भाजपा में निर्णय लेने वाले शीर्ष बोर्ड से गडकरी और शिवराज बाहर, संसदीय बोर्ड में येदियुरप्पा और सोनोवाल ने ली जगह

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भाजपा में निर्णय लेने वाले शीर्ष बोर्ड से गडकरी और शिवराज बाहर, संसदीय बोर्ड में येदियुरप्पा और सोनोवाल ने ली जगह

| Updated: August 17, 2022 21:11

नई दिल्लीः आखिरकार भाजपा ने अपने केंद्रीय संसदीय बोर्ड के साथ-साथ केंद्रीय चुनाव समिति का भी पुनर्गठन कर दिया। इसमें कुछ चुनावी राज्यों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जमीनी तैयारी शुरू कर देने के साथ-साथ कुछ अन्य राज्यों में शक्ति संतुलन का भी संकेत मिलता है।

11 सदस्यीय संसदीय बोर्ड राजनीतिक और संगठनात्मक मुद्दों पर निर्णय लेने वाला भाजपा में सर्वोच्च पैनल है। इसे पार्टी की सुपर एलीट कमेटी कहा जाता है। पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ संसदीय बोर्ड से बाहर कर दिया गया है। अगर आरएसएस उनके पक्ष में आवाज उठाना जारी नहीं रखता है, तो गडकरी को हटाया जाना चुनावी राजनीति में उनके भविष्य पर सवालिया निशान लगाता है।

चौहान को 2014 में शामिल किया गया था। इस अटकल को खारिज करते हुए कि मोदी युग में उनके लिए संभावनाएं कम हो गई थीं। उनका बाहर होना एक और कारण से हो सकता है: पैनल में एक भी सीएम नहीं है। हालांकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नाम एक मजबूत उम्मीदवार के रूप में चर्चा में था।

दूसरी ओर, कर्नाटक के पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा को आश्चर्यजनक रूप से शामिल कर लिया गया है। पिछले साल बसवराज बोम्मई को उनके स्थान पर सीएम बना दिए जाने के बाद से उन्हें बट्टे खाते में डाल दिया गया था। येदियुरप्पा का समावेश इस धारणा को पुष्ट करता है कि “मार्ग दर्शक मंडल” अभी भी भाजपा के वरिष्ठों के लिए निवास स्थान नहीं है, अगर उनके पास एक मजबूत सामाजिक आधार के साथ-साथ अपने राज्यों में अनुयायी हैं।

कर्नाटक में मई 2023 में चुनाव होने हैं। भाजपा के लिए इसका महत्व इस तथ्य से है कि यह अभी भी एकमात्र दक्षिणी राज्य है, जो उसके कब्जे में है। हाल ही में बोम्मई के शासन में कर्नाटक गुजरात और यूपी के बाद हिंदुत्व से संबंधित मुद्दों की लोकप्रिय प्रभावकारिता का परीक्षण करने के लिए एक और प्रयोगशाला बन गया है। हालांकि राज्य में  धार्मिक पहचान की तुलना में जाति भी प्रमुख है। येदियुरप्पा ने लिंगायत समुदाय के सबसे मजबूत नेता के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखी है, जो भाजपा की रीढ़ है। हालांकि बोम्मई भी लिंगायत जाति से ही हैं। इसी कारण उन्हें कुर्सी भी मिली। दूसरे, भाजपा का अपना आकलन यह था कि येदियुरप्पा के पास बड़े पैमाने पर अनुयायी नहीं थे। हालांकि, पार्टी उन निर्वाचन क्षेत्रों में उपचुनाव हार गई जहां बोम्मई ने जोरदार प्रचार किया था।

