प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 दिसंबर को अपने निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी (जिसे काशी भी कहा जाता है) में 700 करोड़ रुपये के काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का उद्घाटन किया था। काशी विश्वनाथ मंदिर में नदी से पवित्र जल ले जाने और वहां पूजा-अर्चना करने से पहले पीएम ने गंगा में डुबकी भी लगाई थी। शाम को उन्होंने नाव से गंगा आरती देखी थी।
लगभग दो हफ्ते बाद प्रधानमंत्री ने सोमवार को हिमाचल प्रदेश के मंडी शहर के दौरे पर कहा कि उन्हें “छोटी काशी” में रहने का सौभाग्य मिला है। प्रधानमंत्री वहां 11,000 करोड़ रुपये से अधिक की पनबिजली परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास करने गए थे। बता दें कि यूपी और हिमाचल दोनों विधानसभाओं के लिए 2022 में चुनाव होने वाले हैं।
मंडी में स्थानीय बोली मांडयाली में भीड़ को संबोधित करते हुए मोदी ने इसी महीने काशी विश्वनाथ के दर्शन के बाद छोटी काशी में होने पर प्रसन्नता व्यक्त की।
उन्होंने शहर के भूतनाथ मंदिर और पंचवक्त्र मंदिर की अपनी यात्राओं का भी उल्लेख किया। वहां शिव धाम परियोजना के लिए चल रहे काम के बारे में बताया, जिसके लिए उन्होंने फरवरी में आधारशिला रखी थी।
मंडी को “छोटी काशी” के रूप में बताने वाले मोदी की बात का समर्थन हिमाचल प्रदेश के सीएम जयराम ठाकुर ने भी किया। उन्होंने कहा कि छोटी काशी का पता इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि मंडी में “300 मंदिर” हैं और राज्य सरकार इसे काशी के तर्ज पर ही विकसित करने की कोशिश कर रही है।
मंडी को ‘छोटी काशी’ क्यों कहा जाता है
ब्यास नदी के तट पर स्थित मंडी शहर 1527 ईस्वी पूर्व का है। तब अजबर सेन नाम के राजा ने यहां अपना महल बनाया था। जब इसे 1948 में मुख्य आयुक्त का प्रांत के रूप में बनाया गया, तब यह हिमाचल प्रदेश का हिस्सा बन गया।
यह शहर प्राचीन पत्थरों के कई मंदिरों और सप्ताह भर चलने वाले शिवरात्रि उत्सव के लिए जाना जाता है, जो हर साल फरवरी-मार्च में मनाया जाता है। तिथि हिंदू कैलेंडर के अनुसार बदलती रहती है।
इसके कई मंदिरों को उनके विरासत मूल्य के कारण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा “संरक्षित” स्मारक घोषित किया गया है। मंडी में पंचवक्त्र मंदिर, त्रिलोकीनाथ मंदिर, अर्धनारीश्वर मंदिर और बरसेला स्मारक राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों की सूची में शामिल हैं।
पूर्व एएसआई निदेशक और मंडी की स्मारकीय विरासत पुस्तक के लेखक बीएम पांडे कहते हैं, “मंडी में कई मंदिर हैं, और सभी प्रकार के हैं। कुछ शिव को समर्पित हैं, कुछ शक्ति को और कुछ वैष्णव मंदिर हैं। लेकिन अगर आप संख्याओं को देखें, तो शिव को समर्पित मंदिरों की संख्या अधिक हैं। यही वह वजह है जो मंडी को ‘छोटी काशी’ का लोकप्रिय नाम देता है।”
शहर में कुछ लोकप्रिय मंदिर इस तरह हैं-
भूतनाथ मंदिर: माना जाता है कि 1527 ईस्वी में राजा अजबर सेन द्वारा बनाया गया यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और शहर के केंद्र में स्थित है।
पंचवक्त्र मंदिर: यह मंदिर ब्यास और सुकेती नदियों के संगम पर स्थित है। यहां देवता के रूप में पांच सिर वाले शिव हैं, जिसमें पांच चेहरे उनके अलग-अलग मूड को दर्शाते हैं। पत्थर से बने इस मंदिर की सतह पर दैवीय आकृतियों और लेखों की नक्काशी है। वास्तव में मंदिर कब बनाया गया था, यह एक रहस्य बना हुआ है। लेकिन इसका राजा सिद्ध सेन (1684-1727) के शासनकाल में बाढ़ के कारण क्षतिग्रस्त होने के बाद पुनरुद्धार किया गया था।
अर्धनारीश्वर मंदिर: मंदिर में मुख्य देवता के रूप में अर्धनारीश्वर हैं। यानी आधा पुरुष-आधा स्त्री, या शिव और शक्ति का मिलन। मंदिर शहर के ठीक बीच में है।
त्रिलोकीनाथ मंदिर: तीन सिर वाले शिव को समर्पित है यह मंदिर। जो पृथ्वी, स्वर्ग और नरक तीनों पर शासन करने वाले देवता का प्रतिनिधित्व करते हैं। पत्थर के मंदिर में एक मुख्य मंदिर (गर्भगृह) और इसके ठीक सामने एक झोपड़ी जैसी संरचना है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण अजबर सेन की पत्नी ने कराया था।
शिकारी देवी मंदिर: यह मंदिर जिले की सबसे ऊंची चोटी पर 3,359 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसे “मंडी का ताज” के रूप में जाना जाता है। छत रहित मंदिर एक स्थानीय देवी को समर्पित है। कहा जाता है कि इसे पांडवों ने बनवाया था।
तरना देवी हिल: लाल और सफेद पत्थरों से बना यह 17वीं सदी का मंदिर देवी काली को समर्पित है। मूर्ति के तीन मुख हैं। लोकप्रिय मान्यता के अनुसार, मंदिर का निर्माण स्थानीय शासक राजा श्याम सेन द्वारा किया गया था, जो देवी के भक्त थे।
माधो राय मंदिर: इसे मंडी के रक्षक के रूप में जाना जाता है। माधो राय भगवान विष्णु का दूसरा नाम है। माना जाता है कि मंदिर का निर्माण मंडी के राजा सूरज सेन ने कराया था। राजा का कोई वारिस नहीं था और इस तरह राधा और भगवान कृष्ण की एक चांदी की छवि को माधो राय नाम दिया गया और सूरज सेन की मृत्यु के बाद मंडी के राजा के रूप में नियुक्त किया गया।
शहर का शिवरात्रि मेला मुख्य रूप से माधो राय और भूतनाथ के दो मंदिरों के आसपास लगता है।
इस शहर में पराशर और कमरुनाग जैसी झीलें भी हैं, जिन्हें लोकप्रिय रूप से पवित्र माना जाता है। जहां पराशर झील का नाम ऋषि पाराशर के नाम पर रखा गया है, वहीं कमरुनाग महाभारत के राजा यक्ष का नाम है, जिनकी पूजा पांडवों द्वारा की जाती थी। उन्हें “बारिश के देवता” के रूप में भी जाना जाता है। दोनों झीलों से मंदिर भी जुड़े हुए हैं।