मुझे नहीं आदिवासी संस्कृति को सम्मानित किया है - पद्मश्री परेश राठवा

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मुझे नहीं आदिवासी संस्कृति को सम्मानित किया है – पद्मश्री परेश राठवा

| Updated: January 26, 2023 17:49

25 जनवरी की देर शाम परेश राठवा Paresh Rathwa और छोटा उदयपुर Chhota Udaipur के लिए खास हो गयी। गणतंत्र दिवस की Republic day पूर्व संध्या पर पद्म पुरस्कारों की घोषणा की गई जिसमे छोटाउदेपुर जिले के क्वांट के परेश राठवा को पद्म श्री पुरस्कार देने की भी घोषणा की गई है. परेश को भरोसा भी नहीं था कि उन्हें इतना बडा नागरिक सम्मान मिलेगा।

परेश राठवा (53) गुजरात राज्य के छोटा उदेपुर जिले के एक आदिवासी कलाकार हैं। वह और उनका परिवार सदियों पुरानी पिथौरा पेंटिंग Pithora Painting की कला के काम में शामिल रहा है।

वाइब्स आफ इंडिया से बात करते हुए परेश सरकार का आभार जताते हैं कि उनकी वर्षों की मेहनत को सम्मान दिया गया है।

परेश को आदिवासी लोक कला पिथौरा की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के लिए पद्म श्री से सम्मानित किया गया है।

पिथौरा कला 1200 साल पुरानी कला है। आदिवासी लोक कला पिथौरा की सांस्कृतिक विरासत को संजोने, गुजरात और छोटाउदेपुर के आदिवासी और राठवा समुदाय के लिए सांस्कृतिक और ऐतिहासिक तौर से खासी अहम है।

राठवा मुताबिक “पिथौरा पेंटिंग प्राचीन गुफाओं में पाई जाती है और माना जाता है कि यह 1200 साल से अधिक पुरानी है। यह जनजाति के देवता- पिथौरा बाबा के लिए किया जाता है। यह देवताओं को उनके आशीर्वाद के लिए धन्यवाद देने के एक तरीके के रूप में पहले शुभ अवसर के दौरान मिट्टी की दीवारों पर किया जाता था,” .

पद्मश्री के पहले आदिवासी उद्यमिता विकास कार्यक्रम (टीईडीपी) के लाभार्थी परेश राठवा,सर्वश्रेष्ठ हस्तशिल्प श्रेणी में जनजातीय मामलों के मंत्रालय (एमओटीए) और राष्ट्रीय निकाय एसोचैम की संयुक्त पहल को गुजरात में प्रतिष्ठित ‘गुजरात यात्रा और पर्यटन उत्कृष्टता पुरस्कार 2021’ प्राप्त किया है।

छोटा उदेपुर जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है। यहां 80 फीसदी से ज्यादा आदिवासी रहते हैं। इनमें ज्यादातर राठवा समुदाय के लोग रहते हैं। ये आदिवासी प्रकृति पूजक हैं और प्रकृति और पूर्वजों की पूजा करते हैं। आदिवासी समाज सूर्य देवता, चंद्र देव, जल देवता, धरती माता, अग्नि देवता, अन्न देवता, पवन देवता, वृक्ष देवता जो साकार हैं और जिनके माध्यम से जीवन का निर्माण संभव है, जिनके बिना प्राकृतिक और प्रकृति जीवन संभव नहीं है उन्ही तत्वों की पूजा करता है।

आदिवासी समाज मूर्तिपूजा में विश्वास नहीं करता

आदिवासी समाज मूर्तिपूजा में विश्वास नहीं करता बल्कि सागौन या चटाई की लकड़ी का खंभा बनाकर पूर्वजों के नाम की पूजा करता है। पिथौरा कला 1200 वर्ष पुरानी कला है। पिथौरा में एक पेंटिंग है। लेकिन यह आदिवासी राठवा समुदाय के लिए एक लिपि है। राठवा जनजाति द्वारा कोई मान्यता लेकर पिथौरा के घर की दीवार पर पिथौरा बना देते हैं ( लिख देते हैं )

परेश राठवा ने इस कला को जीवित रखते हुए छोटाउदेपुर जिले को गौरवान्वित किया है और 1200 वर्ष पुरानी तितोड़ा लिपि को देश-विदेश में जीवित रखने के लिए अनेक प्रयास किए हैं। शिक्षण संस्थानों में भी उन्होंने लगातार मार्गदर्शन किया कि कैसे पिथौरा लिपि प्राचीन काल में खींची जाती थी और टिटोड़ा लिपि की गुफाओं में समझाई जाती थी। भारत सरकार द्वारा परेश राठवा को पद्म पुरस्कार की मान्यता से पूरे आदिवासी क्षेत्र के साथ-साथ राठवा समाज का गौरव बढ़ा है।

गुजरात के राज्यपाल ने पेंटिंग की जांच करने के लिए हमारे गांव का दौरा किया

राठवा ने आगे कहा “मुझे वर्ष 2018 में भी राज्य पुरस्कार मिला है। वर्ष 2019 में, गुजरात के राज्यपाल ने पेंटिंग की जांच करने के लिए हमारे गांव का दौरा किया, उन्होंने इस अवसर पर मुझे सम्मानित भी किया।”

राठवा बताते हैं कि उन्हें पेंट करने की प्रेरणा अपने दादा से मिली, जो शादियों और शुभ अवसरों के दौरान पारंपरिक पेंटिंग से दीवारों को पेंट करते थे। “मेरा बेटा, मौलिक जो 27 साल का है, वह भी आज पुरानी परंपरा के संरक्षण में मेरे साथ जुड़ गया है। दीवारों के अलावा हम कैनवास और हाथ से बने कागज पर भी पेंटिंग करते हैं।

इस महान कला को बचाने के लिए राठवा ने खासा संघर्ष किया है। इसके लिए उन्होंने इंटरनेट का सहारा लिया पारंपरिक पेंटिंग को सोशल मीडिया पर प्रचारित करना शुरू कर दिया , शैक्षणिक संस्थानों को भी इस मुहीम से जोड़ने की कोशिश की।

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