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CBI ने खोला मेडिकल कॉलेजों में अरबों के घोटाले का राज! बाबा से प्रोफेसर तक सब बेनकाब

| Updated: July 5, 2025 12:00

CBI ने देशभर में फैले मेडिकल कॉलेज घोटाले का किया खुलासा, रावतपुरा सरकार समेत कई बड़े नामों के खिलाफ केस दर्ज

भोपाल: भारत में चिकित्सा शिक्षा से जुड़ी अब तक की सबसे बड़ी धोखाधड़ी का भंडाफोड़ करते हुए केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) ने एक बहु-राज्यीय घोटाले का पर्दाफाश किया है, जिसमें शीर्ष अधिकारी, बिचौलिए, शिक्षाविद और यहां तक कि एक स्वयंभू बाबा भी शामिल हैं।

CBI की इस सनसनीखेज जांच में सामने आया है कि देशभर में मेडिकल कॉलेजों को अवैध रूप से मान्यता दिलाने के लिए करोड़ों रुपये की रिश्वत दी गई। इस घोटाले में पूर्व UGC अध्यक्ष और वर्तमान में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) के चांसलर डीपी सिंह, स्वयंभू संत रावतपुरा सरकार, इंदौर के इंडेक्स मेडिकल कॉलेज के सुरेश सिंह भदौरिया जैसे नाम शामिल हैं।

CBI ने अपनी प्राथमिकी (FIR) में कुल 35 लोगों को नामजद किया है, जिनमें सेवानिवृत्त IFS अधिकारी संजय शुक्ला भी शामिल हैं। शुक्ला छत्तीसगढ़ के वन विभाग के पूर्व प्रमुख और रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (RERA) के चेयरमैन भी रह चुके हैं। उन्हें रावतपुरा समूह से ट्रस्टी के तौर पर जोड़ा गया है। हालांकि अब तक केवल एक व्यक्ति— निदेशक अतुल तिवारी — को गिरफ्तार किया गया है।

इस करोड़ों रुपये के घोटाले में नकली फैकल्टी, फर्जी निरीक्षण रिपोर्ट, लीक हुई गोपनीय फाइलें, और हवाला व बैंकिंग माध्यम से रिश्वत दिए जाने के मामले सामने आए हैं। राजस्थान, गुरुग्राम, इंदौर, वारंगल और विशाखापट्टनम तक फैले इस नेटवर्क में स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी भी शामिल बताए जा रहे हैं।

जांच की शुरुआत

जांच की शुरुआत छत्तीसगढ़ के रायपुर स्थित श्री रावतपुरा सरकार इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च (SRIMSR) से हुई, जहां निरीक्षण रिपोर्ट को पक्ष में लाने के लिए ₹55 लाख की रिश्वत देने के आरोप में छह लोगों को गिरफ्तार किया गया। इनमें तीन डॉक्टर भी शामिल थे।

CBI ने निरीक्षण टीम के प्रमुख के सहयोगी से ₹38.38 लाख और एक अन्य अधिकारी के घर से ₹16.62 लाख बरामद किए। एजेंसी का कहना है कि यह पूरी राशि हवाला के माध्यम से एकत्र कर टीम में बांटी गई थी।

रायपुर से शुरू हुआ यह मामला जल्द ही एक राष्ट्रीय घोटाले में बदल गया।

स्वयंभू संत रावतपुरा सरकार की भूमिका

FIR में रावतपुरा सरकार उर्फ रविशंकर महाराज का नाम आने के बाद राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई है। सत्ता से नजदीकी के कारण उन्हें अक्सर “बाबा विद पावर” कहा जाता है। IAS, IPS अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के साथ उनकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो चुकी हैं।

आरोप हैं कि उनके ट्रस्ट को सरकारी योजनाओं, सड़क परियोजनाओं और बिजली सब्सिडी में अनुचित लाभ मिला। हालांकि ट्रस्ट ने इन आरोपों से इनकार किया है।