हाल ही में, भाजपा के युवा विंग के कार्यकर्ता प्रवीण नेट्टारू की हत्या के कारण कर्नाटक जब उथल-पुथल की स्थिति में था, तब दक्षिण कन्नड़ में बोम्मई पर “हिंदुत्व” के लिए “पर्याप्त नहीं करने” का आरोप लगाया गया था। जबकि यह क्षेत्र भाजपा का गढ़ माना जाता है। नेट्टारू के गांव बेल्लारे का दौरा करने वाले भाजपा नेताओं पर संघ परिवार के नाराज कार्यकर्ताओं ने हमला कर दिया। इस घटना से पार्टी को झटका लगा। गृह मंत्री अमित शाह ने बेंगलुरु की यात्रा की और विशेष रूप से नाश्ते पर येदियुरप्पा से मुलाकात की। बैठक ने अटकलों को हवा दी कि पूर्व सीएम का पुनर्वास होने ही वाला है। संसदीय बोर्ड के सदस्य के रूप में उम्मीदवारों के चयन और अभियान के विषयों जैसे पहलुओं पर उनके इनपुट दूसरों के लिए मायने रखेंगे। येदियुरप्पा का शामिल होना कर्नाटक भाजपा के प्रहलाद जोशी, जगदीश शेट्टार और केएस ईश्वरप्पा जैसे अन्य स्वयंभू दिग्गजों के लिए भी महत्वपूर्ण है।

अन्य दिलचस्प चयन असम के पूर्व मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल हैं। मृदुभाषी सोनोवाल, जो अपने स्थान पर हिमंत बिस्वा सरमा को बैठाए जाने के बाद से केंद्रीय मंत्री हैं, को कथित तौर पर राज्य में एक “संतुलन” कायम करने के लिए लाया गया है, जो उत्तर-पूर्व में भाजपा का प्रवेश द्वार है। सरमा वह धुरी हैं, जिसके चारों ओर पार्टी की उत्तर-पूर्वी राजनीति टिकी हुई है। क्योंकि पूरे क्षेत्र में उनका नेटवर्क गजब की है। लेकिन एक भावना यह भी चल रही थी कि उन्हें एक “काउंटरवेट” की जरूरत है। दरअसल सोनोवाल को शामिल करना मोदी की उस राजनीतिक शैली का उदाहरण है, जिसमें किसी व्यक्ति विशेष में अधिक निवेश नहीं किया जाता है।

चूंकि तेलंगाना को दक्षिण में अगला सूर्योदय वाला राज्य माना जाता है, इसलिए पूर्व राज्य भाजपा अध्यक्ष के लक्ष्मण, जो अब राष्ट्रीय ओबीसी मोर्चा के प्रमुख हैं, को भी पैनल में लिया गया है। लक्ष्मण मुन्नूरु कापू पिछड़ी जाति (बीजेपी तेलंगाना की ओबीसी जातियों को साध रही है) से ताल्लुक रखते हैं। वह एबीवीपी के पूर्व कार्यकर्ता हैं।

पिछड़ी जातियों और दलितों पर जोर इस बात से स्पष्ट होता है कि अन्य नए सदस्य वस्तुतः भुला दिए गए सुधा यादव और सत्यनारायण जटिया हैं। हरियाणा से पूर्व लोकसभा सांसद सुधा ने भी एक बार लक्ष्मण की तरह ओबीसी मोर्चा का नेतृत्व किया था। वह हरियाणा की जातिगत राजनीति की एक और जटिल कड़ी होंगी।

जटिया के संदर्भ ने उन्हें “सेवानिवृत्त” के रूप में लिखा। दरअसल, मध्य प्रदेश के उज्जैन से सात बार के लोकसभा सांसद अनिवार्य रूप से कम महत्वपूर्ण हो गए हैं। वह एक बार अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। वह आरएसएस की श्रमिक शाखा- भारतीय मजदूर संघ के करीबी हैं। सुधा और जटिया का नामांकन उन लोगों के लिए मोदी की प्रवृत्ति को दर्शाता है, जो लो प्रोफाइल रखते हैं और अपनी महत्वाकांक्षाओं को प्रदर्शित नहीं करते हैं।

16 सदस्यीय केंद्रीय चुनाव समिति में संसदीय बोर्ड के सभी सदस्यों के अलावा दो लोग विशेष तौर पर शामिल किए गए हैं: महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस और राजस्थान के पुराने नेता ओम माथुर। वहां नवंबर 2023 में चुनाव होने हैं। इनके साथ अन्य सदस्यों में हैं- केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव, राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बीएल संतोष- जो संसदीय बोर्ड में भी हैं, और तमिलनाडु की वनथी श्रीनिवासन, जो महिला विंग की कमान संभालती हैं।

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