अहमदाबाद: सूचना का अधिकार (RTI) कानून के 20 साल पूरे होने के अवसर पर गुजरात कांग्रेस ने केंद्र की भाजपा सरकार पर जोरदार हमला बोला है। रविवार को जारी एक बयान में, गुजरात कांग्रेस अध्यक्ष अमित चावड़ा ने कहा कि 2014 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से, मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में बनाए गए इस ऐतिहासिक कानून को लगातार कमजोर किया जा रहा है।
उन्होंने आरोप लगाया कि इससे देश की पारदर्शिता और लोकतांत्रिक ढांचे को भारी नुकसान पहुंचा है।
यह कानून 12 अक्टूबर, 2005 को पूरी तरह से लागू हुआ था। अमित चावड़ा ने याद दिलाया कि इस कानून का मुख्य उद्देश्य आम नागरिकों को सरकारी प्राधिकरणों से जानकारी प्राप्त करने का अधिकार देकर उन्हें सशक्त बनाना था।
उन्होंने कहा, “इस कानून ने गरीबों को राशन, पेंशन, मजदूरी के बकाये और छात्रवृत्ति जैसे उनके हक दिलाने में बहुत मदद की थी। लेकिन 2014 से, सूचना का अधिकार कानून को लगातार कमजोर किया जा रहा है, जिसने देश की पारदर्शिता और लोकतांत्रिक व्यवस्था को प्रभावित किया है।”
चावड़ा ने विशेष रूप से 2019 में किए गए संशोधनों का जिक्र करते हुए कहा कि इन बदलावों ने सूचना आयोग की स्वतंत्रता को कम कर दिया और कार्यपालिका के प्रभाव को बढ़ा दिया है। उन्होंने बताया कि संशोधनों से पहले, सूचना आयुक्तों का कार्यकाल पांच साल के लिए तय था और उनकी सेवा की शर्तें भी सुरक्षित थीं।
उन्होंने जोर देकर कहा, “हालांकि, अब केंद्र सरकार को कार्यकाल और सेवा की शर्तें तय करने की शक्ति दे दी गई है, जिससे आयोग की निष्पक्षता और स्वतंत्रता पर सीधा असर पड़ा है।”
कांग्रेस नेता ने दावा किया कि डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम के माध्यम से आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1)(j) में संशोधन करके व्यक्तिगत जानकारी के दायरे को और बढ़ा दिया गया है। इसका मतलब है कि अब जनहित से जुड़ी जानकारी को भी छिपाया जा सकता है, जो आरटीआई के मूल उद्देश्य के ही खिलाफ है।
उन्होंने बताया कि यह बदलाव मतदाता सूची, चुनावी खर्च के हिसाब-किताब और अन्य जनहित से जुड़ी जानकारियों को सार्वजनिक करने से इनकार करने का रास्ता साफ करता है। इसी के चलते सांसद निधि (MPLAD फंड) के दुरुपयोग, मनरेगा में फर्जी लाभार्थियों के पंजीकरण और अपारदर्शी राजनीतिक फंडिंग जैसे घोटालों का पर्दाफाश करने वाली सार्वजनिक निगरानी की प्रक्रिया सीधे तौर पर प्रभावित होती है।
चावड़ा ने यह भी आरोप लगाया कि जब नागरिकों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश यात्राओं के खर्च, कोविड-19 के दौरान ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों की संख्या या पीएम केयर्स फंड के उपयोग के बारे में आरटीआई के माध्यम से जानकारी मांगी, तो कोई जवाब नहीं दिया गया।
उन्होंने केंद्रीय सूचना आयोग की मौजूदा स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा, “केंद्रीय सूचना आयोग इस समय अपने सबसे कमजोर दौर में है। 11 में से केवल दो आयुक्त काम कर रहे हैं, जबकि मुख्य आयुक्त का पद भी खाली है। अकेले केंद्रीय सूचना आयोग में नवंबर 2024 तक लगभग 23,000 मामले लंबित हैं।”
आरटीआई कार्यकर्ताओं की सुरक्षा का मुद्दा उठाते हुए उन्होंने दावा किया कि कई कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गई है और उन्हें धमकियों, उत्पीड़न और हिंसा का सामना करना पड़ रहा है, जिसके कारण अब लोग आरटीआई का उपयोग करने से डरते हैं। उन्होंने व्हिसलब्लोअर्स संरक्षण अधिनियम को लागू न करने पर भी सरकार को घेरा।
उन्होंने कहा, “इस कानून का उद्देश्य भ्रष्टाचार या अनियमितताओं को उजागर करने वाले लोगों को सुरक्षा प्रदान करना था, लेकिन सरकार के उदासीन रवैये के कारण वह सुरक्षा सिर्फ खोखले शब्द बनकर रह गई है।”
चावड़ा ने बताया कि यह विधेयक यूपीए सरकार द्वारा पेश किया गया था और संसद के दोनों सदनों में पारित भी हो गया था, लेकिन 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद इस कानून को लागू नहीं किया गया।
अंत में, अमित चावड़ा ने अपनी पार्टी की मांगों को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस 2019 के संशोधनों को रद्द करके सूचना आयोगों की स्वतंत्रता को बहाल करना चाहती है।
इसके अलावा, आयुक्तों को 5 साल का निश्चित कार्यकाल दिया जाना चाहिए, डिजिटल डेटा संरक्षण अधिनियम की धारा 44(3) की समीक्षा की जानी चाहिए, आयोग में खाली पदों को पारदर्शी और समयबद्ध तरीके से भरा जाना चाहिए, और व्हिसलब्लोअर संरक्षण अधिनियम को तुरंत लागू किया जाना चाहिए।
यह भी पढ़ें-










