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जयराज सिंह ने पत्र में हजारों कांग्रेस नेताओं की पीड़ा समेट ,भारी मन से कांग्रेस को किया अलविदा

| Updated: February 17, 2022 3:57 pm

जयराज सिंह परमार ने पार्टी छोड़ते वक्त एक भावुक पत्र लिखा। जयराज सिंह का यह पत्र महज उनका नहीं बल्कि कांग्रेस के हजारों दूसरी पक्ति के उन नेताओं की पीड़ा है जो 90 के दशक में अपनी सियासी पारी शुरू की थी और लगातार संघर्ष के रास्ते पर टिके रहे।

जयराज सिंह परमार ने कांग्रेस पार्टी छोड़ने का फैसला किया है,तमाम दूसरे नेताओं की तरह उन्होंने भी इसकी घोषणा सोशल मीडिया के माध्यम से की।

कांग्रेस का पक्ष बतौर प्रवक्ता मजबूती से रखने वाले जयराज सिंह परमार ने पार्टी छोड़ते वक्त एक भावुक पत्र लिखा। जयराज सिंह का यह पत्र महज उनका नहीं बल्कि कांग्रेस के हजारों दूसरी पक्ति के उन नेताओं की पीड़ा है जो 90 के दशक में अपनी सियासी पारी शुरू की थी , और लगातार संघर्ष के रास्ते पर टिके रहे। उन्ही की बदौलत कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल का दर्जा बरक़रार रख पायी है , लेकिन अब उनका भी धैर्य छूटता जा रहा है।

लेकिन थका और हार को अपनी नियति मान चुका नेतृत्व सिंडीकेट बनाकर अपनी जगह पर काबिज है , केंद्रीय नेतृत्व का भी हाल यही है। जयराज सिंह परमार पार्टी के प्रदर्शन और उसके नेताओं की निष्क्रियता से नाराज हैं।

चार विधानसभा और लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के वादे के बाद टिकट नहीं देने पर कांग्रेस प्रवक्ता जयराज सिंह परमार गुरुवार को पार्टी से इस्तीफा दे दिया।

भाजपा में होंगे शामिल

बीजेपी सूत्रों का कहना है कि वह दो-तीन दिनों में बीजेपी में शामिल हो जाएंगे. क्षत्रिय नेता जयराज सिंह परमार, जो उत्तरी गुजरात में क्षत्रिय समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं, ने टिकट पाने की बार-बार कोशिशों के बावजूद आखिरकार भारी मन से कांग्रेस छोड़ने का फैसला किया है।

उन्होंने अपने साथियों मेहसाणा जिला कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अध्यक्ष राजेंद्रसिंह दरबार, बेचाराजी तालुका कांग्रेस अध्यक्ष वघुभा जडेजा, बेचाराजी पूर्व अध्यक्ष रानूभा जाला, बेचाराजी तालुका पंचायत अध्यक्ष जशु प्रजापति सहित उत्तर गुजरात के लगभग 150 नेताओं को भाजपा के प्रदेश कार्यालय कमलम में भाजपा में बुधवार को ही शामिल करा दिया था। इन घटनाक्रमों के बीच, जयराज सिंह ने आज सोशल मीडिया पर एक पत्र भी पोस्ट किया।

इसके अलावा, जयराज सिंह ने आज सुबह अपने ट्विटर अकाउंट से कांग्रेस पार्टी में उनके मुख्य प्रवक्ता सहित सभी पद को हटा दिया। केवल मेहसाणा जिले के पूर्व अध्यक्ष और विपक्ष के नेता को बरक़रार रखा।

इन घटनाक्रमों के बीच, जयराज सिंह ने आज सोशल मीडिया पर एक पत्र भी पोस्ट किया। जो वेदना और पीड़ा से भरा हुआ है , साथ ही कांग्रेस से उनके लगाव को भी दिखाता है।

यह पत्र कांग्रेस के दूसरी पीढ़ी के हजारो नेता कार्यकर्ता की पीड़ा को उजागर करता है , साथ ही गुजरात कांग्रेस के जमीनी हालात को भी , इसलिए वाइब्स ऑफ इंडिया पत्र को हुबहु प्रकाशित कर रहा है।

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कुछ यु है जयराज सिंह परमार का पत्र

