केंद्रीय गुजरात में कांग्रेस को भारी नुकसान हुआ, जहां उसने 11 नगरपालिकाओं में अपनी पकड़ खो दी। सबसे बड़ा झटका अंकलाव नगरपालिका में लगा, जो कि पूर्व गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी (GPCC) अध्यक्ष अमित चावड़ा का निर्वाचन क्षेत्र है, जहां पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई। ओध, आनंद में भी कांग्रेस का पूरी तरह सफाया हो गया।
छोटा उदेपुर: कांग्रेस के लिए बड़ा झटका
2022 में प्रमुख कांग्रेस नेताओं के पार्टी छोड़ने से कांग्रेस को छोटा उदेपुर में बड़ा नुकसान हुआ, जहां उसकी सीटें 2018 के आठ से घटकर इस चुनाव में केवल एक रह गईं।
छोटा उदेपुर नगरपालिका की 28 सीटों में से भाजपा ने 8, कांग्रेस ने 1, समाजवादी पार्टी (SP) ने 6, बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने 4, सर्व समाज पार्टी ने 4 और भारत नव निर्माण मंच पार्टी ने 1 सीट जीती। 4 सीटें निर्दलीय उम्मीदवारों के खाते में गईं।
वार्ड 5 में एसपी उम्मीदवार मुफिज़अहमद शेख ने मात्र एक वोट के अंतर से जीत दर्ज की, उन्होंने 869 वोट हासिल किए।
यदि भाजपा छोटा उदेपुर में बोर्ड बनाती है, तो यह 1996 के बाद पहली बार होगा। 2018 में कांग्रेस ने यहां 8 सीटें जीती थीं, जबकि भाजपा को केवल 4 सीटें मिली थीं। कांग्रेस के दिग्गज नेताओं—नरन राठवा, संग्रामसिंह राठवा, 10 बार के पूर्व विधायक मोहनसिंह राठवा और उनके बेटे, वर्तमान भाजपा विधायक राजेंद्रसिंह राठवा—के पार्टी छोड़ने का असर कांग्रेस पर पड़ा।
खेड़ा: करीबी मुकाबले और अनिश्चित गठबंधन
खेड़ा जिले में भाजपा और निर्दलीयों के बीच पांच नगरपालिकाओं में कड़ा मुकाबला देखने को मिला। कभी कांग्रेस का गढ़ रहे खेड़ा और आनंद जिले अब कांग्रेस की कमजोर स्थिति को दर्शा रहे हैं। कांग्रेस को तीन नगरपालिकाओं—मेहमदाबाद, डाकोर और महुडा—में एक भी सीट नहीं मिली, जबकि खेड़ा और चकलासी में केवल एक-एक सीट जीत सकी।
- मेहमदाबाद: भाजपा ने 28 में से 18 सीटें जीतीं, जबकि 10 सीटें निर्दलीयों ने लीं।
- खेड़ा नगरपालिका: भाजपा ने 14 सीटें जीतीं, एसपी ने 3, बीएसपी ने 5, और बाकी सीटें निर्दलीयों ने जीतीं।
- डाकोर नगरपालिका: भाजपा और निर्दलीयों ने 14-14 सीटें जीतीं, जिससे स्थिति अनिश्चित बनी हुई है। भाजपा नेता इस गठबंधन में निर्दलीयों का समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं।
आनंद: कांग्रेस का सफाया
आनंद में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा, जहां भाजपा ने ओध नगरपालिका की सभी 24 सीटों पर कब्जा कर लिया और अंकलाव में 10 सीटें जीत लीं। इन दोनों नगरपालिकाओं में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली। बोरियावी नगरपालिका में भाजपा ने 24 में से 15 सीटें जीतीं, कांग्रेस ने 6 और निर्दलीयों ने 3 सीटें हासिल कीं।
महिसागर: भाजपा की मजबूत वापसी
महिसागर जिले की लूनावाडा नगरपालिका में भाजपा ने 9 साल बाद बहुमत हासिल किया, जहां उसने 28 में से 16 सीटें जीतीं। कांग्रेस को 11 और निर्दलीयों को 1 सीट मिली।
- बालासिनोर नगरपालिका: भाजपा ने 16 सीटें जीतीं, कांग्रेस को 9, एनसीपी को 2 और बीएसपी को 1 सीट मिली।
- संतरामपुर नगरपालिका: भाजपा ने 24 में से 15 सीटें जीतीं, कांग्रेस को 7 और निर्दलीयों को 2 सीटें मिलीं।
- तालुका पंचायत: भाजपा ने कानोद और जोधपुर तालुका पंचायत की सीटें भी जीतीं।
पंचमहल: भाजपा का वर्चस्व
- हलोल नगरपालिका: भाजपा ने 36 में से 34 सीटें जीतीं, जिनमें से 19 सीटों पर वह निर्विरोध विजयी रही। कांग्रेस को कोई सीट नहीं मिली।
- कालोल नगरपालिका: भाजपा ने 28 में से 18 सीटें जीतीं, जबकि बाकी निर्दलीयों ने लीं।
दाहोद: भाजपा का बढ़ता दबदबा
- देवगढ़ बारिया नगरपालिका: भाजपा ने 24 में से 13 सीटें जीतीं, निर्दलीयों ने 8 और कांग्रेस ने केवल 3 सीटें जीतीं।
- झालोद नगरपालिका: भाजपा ने 28 में से 17 सीटें जीतीं, जबकि 11 निर्दलीयों के खाते में गईं। कांग्रेस को कोई सीट नहीं मिली।
वडोदरा: भाजपा की प्रतिष्ठा बचाने की जंग
वडोदरा जिले की करजन नगरपालिका में भाजपा ने 28 में से 19 सीटें जीतीं, हालांकि आम आदमी पार्टी (AAP) ने पहली बार चुनाव लड़ते हुए 8 सीटें जीतकर प्रभावी उपस्थिति दर्ज की। कांग्रेस का यहां भी सफाया हो गया। वार्ड 7 में भाजपा को बड़ी चुनौती मिली, जहां उसके सभी चार बागी उम्मीदवार—मोहम्मद सिंधी, विनंता वसावा, प्रियंका माछी और भरत अतालिया—ने जीत दर्ज की।
नर्मदा: आदिवासी क्षेत्र में AAP की पहली जीत
नर्मदा तालुका पंचायत की दो सीटों में से भाजपा और आप ने एक-एक सीट जीतीं। आप के राहुल वसावा ने डेडियापाडा तालुका के झांक सीट से जीत दर्ज की, जिससे आदिवासी क्षेत्र में स्थानीय निकाय चुनाव में पार्टी की पहली जीत हुई। वहीं, भाजपा की सरोज अश्विन वसावा ने सगबारा तालुका के भादोद सीट पर जीत हासिल की।
निष्कर्ष
केंद्रीय गुजरात की नगरपालिका चुनावों में भाजपा ने अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखी, जबकि कांग्रेस की स्थिति लगातार कमजोर हो रही है। समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी की उपस्थिति ने क्षेत्रीय राजनीति में नए समीकरण बना दिए हैं, जो आगामी चुनावों को प्रभावित कर सकते हैं।
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