच्चों में मौतों (dying from kidney failure) से जूझना पड़ा था। जांच में दवा में एक औद्योगिक ग्रेड सॉल्वेंट (industrial-grade solvent)- डायथिलीन ग्लाइकोल (diethylene glycol) पाया गया था। सॉल्वेंट का इस्तेमाल दवा बनाने के लिए नहीं किया जाता है और यह मनुष्यों के लिए जहरीला होता है। दवा उद्योग को डीईजी के उलटे असर के बारे में 1937 से पता है। फिर भी, 1972 के बाद से भारत में डीईजी के जहरीले साबित होने के कम से कम पांच बड़े मामले सामने आए हैं।

पांच दशक (decades ) बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने एक बार फिर हरियाणा स्थित मेडेन फार्मास्यूटिकल्स (Maiden Pharmaceuticals) द्वारा निर्मित चार कफ सिरप में डीईजी और एथिलीन ग्लाइकॉल के “खतरनाक” स्तरों को पकड़ा, जो पश्चिम अफ्रीकी देशों में भेजे जा रहे थे। डब्ल्यूएचओ ने कहा कि कंपनी ने उत्पादों की सुरक्षा और गुणवत्ता पर कोई गारंटी नहीं दी है। डब्ल्यूएचओ के अलर्ट के साथ ही हंगामा शुरू हो गया। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय (Union Health Ministry) ने पहले से बदनाम कंपनी- मैडेन फार्मास्युटिकल्स- को मैन्युफैक्चरिंग के सभी काम बंद कर देने के लिए कहा। सरकार ने पूरे मामले की जांच करने और भविष्य की कार्रवाई का सुझाव देने के लिए एक विशेषज्ञ पैनल भी बनाया।

कहना ही होगा कि यह मामूली कदम हैं और इसमें भी बहुत देर हो चुकी है। इसलिए कि मंत्रालय भारतीय दवा नियामक प्रणालियों (drug regulatory systems) की गहरी जड़ें (deep-rooted il) अच्छी तरह से जानता है। डब्ल्यूएचओ की जो चेतावनी जारी की,  उससे एक बार फिर से सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (Central Drug Standard Control Organisatio) चर्चा में है। बता दें कि एक दशक पहले सांसदों के एक पैनल ने भी इस पर अंगुली उठाई थी। फार्मास्युटिकल निर्माता इस तरह की ढुलमुल सिस्टम का लाभ तब तक उठाते हैं, जब तक कि कोई दुर्घटना न हो जाए, जैसा कि हाल ही में गाम्बिया में हुआ।

हरियाणा खाद्य एवं औषधि प्रशासन (Food and Drug Administration) के अफसरो ने डब्ल्यूएचओ अलर्ट के बाद जब सोनीपत में मेडेन के प्लांट की जांच की, तो उन्हें रिकॉर्ड में कई विसंगतियां मिलीं। इसके कारण कच्चे माल (raw materia) की क्वालिटी का पता नहीं चल सका।

फर्म ड्रग इंस्पेक्टरों को प्रोपलीन ग्लाइकोल (propylene glycol ) और सोर्बिटोल घोल (sorbitol solution) के साथ-साथ सोडियम मिथाइलपरबेन (sodium methylparaben) के बैच नंबर नहीं दिखा सकी, जिससे उनके लिए केमिकल्स के स्रोत का पता लगाना (trace the source) और उनकी क्वालिटी की जांच करना असंभव हो गया। कंपनी ने सॉल्वेंट में डीईजी और एथिलीन ग्लाइकॉल जैसे दूषित पदार्थों की जांच नहीं की। वह प्रोडक्ट्स की इन-प्रोसेस परीक्षण (in-process testing) रिपोर्ट तैयार करने में भी विफल रहा।

विशेषज्ञों की राय है कि रसायनों (chemicals ) की सप्लाई करने वाले व्यापारियों के लिए या तो लागत कम करने या खराब क्वालिटी कंट्रोल उपायों के कारण डीईजी को प्रोपलीन ग्लाइकोल या डीईजी के साथ मिलावटी प्रोपलीन ग्लाइकोल के रूप में गलत लेबल करना पूरी तरह से संभव है। ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क के एस श्रीनिवासन ने कहा, “कंपनी फार्मास्युटिकल-ग्रेड प्रोपलीन ग्लाइकोल का उपयोग नहीं कर सकती है। यदि कंपनी अंतिम उत्पाद पर गुणवत्ता परीक्षण नहीं कर रही है, तो यह बर्बाद है। ”

मेडेन के चार उत्पादों (products) की क्वालिटी जांच में कई गड़बड़ियां हैं। अब एक पल के लिए रुकें और भारत की 10,000 से अधिक दवा निर्माण इकाइयों (pharmaceutical manufacturing units) के बारे में सोचें- जिनमें से 2,000 से अधिक WHO-GMP (WHO के गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस स्टैंडर्ड्स) प्रमाणित हैं- जिनका मालिकाना (owned) 3,000 से अधिक कंपनियों के पास है और वे हजारों उत्पाद हैं जिनका वे हर दिन निर्माण कर रहे हैं। उनकी क्वालिटी की जांच करने के लिए नियामक प्रणाली (regulatory system) कितनी मजबूत और विश्वसनीय है?

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