‘मेरे साथी कार्यकर्ताओं और शुभचिंतकों, आप सभी गवाह हैं कि मैंने हमेशा कांग्रेस पार्टी को अपना पहला परिवार माना है। मैंने दिल और दिमाग दोनों से 24×7 पार्टी के लिए लड़ाई भी लडी है और जिया भी है। पार्टी ने क्या दिया इसकी चिंता किये बिना मैंने पार्टी को अपना सब कुछ दे दिया। जयराज सिंह को ढाल या तलवार के रूप में इस्तेमाल करने का निर्णय पार्टी के जनरलों पर छोड़ दिया गया था और मैंने एक वफादार सैनिक के रूप में अपना कर्तव्य पूरा किया। जब से मैंने एक विद्यार्थी जीवन से राजनीति में प्रवेश किया है, मैं पूरी ताकत और क्षमता के साथ वैचारिक स्तर पर हवा के विपरीत दिशा में पतंग उड़ाने जैसा कठिन काम पूरी शक्ति और क्षमता से कर रहा हूं।

वैचारिक धरातल पर हाथ में हथियार लेकर लड़ने और जमीन पर गिरने से मुझे कभी हिचकिचाहट नहीं हुई। मैं कांग्रेस पार्टी की ढाल बनकर सड़कों से लेकर मीडिया और सोशल मीडिया तक दिन-रात लड़ रहा हूं। पार्टी चाहे सही हो या गलत, उसने बचाव में पीछे मुड़कर नहीं देखा। विरोधियों के ज़ख्म सामने से सीने पर और अपनों के ज़ख्मों की पीठ पर झेलता रहा , लेकिन एक शब्द भी नहीं कहा। अपने जीवन के 37 वर्ष कांग्रेस पार्टी के लिए बिता दिये ।

जवानी की मस्ती, पत्नी-बेटे समेत परिवार के हक़ का समय और कारोबारी मकसद से पार्टी को सबसे ऊपर रखा। जीवन का आनंद लेने के विकल्पों में से एक के रूप में पार्टी को जीवित रखने के लिए खुद को बलिदान करना उचित समझा , लेकिन दोस्तों, अब आपका भाई थक गया है, लड़ाई से नहीं, बल्कि उन नेताओं की निष्क्रियता से जो लड़ना नहीं चाहते हैं।

आपके और मेरे बीच खिला रहे अच्छे कार्यकर्ताओं की वफादारी देखकर थक गया हुँ । मैं हारे हुए नेताओं की हार को गले लगाने और पार्टी की जीत के लिए लड़ रहे कार्यकर्ताओं को अलग-थलग करने की मानसिकता से थक चुका हूं. पार्टी के नेतृत्व को म्यूजिकल चेयर का खेल बनाकर ‘ नंबर के बाद नंबर तेरे बाद मेरा ‘ के स्वार्थीपन का बोझ अब थका रहा है।

मैंने कांग्रेस पार्टी को निजी संपत्ति समझकर कब्जा ज़माने वाले नेताओं के खिलाफ जब जरुरत पड़ी तक अनेक बार आवाज उठायी है। मैंने उसमें प्राण फूंकने का अथक प्रयास किया है, पार्टी को सत्ता में आते देखने की इच्छा से नहीं, बल्कि पार्टी को जीवित रखने की बेचैनी से अनेक बार आवाज उठायी है ।

व्यक्तिगत नुकसान झेलने के बाद भी वह सच बोलने से नहीं हिचका । कांग्रेस पिछले 27 सालों से गुजरात में सत्ता से बाहर है, लेकिन आज पार्टी ने हारे हुए घोड़ों पर दांव लगाने की आदत को बनाए रखा है। गुजरात के किसी भी जिले या शहर को देखिए, आपको वो पुराने चेहरे कालीन के किनारे बैठे नजर आएंगे.

जब विभिन्न समितियों के गठन, पर्यवेक्षकों की नियुक्ति, चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवारों की सूची तैयार करने की बात आती है, तो हमेशा वर्षो पुरानी सूची को ज़ोरेक्स कराकर थोप दिया जाता है। हां, जिम्मेदारियां बदल जाती हैं, लेकिन बदली हुई जगह पर चेहरे वही होते हैं। जो नेता अपनी जमीन नहीं बचा सके उन्हें ही जमींदार बनाया गया है और कांग्रेस को पांच पच्चीस लोगों की जागीर बना दिया गया है।

कांग्रेस एक विशाल सागर से कुएं में तब्दील होने तक की स्थिति में आ गई है। ज्यादातर महानगरों में विपक्ष का दर्जा हासिल करना भी मुश्किल है लेकिन वे बाहर की हकीकत को समझने को तैयार नहीं हैं. जिन नेताओं को पता है कि अगर दूसरी पंक्ति उठी तो उनका खाना छीन लिया जाएगा, उन्होंने कांग्रेस के कीबोर्ड से रिफ्रेशमेंट बटन हटा दिया है। पार्टी नया स्वीकार करने, नया सोचने या नए लोगों को आजमाने को तैयार नहीं है।