यह पहला मौका नहीं है जब रावतपुरा सरकार विवादों में रहे हों। उनके ट्रस्ट पर ज़मीन पर कब्जा करने, बिना अनुमति के कॉलेज चलाने, छात्रों को धार्मिक गतिविधियों में जबरन शामिल कराने और महिला अनुयायियों के मानसिक उत्पीड़न जैसे गंभीर आरोप लगे हैं। हालांकि अब तक अधिकांश मामलों में औपचारिक अभियोजन नहीं हो पाया था।

CBI का कहना है कि देशभर में 40 से अधिक मेडिकल कॉलेजों ने रिश्वत और फर्जी दस्तावेज़ों के आधार पर मान्यता हासिल की।

इंदौर से चला दूसरा नेटवर्क

जांच के दौरान CBI को इंदौर के इंडेक्स मेडिकल कॉलेज से एक समानांतर ऑपरेशन के बारे में पता चला, जहां फर्जी फैकल्टी, नकली बायोमेट्रिक अटेंडेंस और जाली अनुभव प्रमाण पत्र के ज़रिए नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) को गुमराह किया गया।

CBI का दावा है कि भिंड जिले के लहार से आने वाले सुरेश भदौरिया और रावतपुरा सरकार ने एक ऐसा गठजोड़ बना लिया था जो ₹3 से ₹5 करोड़ लेकर किसी भी निजी कॉलेज को NMC से मान्यता दिला देता था, चाहे कॉलेज में मूलभूत ढांचा हो या नहीं।

CBI को ऐसी सूचनाएं भी मिली हैं कि नई दिल्ली के अधिकारी फाइलों की तस्वीरें खींचकर व्हाट्सऐप के ज़रिए एजेंटों को भेजते थे, जो आगे कॉलेजों को जानकारी देते थे।

गुरुग्राम के वीरेंद्र कुमार, द्वारका की मनीषा जोशी और उदयपुर की गीतांजलि यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार मयूर रावल को इस गोपनीय डेटा के प्राप्तकर्ता बताया गया है।

मास्टरमाइंड और बिचौलिए

CBI की एफआईआर के अनुसार, मेडिकल असेसमेंट एंड रेटिंग बोर्ड (MARB) के पूर्व सदस्य जीतू लाल मीणा इस पूरी साजिश के मुख्य कड़ी थे। आरोप है कि उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर कॉलेजों से मोटी रिश्वत वसूली।

CBI ने खुलासा किया है कि मीणा ने इन अवैध पैसों का इस्तेमाल राजस्थान में ₹75 लाख की लागत से एक हनुमान मंदिर बनाने में किया।

दक्षिण भारत से जुड़ा कनेक्शन

CBI की जांच में यह भी सामने आया कि आंध्र प्रदेश के कडिरी निवासी एजेंट बी हरि प्रसाद, हैदराबाद के अंकम रामबाबू और विशाखापट्टनम के कृष्ण किशोर ने NMC निरीक्षण के दौरान फर्जी फैकल्टी और मरीजों की व्यवस्था की।

एक मामले में, कृष्ण किशोर ने गायत्री मेडिकल कॉलेज के निदेशक से ₹50 लाख की रिश्वत ली, जबकि वारंगल के फादर कोलंबो इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज जैसे संस्थानों ने ₹4 करोड़ से अधिक की रिश्वत देकर मंज़ूरी प्राप्त की। ये रकम बैंकिंग चैनल के ज़रिए भेजी गई ताकि उन्हें वैध दिखाया जा सके।

जांच अभी जारी

CBI का कहना है कि यह जांच अभी जारी है और जल्द ही और गिरफ्तारियां हो सकती हैं। यह घोटाला न केवल भारत की मेडिकल शिक्षा प्रणाली की साख पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि उन लाखों छात्रों और मरीजों के भविष्य को भी प्रभावित करता है जो इन कॉलेजों से जुड़े होते हैं।

एजेंसी ने कहा है कि वह पूरे नेटवर्क को ध्वस्त करने और दोषियों को कानून के शिकंजे में लाने के लिए प्रतिबद्ध है।

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