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गुजरात में 5 साल में साइबर क्राइम के मामले 235% बढ़े

| Updated: August 31, 2022 10:00 am

देश में जहां ‘डिजिटल इंडिया’ को बढ़ावा देने से ऑनलाइन लेनदेन में भारी उछाल आया है, वहीं साइबर अपराध के अपराध भी तेजी से बढ़ रहे हैं। पिछले पांच वर्षों में गुजरात में साइबर अपराध के मामलों में 235% की वृद्धि हुई है। यह जानकारी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने दी है। उसके आंकड़ों के हिसाब से कोविड के दौरान तो ऐसे मामले लगभग दोगुने तक हो गए।

2017 में हर दिन साइबर अपराध का एक मामला दर्ज होता था।  2021 में ऐसे मामले बढ़कर चार हो गए। इसी तरह 2017 में जहां 458 मामले दर्ज किए गए, वहीं  2021 में 1536 मामले दर्ज किए गए। यानी 235% की वृद्धि हो गई।

2019 में राज्य में साइबर अपराध के 784 अपराध दर्ज किए गए, जबकि महामारी वाले वर्ष 2020 में यह आंकड़ा 1283 था। 2021 में 58 फीसदी अपराधों में चार्जशीट दाखिल की गई थी।

साइबर विशेषज्ञों ने कहा कि कई लोगों ने अचानक से कोविड19 के कारण हुए लॉकडाउन के दौरान ऐप का उपयोग करना शुरू कर दिया, लेकिन अधिकांश वास्तविक और फर्जी ऐप के बीच अंतर नहीं समझ पाए।

साइबर क्राइम सेल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि कोविड के दौरान लोग बड़े पैमाने पर अपने घरों में ही सीमित थे। ऐसे में सब्जियां और किराने का सामान खरीदने के लिए ई-वॉलेट और डिजिटल भुगतान ऐप पर बहुत अधिक निर्भर थे। हालांकि, तकनीक के बारे में जागरूकता की कमी इसे दोधारी तलवार बनाती है।

सामान खरीदने के तरीके में आए इस बदलाव का लाभ उठाते हुए साइबर अपराधियों ने लोगों को ठगने के लिए बैंकों और ऑनलाइन शॉपिंग साइटों के नकली ग्राहक सहायता नंबर बना लिए। जालसाजों ने कस्टमर केयर एक्जीक्यूटिव बनकर लोगों को अपने ओटीपी (वन-टाइम पासवर्ड) साझा करने के लिए धोखा दिया। इससे उन्हें अपने बैंक खातों तक पहुंच प्राप्त होती गई। साइबर क्राइम के एक अधिकारी ने कहा कि ऐसे अपराधों में पता लगाने की दर 10% से कम थी।

साइबर अपराधों से बचने के तरीके के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए पुलिस ऑनलाइन अभियान चला रही है। वडोदरा के एक साइबर विशेषज्ञ मयूर भुसावलकर ने कहा, “कई लोगों ने संदिग्ध लिंक पर क्लिक किया या स्कैमर्स द्वारा भेजे गए क्यूआर कोड को स्कैन किया। बहुत से लोगों ने इस तरह की धोखाधड़ी में अपना पैसा खो दिया।” इतना ही नहीं, जागरूकता बढ़ने के साथ-साथ साइबर अपराधी भी लोगों को ठगने के लिए नए-नए तरीके ईजाद करते रहे हैं।

इनमें से कुछ में किशोरों को उनके फोन लॉक करने वाले मैलवेयर से संक्रमित पोर्न ऐप इंस्टॉल करने और उन्हें अनलॉक करने के लिए पैसे की मांग करना शामिल है।

भुसावलकर के मुताबिक, कुछ धोखेबाज केवाईसी प्रक्रिया को पूरा करने के बहाने पीड़ितों को अपना ऑनलाइन पासवर्ड साझा करने के लिए बरगलाते हैं, जबकि अन्य जानकारी चुराने के लिए फर्जी वेबसाइट बनाकर फिशिंग का सहारा लेते हैं।