मुझे लगता है कि विचारशील, बुद्धिजीवी लोगों को कांग्रेस का पेट पचा नहीं पा रहा हैं, यही कारण है कि सच्चे-अच्छे और सक्षम लोग धीरे-धीरे पार्टी छोड़ रहे हैं।

बार-बार निदान करने के बाद भी कि अनिर्णय की बीमारी पार्टी के लिए घातक होगी, निर्णय लेने में कायरता और ढिलाई स्पष्ट दिखती है। एक निर्णय लेने में महीनों लग जाते हैं, क्योंकि सभी सामंतों को समान रूप से बाटने की मज़बूरी होती है ।इतनी बड़ी और पुरानी पार्टी दो साल से बिना किसी प्रदेश संगठन के एडोक में चले तो दोषी कौन ?हमने प्रदेश संगठन के बिना स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने का परिणाम देखा है।

न केवल प्रदेश में बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी यह संक्रमण एक महामारी की तरह फैल चुका है, जिसकी वैक्सीन शायद किसी वैज्ञानिक के पास नहीं है। कांग्रेस की सेना या तो बिना सेनापति के या सेनापतियों के बोझ से टूट रही है और हम कुछ नहीं कर सकते यह स्थिति पीड़ादायक है ।

ढाई दशक से सत्ता के खिलाफ संघर्ष किया ही है । मेरा मतलब है, सत्ता मेरा राजनीतिक प्राणवायु नहीं है, नहीं, बिल्कुल नहीं, इसलिए मुझे गद्दार मत गिनना । 2007 ,2012 ,2017 ,या 2019 में खेरालु विधानसभा से टिकट मांगी फिर नहीं मिली और उसके बावजूद अफ़सोस किये बिना पार्टी का वफादार रहा हु। पिछले दस वर्षों से मेरी क्षमता के मुताबिक जान बूझकर संगठन में पद नहीं देने पर भी मैं पार्टी के साथ रहा हूं.

चैनल में बहस के दौरान पड़ा था दिल का दौरा


कांग्रेस पार्टी का पक्ष आक्रामकता से रखने के कारण, एक प्रतिष्ठित चैनल पर एक बहस के दौरान दिल का दौरा पड़ा, गिर गया और सौभाग्य से बच गया। इस घटना के बाद राजनीतिक जुड़ाव कम करने के लिए परिवार, दोस्तों और शुभचिंतकों की अनिच्छा के बावजूद, पार्टी के प्रति मेरी वफादारी कम नहीं हुई। दिल का दौरा पड़ने से विचलित नही हुआ आपका मित्र जयराज सिंह पार्टी के आंतरिक ढांचे-व्यवस्था से हार गया हैं.

यह दर्द सिर्फ मेरा नहीं है, लाखों ईमानदार कार्यकर्ताओं का है, बस मैं बात कह रहा हूं। स्वाभिमान की कीमत पर इंद्र का स्थान प्राप्त करना भी स्वीकार्य नहीं है। आप में से बहुत से लोग दुखी होंगे, शायद नाराज भी होंगे, एक जयराज सिंह के जाने से अगर पार्टी व्यवस्था में सुधार हो रहा है, बहरा कान एक आम कार्यकर्ता का दर्द सुनता हो, तो कांग्रेस को अंतिम विदाई ही एकमात्र विकल्प है।

मेरा अपनी पार्टी के किसी भी सहयोगी से कोई व्यक्तिगत मतभेद नहीं है।37 साल की अच्छी यादें दिल में लेकर विदा हो रहा हु। कभी मुझसे दिल दुखा हो तो माफ़ करना।

सत्ता के पीछे नहीं भागने वाले और सत्ता से नहीं डरने वाले जयराज सिंह के लिए कांग्रेस का मतलब सामान्य कार्यकर्ता है। इसलिए मैं सबसे पहले उन्हें पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देने के निर्णय की सूचना देता हूं और टूटे मन से मैं कांग्रेस पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देता हूं।

सभी समर्थकों, शुभचिंतकों, आलोचकों और कार्यकर्ता मित्रों को उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएं…

आपका, जयराज सिंह परमार

पत्र को पढ़कर खुश हो रहे हैं कांग्रेसी


यह पत्र तमाम नेता भी पढ़ रहे है और कार्यकर्त्ता भी। लेकिन कामराज की तरह कोई साहस नहीं जुटा पा रहा जो जो कह सके की मेरे जिला ,विधानसभा ,वार्ड का संगठन बहुत कमजोर हो गया है , मुझे अब वंहा काम करना है , संगीत कुर्सी से मै अलग हो रहा हु।

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