नई दिल्ली। अहमदाबाद से लंदन जा रही एयर इंडिया की फ्लाइट AI171 के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद शुरुआती विजुअल विश्लेषण में गंभीर तकनीकी गड़बड़ियों और असामान्य उड़ान कॉन्फ़िगरेशन की आशंका जताई जा रही है।
विमान विशेषज्ञों के अनुसार, Boeing 787-8 ड्रीमलाइनर ने टेक-ऑफ के समय अपना लैंडिंग गियर नीचे रखा हुआ था और विंग फ्लैप्स पूरी तरह से रीट्रैक्टेड (हटे हुए) थे। यह स्थिति टेक-ऑफ के दौरान बेहद असामान्य मानी जाती है। सामान्य तौर पर, टेक-ऑफ के समय फ्लैप्स को लेवल 5 (या उससे अधिक) पर सेट किया जाता है और गति और ऊंचाई बढ़ने के बाद धीरे-धीरे उन्हें हटाया जाता है।
इसी तरह, जैसे ही विमान हवा में स्थिर चढ़ाई करता है, लैंडिंग गियर कुछ ही सेकंड में ऊपर कर दिए जाते हैं—आमतौर पर 600 फीट की ऊंचाई से पहले ही। लेकिन इस मामले में, विजुअल फुटेज से पता चलता है कि लैंडिंग गियर ऊपर किए जा रहे थे लेकिन पायलट ने उन्हें दोबारा नीचे कर लिया, जिससे यह संकेत मिलता है कि संभवतः इंजन थ्रस्ट या पावर में अचानक कमी आई।
एक अन्य आशंका यह भी जताई जा रही है कि संभव है लैंडिंग गियर मैकेनिकल या हाइड्रोलिक खराबी के चलते ऊपर न जा पाया हो। ऐसी स्थिति में, पायलट ने ड्रैग को कम करने और गति बढ़ाने के लिए फ्लैप्स को जल्दी हटा दिया हो, लेकिन ऐसा करना कम ऊंचाई पर बेहद जोखिमभरा होता है क्योंकि यह लिफ्ट को कम करता है और स्टॉल (गति की कमी से विमान का गिरना) का खतरा बढ़ाता है।
हालांकि इन सभी तकनीकी दिक्कतों के बावजूद, विमान के उड़ान पथ में किसी बड़े झटके या झुकाव के संकेत नहीं मिले, जिससे लगता है कि पायलट्स को कुछ हद तक नियंत्रण प्राप्त था। विशेषज्ञों के बीच यह भी अनुमान है कि दाईं ओर रडर का इनपुट दिया गया, जिससे संभव है कि बाएं इंजन में खराबी आई हो। हालांकि यह स्पष्टीकरण लैंडिंग गियर नीचे और फ्लैप्स ऊपर होने की स्थिति को पूरी तरह नहीं समझा पाता।
सामान्य परिस्थिति में, इतनी कम ऊंचाई पर न तो गियर नीचे होता है और न ही फ्लैप्स पूरी तरह हटाए जाते हैं। इस असामान्य संयोजन से यह आशंका बढ़ जाती है कि या तो विमान में तकनीकी गड़बड़ियों की श्रृंखला शुरू हो गई थी, या फिर पायलट किसी आपातकालीन स्थिति से निपटने की कोशिश कर रहे थे।
विमान की आखिरी ऊंचाई में गिरावट और संभावित स्टॉल की वजह शायद पर्याप्त लिफ्ट न बन पाना और अत्यधिक ड्रैग होना रहा, जिसके चलते पायलट विमान को संभाल नहीं पाए।
DGCA और अन्य जांच एजेंसियां अब इन तमाम तकनीकी बिंदुओं पर विशेष ध्यान देंगी, जब वे ब्लैक बॉक्स से मिले फ्लाइट डेटा और कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डिंग का विश्लेषण करेंगी। शुरुआती विजुअल सबूत जांच में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
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