D_GetFile

तलाक से पहले घर छोड़ने वाली महिलाएं बाद में पति के घर में रहने का दावा नहीं कर सकतीं: HC

| Updated: October 4, 2022 11:33 am

औरंगाबादः बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि जब कोई महिला तलाक के लिए अपने वैवाहिक घर (matrimonial home) छोड़ देती है, तो बाद में पति के उसी घर में रहने का अधिकार मांगने का अधिकार भी खो देती (cannot later seek “right to residence) है। भले ही तलाक के खिलाफ उसकी याचिका घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम (Protection of Women from Domestic Violence Act) 2005 के तहत पेंडिंग हो। यह फैसला बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने सुनाया है।

अदालत एक ऐसे मामले की सुनवाई कर रही थी जिसमें पति और उसके परिवार ने दावा किया कि पत्नी बहुत झगड़ालू (rude) थी और 10 जून, 2015 को अपनी शादी के कुछ महीने बाद ही उसने अपनी मर्जी से घर छोड़ दिया। महिला ने एक मजिस्ट्रेट की अदालत का रुख किया था, जिसने पति को तलाक कानून (DV Act) के तहत पत्नी को प्रति माह 2,000 रुपये और 1500 रुपये प्रति माह का अंतरिम गुजारा भत्ता (interim maintenance) देने का आदेश दिया था।

पत्नी ने इस आदेश को सेशन कोर्ट में चुनौती दी, जिसने आदेश को संशोधित (modified the order) कर दिया। उसने पति और उनके माता-पिता को महिला को साझा घर (shared household) में रखने का निर्देश दिया, जो पति के पिता के नाम पर था।

पति के माता-पिता ने तब हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। वहां न्यायमूर्ति संदीप कुमार मोरे ने कहा कि अब यह तय हो गया है कि “भले ही साझा घर ससुराल वालों के नाम पर हो, पत्नी इस तरह के साझा परिवार के साथ उसी घर में रहने का दावा कर सकती है।”हालांकि, जुलाई 2018 में दोनों की शादी टूट गई थी। ऐसे ससुर और सास ने दावा किया कि तलाकशुदा पत्नी निवास के आदेश का दावा नहीं कर सकती है या पहले के निवास आदेश को लागू नहीं कर सकती है, जो उनके बेटे को उनकी शादी के दौरान दिया गया (divorced wife cannot claim a residence order or enforce an earlier residence order that was issued during her marriage to their son) था। महिला ने तर्क दिया कि पति ने धोखाधड़ी के जरिए तलाक लिया और इसके खिलाफ अपील दायर की।

जस्टिस मोर ने फैसला सुनाया कि तलाक कानून की की धारा-17 महिला को निवास का अधिकार देती है, लेकिन यह तभी सच है जब महिला तलाक से पहले साझा घर में रहती हो। अदालत ने कहा, “इस तरह, तलाकशुदा पत्नी पहले के निवास आदेश का सहारा नहीं ले सकती है, जब उसके पति के साथ उसका विवाह उचित अधिकार क्षेत्र वाले अदालत द्वारा पारित तलाक की डिक्री द्वारा भंग कर (the divorced wife cannot resort to the earlier residence order when her marriage with her husband has been dissolved by a divorce decree passed by the court) दिया गया हो। विशेष रूप से तब, जब वह चार साल पहले अपने साझा घर को छोड़ चुकी हो। ऐसे में वह बेदखली रोकने की राहत की भी हकदार नहीं है, क्योंकि उसके पास साझा घर का कब्जा नहीं है।

जस्टिस मोरे ने फैसला सुनाते हुए कहा, “इसलिए उनकी अपील की पेंडेंसी उनके ससुराल वालों के आवेदनों के रास्ते में नहीं आएगी, जो निचली अदालत के आदेशों को चुनौती देती है। मेरी राय है कि मजिस्ट्रेट ने निश्चित रूप से आवेदकों को साझा घर में उसे एक कमरा उपलब्ध कराने का निर्देश देने में गलती की है।”

Also Read: आरएसएस नेता ने जताई गरीबी, बेरोजगारी और असमानता पर चिंता

Your email address will not be published. Required fields are marked *