गुजरात में 5 साल में साइबर क्राइम के मामले 235% बढ़े

देश में जहां ‘डिजिटल इंडिया’ को बढ़ावा देने से ऑनलाइन लेनदेन में भारी उछाल आया है, वहीं साइबर अपराध के अपराध भी तेजी से बढ़ रहे हैं। पिछले पांच वर्षों में गुजरात में साइबर अपराध के मामलों में 235% की वृद्धि हुई है। यह जानकारी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने दी है। उसके आंकड़ों के हिसाब से कोविड के दौरान तो ऐसे मामले लगभग दोगुने तक हो गए।

2017 में हर दिन साइबर अपराध का एक मामला दर्ज होता था।  2021 में ऐसे मामले बढ़कर चार हो गए। इसी तरह 2017 में जहां 458 मामले दर्ज किए गए, वहीं  2021 में 1536 मामले दर्ज किए गए। यानी 235% की वृद्धि हो गई।

2019 में राज्य में साइबर अपराध के 784 अपराध दर्ज किए गए, जबकि महामारी वाले वर्ष 2020 में यह आंकड़ा 1283 था। 2021 में 58 फीसदी अपराधों में चार्जशीट दाखिल की गई थी।

साइबर विशेषज्ञों ने कहा कि कई लोगों ने अचानक से कोविड19 के कारण हुए लॉकडाउन के दौरान ऐप का उपयोग करना शुरू कर दिया, लेकिन अधिकांश वास्तविक और फर्जी ऐप के बीच अंतर नहीं समझ पाए।

साइबर क्राइम सेल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि कोविड के दौरान लोग बड़े पैमाने पर अपने घरों में ही सीमित थे। ऐसे में सब्जियां और किराने का सामान खरीदने के लिए ई-वॉलेट और डिजिटल भुगतान ऐप पर बहुत अधिक निर्भर थे। हालांकि, तकनीक के बारे में जागरूकता की कमी इसे दोधारी तलवार बनाती है।

सामान खरीदने के तरीके में आए इस बदलाव का लाभ उठाते हुए साइबर अपराधियों ने लोगों को ठगने के लिए बैंकों और ऑनलाइन शॉपिंग साइटों के नकली ग्राहक सहायता नंबर बना लिए। जालसाजों ने कस्टमर केयर एक्जीक्यूटिव बनकर लोगों को अपने ओटीपी (वन-टाइम पासवर्ड) साझा करने के लिए धोखा दिया। इससे उन्हें अपने बैंक खातों तक पहुंच प्राप्त होती गई। साइबर क्राइम के एक अधिकारी ने कहा कि ऐसे अपराधों में पता लगाने की दर 10% से कम थी।

साइबर अपराधों से बचने के तरीके के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए पुलिस ऑनलाइन अभियान चला रही है। वडोदरा के एक साइबर विशेषज्ञ मयूर भुसावलकर ने कहा, “कई लोगों ने संदिग्ध लिंक पर क्लिक किया या स्कैमर्स द्वारा भेजे गए क्यूआर कोड को स्कैन किया। बहुत से लोगों ने इस तरह की धोखाधड़ी में अपना पैसा खो दिया।” इतना ही नहीं, जागरूकता बढ़ने के साथ-साथ साइबर अपराधी भी लोगों को ठगने के लिए नए-नए तरीके ईजाद करते रहे हैं।

इनमें से कुछ में किशोरों को उनके फोन लॉक करने वाले मैलवेयर से संक्रमित पोर्न ऐप इंस्टॉल करने और उन्हें अनलॉक करने के लिए पैसे की मांग करना शामिल है।

भुसावलकर के मुताबिक, कुछ धोखेबाज केवाईसी प्रक्रिया को पूरा करने के बहाने पीड़ितों को अपना ऑनलाइन पासवर्ड साझा करने के लिए बरगलाते हैं, जबकि अन्य जानकारी चुराने के लिए फर्जी वेबसाइट बनाकर फिशिंग का सहारा लेते हैं।

और पढ़ें: सोशल मीडिया पर भड़काऊ बयान देने पर साइबर क्राइम ब्रांच ने किया मामला दर्ज

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