मेहसाणा कोर्ट द्वारा जिग्नेश मेवाणी के रिहाई आदेश का जोरदार स्वागत

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मेहसाणा कोर्ट द्वारा जिग्नेश मेवाणी के रिहाई आदेश का जोरदार स्वागत

| Updated: March 30, 2023 18:33

मेहसाणा जिले की एक सत्र अदालत ने बुधवार को दलित अधिकार कार्यकर्ता और कांग्रेस विधायक जिग्नेश मेवाणी (Congress MLA Jignesh Mevani) और उनके नौ सहयोगियों के लिए तीन महीने की जेल की सजा के निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया और उन्हें 2017 के एक मामले में बरी कर दिया। उन पर पुलिस की अनुमति के बिना मेहसाणा शहर से बनासकांठा के धानेरा तक एक सार्वजनिक रैली ‘आजादी मार्च’ निकालने का मामला दर्ज किया गया था। अदालत ने अभियोजन पक्ष के मामले को निराधार करार दिया है।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सी.एम. पवार (Additional sessions judge C M Pawar) ने संविधान के अनुच्छेद 19 का हवाला देते हुए मेवाणी और अन्य को बरी कर दिया, जो नागरिकों को शांतिपूर्ण विरोध और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार (right to peaceful protest) प्रदान करता है।

“संविधान में निहित स्वतंत्रता का अधिकार न केवल अकादमिक उद्देश्यों के लिए है बल्कि यह एक लोकतांत्रिक राष्ट्र की आधारशिला है। एक लोकतांत्रिक ढांचे में, विचार-विमर्श, चर्चा, बहस और सरकार की नीतियों के खिलाफ असहमति और सरकार की निष्क्रियता की आलोचना भी राष्ट्र में लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए आवश्यक है, “न्यायाधीश ने आदेश में कहा।

कोर्ट ने आगे कहा, “लेकिन जब एक राष्ट्र के लोगों को उनकी स्वतंत्रता का उपयोग करने से रोका जाता है और राज्य तंत्र का दुरुपयोग करके उनकी आवाज दबा दी जाती है, तो ऐसे कार्य भारत के संविधान में निहित स्वतंत्रता के अधिकार के मूल उद्देश्य को विफल कर देंगे।”

आपको बता दें कि 5 मई, 2022 को मेहसाणा में एक न्यायिक मजिस्ट्रेट ने मेवाणी और अन्य को, जिसमें एनसीपी पदाधिकारी रेशमा पटेल और मेवाणी के राष्ट्रीय दलित अधिकार मंच के सदस्य शामिल थे, आईपीसी की धारा 143 के तहत एक गैरकानूनी सभा में शामिल होने का दोषी ठहराया था। मजिस्ट्रेट ने 10 दोषियों में से प्रत्येक पर 1,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया था।

पुलिस ने एफआईआर में 12 लोगों को नामजद किया था, जिनमें से एक की मौत हो गई थी और एक ट्रायल के दौरान फरार हो गया था। निचली अदालत के आदेश को रद्द करते हुए, न्यायाधीश ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 144 लागू करके सार्वजनिक स्थानों पर इकट्ठा होने पर रोक लगाने के लिए अधिकारियों द्वारा कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया था और इसलिए गैरकानूनी सभा का मामला निराधार है।

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