विशेषज्ञों ने कहा- सिखाएंगे नहीं, तो जंगल और वन्यजीवों के लिए बात नहीं करेगी अगली पीढ़ी

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विशेषज्ञों ने कहा- सिखाएंगे नहीं, तो जंगल और वन्यजीवों के लिए बात नहीं करेगी अगली पीढ़ी

| Updated: December 25, 2022 17:01

वन्यजीव (wildlife) विशेषज्ञों और क्षेत्र में काम करने वाले गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) ने सरकार और नागरिक समाज (civil society) समूहों की मदद से प्रकृति शिक्षा (nature education) संबंधी गतिविधियों को बढ़ाने की अपील की है। ताकि इस दिशा में लोगों को संवेदनशील बनाने के साथ-साथ नई पीढ़ी में प्रकृतिवादियों (naturalists) को तैयार किया जा सके।

जूनागढ़ में एनजीओ वसुंधरा नेचर क्लब चलाने वाले एक युवा प्रकृतिवादी प्रवन वाघशिया ने कहा, “आज, हम सभी चिंतित हैं। वन्य जीवन और जंगलों को बचाने के बारे में बात कर रहे हैं। अगर इस तरह की चिंता और लगाव व्यक्त करने वाले लोग न हों, तो  भविष्य में उनका क्या होगा? इसलिए हमें अगली पीढ़ी को इसके लिए तैयार करने की आवश्यकता है।  ऐसा करने के लिए प्रकृति शिक्षा (nature education) को और अधिक गंभीरता से लेना होगा।”

वाघशिया वाइल्डलाइफ गार्जियंस ऑफ गुजरात (WLGG)के बैनर तले हुए एक कार्यक्रम में वाइल्डलाइफ गार्जियन अवार्ड प्राप्त करने के बाद बोल रहे थे। यह एनजीओ जूनागढ़ जिले के भेसन तालुका में गिरनार वन्यजीव अभयारण्य (GWLS) के किनारे मालिदा गांव में वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन ट्रस्ट(WLCT)राजकोट के तहत काम कर रहा है और एशियाटिक लायन प्रोटेक्शन सोसाइटी (ALPS) से जुड़ा है।

गिरनारनी गोडमा गिरनी वातो (गिरनार पर्वत की तलहटी में गिर जंगल के बारे में चर्चा) नामक इस कार्यक्रम का आयोजन गैर सरकारी संगठनों और वन्यजीव संरक्षण और प्रकृति शिक्षा के लिए काम करने वाले व्यक्तियों को सम्मानित करने के लिए गया था। इस कार्यक्रम में गिर के शेरों के लिए दुनिया के एकमात्र प्राकृतिक (natural habitat) आवास गिर वन से संबंधित मुद्दों पर भी चर्चा की गई।

वाघशिया ने शिकायत की कि प्रकृति शिक्षा शिविरों को तीन दिन का करने के बजाय एक दिवसीय कार्यक्रम के लिए छोटा कर दिया गया है। इससे शिविर का मकसद पूरा नहीं हो पाता। शेरों और तेंदुओं की तरह पक्षी संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इससे

स्काई फॉरेस्ट यूथ क्लब (SFYC) नामक एनजीओ के माध्यम से तीन दशकों से अधिक समय से प्रकृति शिक्षा का शिविर लगाने वाले रेवतुभा रायजादा ने सहमति जताई। रायजादा ने कहा, “प्रकृति शिक्षा शिविरों को पिकनिक तक सीमित कर दिया गया है। इन दिनों कई पैसे वाले प्रकृति शिक्षा शिविरों के दौरान बच्चों को व्यापक तस्वीर (wider picture) दिखाने की कोशिश करने के बजाय पत्तियों, छालों और पेड़ों की जड़ों के इस्तेमाल के बारे में बात करते हैं।”

बता दें कि गिर में प्रकृति शिक्षा शिविर 1979 में शुरू हुए थे और सरकार ने बाद में राज्य के अन्य वन क्षेत्रों में इसका विस्तार किया था। इस तरह के स्कूल और एनजीओ अपनी ओर से लगाते रहते हैं।

अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक (APCCF) और गुजरात पारिस्थितिकी आयोग (Ecology Commission) के सदस्य सचिव महेश सिंह ने कहा कि राज्य सरकार हर साल 1,000 प्रकृति शिक्षा शिविर लगाती है। यह संख्या अगले साल से दोगुनी हो जाएगी। लेकिन यह भी कहा कि इसे और अधिक करने की जरूरत है।

अपनी सेवा के दौरान प्रकृति शिक्षा गतिविधियों से जुड़े रिटायर आईएफएस अधिकारी डीएस नरवे और उदय वोरा ने भी अपने विचार साझा किए। राजकोट के एक हाई स्कूल से रिटायर हुए शिक्षक विनोद पंड्या ने कहा, “आज की पारंपरिक शिक्षा इतनी अधिक परीक्षा-केंद्रित हो गई है कि अधिकतर छात्र केवल उसी पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जो जेईई और एनईईटी जैसी परीक्षाओं में उपयोगी हो सकता है। इसलिए हमें जीव विज्ञान के शिक्षकों को शामिल करने और इन परीक्षाओं के लिए वन्यजीव और प्रकृति को प्रासंगिक बनाने की कोशिश करने की आवश्यकता है।”

इस मौके पर डब्ल्यूएलजीजी (WLGG) ने वसुंधरा नेचर क्लब, राजहंस नेचर क्लब ट्रस्ट, भावनगर, स्काई फॉरेस्ट यूथ क्लब, केशोद (जूनागढ़), कैनाइन ग्रुप, वड़ोदरा, सूरत के नेचर क्लब सूरत और वाइल्ड सौराष्ट्र, राजकोट को सम्मानित किया।

वन्यजीव संरक्षण और प्रकृति शिक्षा में योगदान के लिए WLGG के अध्यक्ष भूषण पांड्या, WCT के अध्यक्ष किशोर कोटेचा और ALPS के अध्यक्ष कमलेश अधिया ने प्रकृतिवादी विनोद पंड्या, शीतल सुरानी, विक्रम गांधी, भावेश त्रिवेदी, अमी श्रीमाली, आकाश भट्ट, कुशल वाला, धैवत हाथी और चिरागबाला गोसाई को भी सम्मानिति किया।

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